भाजपा सरकार नौकरियों में आरक्षण नीति का पालन नहीं कर रही है : अशोक अरोड़ा

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इनेलो नेता ने लगाया निजी कंपनियों के ठेकेदारों को भर्ती की जिम्मेदारी देने का आरोप 

चंडीगढ़, 27 सितम्बर: इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने भाजपा सरकार पर नौकरियों के मामले में संविधान द्वारा मान्य आरक्षण नीति को विकृत करने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार की नीतियां ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों के हितों की विरोधी हैं।

श्री अरोड़ा ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से भाजपा सरकार द्वारा भर्तियों के लिए जो निर्धारित व्यवस्था थी, उसका पालन नहीं किया जा रहा और भर्तियों का दायित्व निजी कंपनियों के ठेकेदारों को दिया जा रहा है ताकि वही नई नौकरियों और रिक्त स्थानों की पूर्ति करें। मानव संसाधन उपलब्ध करवाने वाले यह ठेकेदार युवाओं को सरकारी दिहाड़ी के हिसाब से भर्ती कर उन्हें एक निर्धारित राशि ही देते हैं और शेष हिस्सा उनके अपने खातों में जाता है। यह मानव संसाधन के ठेकेदार अपनी मनमानी करते हुए केवल उन लोगों की भर्ती करते हैं जिनका संबंध संघ परिवार से होता है और जिनकी सिफारिश भाजपा के विधायकों द्वारा की जाती है। इस प्रकार की भर्ती के कारण अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के वह युवा लोग नौकरियों से वंचित रह जाते हैं जिन्हें सरकार द्वारा नियमित रूप से भर्ती किए जाने पर आरक्षण का लाभ मिलता।

इनेलो नेता ने कहा कि यह एक सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है ताकि अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके अधिकार की नौकरियां उपलब्ध न हो सकें। यह स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान को विकृत करने का प्रयास है क्योंकि आरक्षण की नीति देश के संविधान के निर्माताओं द्वारा बहुत सोच समझकर और सामाजिक एवं आर्थिक न्याय दिलवाने के लिए बनाई गई थी। इस प्रकार सरकार की इस नीति से जहां एक तरफ सरकारी विभागों में कार्यरत होने के बावजूद युवाओं को डीसी रेट के आधार पर ही वेतन मिलता है वहीं जिन को आरक्षण का लाभ प्राप्त होना चाहिए था उन्हें उससे वंचित रखा जाता है।

 अशोक अरोड़ा ने भाजपा सरकार पर ग्रामीण विरोधी होने का भी आरोप लगाया। उन्होंने याद दिलाया कि यह सर्वमान्य है कि शहरी एवं ग्रामीण स्कूलों के शैक्षणिक स्तर में जाहरी तौर पर अंतर है। इस अंतर में शहरों की सम्पन्नता और ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कारण परिक्षाओं में जो अंक प्राप्त होते हैं उनमें भी ग्रामीण विद्याथियों एवं शहरी विद्यार्थियों में अंतर दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त शहरी विद्यार्थियों को नित नए अवसर मिलने के कारण व्यक्तित्व विकास भी ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों से बेहतर होता है। इस अंतर के कारण जब बराबर की प्रतियोगिता दोनों वर्गों को करनी पड़ती हैं तो उसमें स्पष्ट तौर पर ग्रामीण विद्यार्थी अक्सर पिछड़ जाते हैं। नौकरियों के मामले में ऐसा अक्सर होता है और इसीलिए यदि नौकरी के लिए योग्यता को ही एकमात्र आधार बनाया जाए तो प्रतिस्पर्धा में ग्रामीण विद्यार्थी शहरी विद्यार्थियों से पिछड़ जाते हैं।

इनेलो नेता ने मांग की कि इस वास्तविकता को स्वीकार किया जाए और चाहे उच्च शिक्षा में प्रवेश का मामला हो या फिर सरकारी नौकरियों में भर्ती होने का, ग्रामीण विद्यार्थियों की योग्यता संबंधी गुण में रियायत दी जानी चाहिए ताकि पृष्ठभूमि के अंतर से उपजी विषमता को समाप्त किया जा सके। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो ग्रामीण विद्यार्थी कभी भी शहरी विद्यार्थियों के मुकाबले में कुछ अतिश्योक्तियों को छोडक़र बराबरी नहीं कर सकते। ऐसे में वह नौकरियों से और उच्च शिक्षा दोनों से वंचित रह जाते हैं जो उनके प्रति एक अन्याय है।

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