एक की राजनीतिक मजबूरी तो दूसरे की कानूनी मज़बूरी के बीच फंसा महागठबंधन
नीतीश कुमार ने जद यू विधायकों की आपात बैठक बुलाई
भ्रष्टाचार के खिलाफ विद्रोही तेवर वाली छवि को भुना सकते हैं नीतीश कुमार
सुभाष चौधरी /प्रधान संपादक
नई दिल्ली/पटना : मीडिया की ख़बरों में कहा गया है कि बिहार में महागठबंधन के दो प्रमुख दलों में मचे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू विधायकों की आपात बैठक बुलाई है. जाहिर है इस समय विधायकों की बैठक के कई मायने निकाले जाने स्वाभाविक हैं. राजनीतिक दृष्टि से इस बैठक को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. पटना के राजनितिक गलियारे में इसे लेकर जबर्दस्त चर्चा शुरू है. विश्लेषक संभावना जता रहे हैं कि यह बैठक महागठबंधन की ताबूत में अन्तिम कील ठोंकने जैसी साबित हो सकती है क्योंकि इसमें उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बर्खास्त करने के लिए पार्टी के विधायकों का मंतव्य लिया जा सकता है जबकि बदले हालत में अगर राजद समर्थन वापस लेता है तो सरकार को बचाए रखने के लिए किया रुख अपनाए जाएँ इस पर भी चर्चा हो सकती है. फ
गौरतलब है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के तेजस्वी यादव के इस्तीफा नहीं देने के बयान आने के बाद जदयू का राजद पर हमला तेज हो गया है. शनिवार को नये घटनाक्रम में पटना के एक सरकारी कार्यक्रम में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नेम प्लेट को अचानक ढक दिया गया. तेजस्वी यादव का यह नेम प्लेट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेम प्लेट के बगल में ही रखा गया था. इसके पीछे महागठबंधन के रिश्ते में आयी तल्खी को देखा जा रहा है. इतना ही नहीं, आज ही जदयू विधायक श्याम रजक ने भी लालू प्रसाद पर बड़ा हमला कर दिया.
ऐसे में अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा रविवार को जदयू विधायकों की बुलायी गयी बैठक से पटना के राजनितिक गलियारे में एक बार फिर उथल-पुथल मच गया है. यह बैठक सीएम के सरकारी आवास एक अणे मार्ग में बुलायी गयी है. चर्चा है कि बैठक में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर कोई बड़ा फैसला हो सकता है. दरअसल महागठबंधन में तेजस्वी यादव के इस्तीफे को लेकर दो तीन दिनों से तल्खी काफी तेजी से बढ़ी है.
एक तरफ जदयू चाहता है कि तेजस्वी को या तो आय से अधिक संपत्ति मामले में सारी स्थिति तथ्यों के साथ स्पष्ट करनी चाहिए या फिर पद से इस्तीफा देना चाहिए दूसरी तरफ राजद सुप्रीमों लालू यादव इस बात के लिए तैयार नहीं हैं. उन्हें लगता है कि सार्वजनिक रूप से कुछ कहना कानूनी दावपेंच की दृष्टि से सही नहीं होगा. उन्हें यह भय सता रहा है कि तेजस्वी जिन पर सीबीआई ने मामला दर्ज किया है अगर मीडिया के समक्ष कुछ गलत बोल गया तो अदालत में वही उनके गले की फांस बन सकता है. उनकी कानूनी कठिनाई उन्हें ऐसा करने से रोक रही है जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी उन्हें इस बात के लिए मजबूर कर रही है कि वे अपनी छवि को साफ़ सुथरी बनाये रखने के लिए तेजस्वी से इस्तीफा लें. एक की राजनीतिक मजबूरी और दूसरे की कानूनी बाध्यता ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है. संभावना इस बात की प्रबल हो चली है कि दोनों नेताओं की मजबूरियों में अगर कोई समझौता नहीं हो पाया तो दोनों अलग-अलग राह अपना सकते हैं . इस फिराक में बैठी भाजपा को अपना लक्ष्य प्राप्ति की दृष्टि से पहली जीत मिल सकती है.
लेकिन भाजपा के लिए संभावना के द्वार तभी खुल सकते हैं यदि नीतिश कुमार किसी प्रकार सरकार बनाए रखना चाहेंगे . यदि नीतिश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ विद्रोही तेवर वाली अपनी साफ़ सुथरी छवि को तत्काल भुनाने का मन बना लिया तो वे मध्यावदी चुनाव का निर्णय भी ले सकते हैं. उन्हें इस बात का भान हो चला है कि तेजस्वी यादव मामले में इनके कड़े स्टैंड ने बिहार की जनता के बीच उनकी साफ़ छवि को और मजबूत एवं लोकप्रिय बना दिया है. इस स्थिति में बिहार को जल्दी ही विधान सभा चुनाव का मुंह देखना पड सकता है और भाजपा को लोहे के चने चबाने पड सकते हैं. यानी आसानी से सत्ता में बैठना भाजपा के लिए संभव नहीं हो सकेगा.
संभव है इन्हीं हालात को ध्यान में रखते हुए ही बीती रात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी. खबर तो यह भी आई कि दिन में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी दोनों नेताओं से फोन पर बात की थी. संकेत ऐसे मिले रहे थे कि बात बन जायेगी. लेकिन, अचानक शुक्रवार की रात में लालू प्रसाद के यह कहने पर कि तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे इससे मामला बिगड़ गया.
लालू यादव ने एक न्यूज एजेंसी को दिए बयान में यह तो स्वीकार किया कि कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी ने उनसे बात की थी लेकिन इस बात का पुरजोर खंडन किया कि इस बातचीत में तेजस्वी यादव से सम्बंधित बिंदु भी शामिल थे. उनका कहना था कि तेजस्वी के इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता और इस मामले में कोई बातचीत नहीं हुई है.
जड़ यू नेताओं व प्रवक्ताओं के बयानों में कड़े तेवर दिखने, शनिवार को बदलते घटनाक्रम में तेजस्वी यादव का नेम प्लेट ढका जाना, फिर लालू प्रसाद पर ‘अनाप-शनाप’ बयान देने का आरोप लगाया जाना महागठबंधन के रिश्ते में आयी खटास की ओर इशारा करने लगा है.
अब खबर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को जदयू विधायकों की बैठक बुलायी है. चर्चा है एक अणे मार्ग में होनेवाली बैठक में तेजस्वी यादव पर कोई बड़ा फैसला हो सकता है. उन्हें बर्खास्त करने की भी कार्रवाई हो सकती है. हालांकि एक तबका यह भी मान रहा है कि सोमवार को राष्ट्रपति चुनाव है, संभव है कि बैठक इसके लिए भी बुलायी गयी हो. बहरहाल अचानक जदयू विधायकों की बैठक को लेकर बिहार में सियासत तेज हो गयी है ।
डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के इस्तीफे को लेकर उठे सियासी तूफान के बीच बयानबाजियों का सिलसिला रुक नहीं रहा है. आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा हैं. राजद विधायक श्रीनारायण यादव के एक बयान पर राजनीति तेज हो गई है. श्रीनारायण यादव ने सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि जदयू और सीएम नीतीश कुमार भाजपा की भाषा बोल रहे हैं. उन्हें भाजपा के साथ जाना है तो चले जाएं.
इतना ही नहीं जदयू विधायक श्याम रजक के लालू प्रसाद को बुजुर्ग बताने पर आरजेडी तल्ख हो गई है. सरकार में आरजेडी कोटे से लेबर मिनिस्टर विजय प्रकाश ने भी खूब हमला बोला है. उन्होंने श्याम रजक को निशाना बनाते हुए कहा कि लालू प्रसाद को ऐसा कहने वालों को भगवान सदबुद्धी दें. बता दें कि श्याम रजक ने कहा था कि लालू बुजुर्गियत में अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं.।
जाहिर है तेजस्वी यादव को लेकर राजद-जदयू के बीच जुबानी हमले तेज होते जा रहे हैं. सीएम नीतीश कुमार ने भी अपने विधायकों की आपात बैठक बुलाकर कयासों के बाजार को और गरम कर दिया है. संभावना पूरी है कि इस बैठक में तेजस्वी यादव को लेकर बड़ा फैसला हो सकता है. इससे पूर्व शुक्रवार को रांची से पटना लौटने के बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने तेजस्वी को लेकर पार्टी का रुख साफ कर दिया है. लालू प्रसाद ने साफ-साफ कह दिया है कि तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम के पद से इस्तीफा नहीं देंगे.
संकेत स्पष्ट है कि बिहार की महागठबंधन का भविष्य नाजुक मोड़ से गुजर रहा है. जदयू और राजद एक-दूसरे पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं. छीटाकशी खूब हो रही है. समझा जाता है कि राजद विधायक श्रीनारायण यादव के नीतीश कुमार पर दिए बयान ने सियासती आग में घी का कम किया है.
बिहार विधान सभा चुनाव 2015 के दौरान महागठबंधन को कुल 178 सीटें हासिल हुईं थीं . इनमें राजद को सबसे अधिक 80 सीटें, जद यू दूसरे नंबर पर71 सीटें और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं. दूसरी तरफ़ भाजपा को 53 सीटें, आर एल एस पी को 2, एल जे पी को 2, हम को 1 जबकि 7 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे. अगर नीतीश कुमार चाहें तो भाजपा के सम्रथन से उनकी सरकार बनी रह सकती है लेकिन यह स्थिति नीतीश विरोध पर अस्तित्व में आई पार्टियों आर एल एस पी , एल जे पी एवं हम को नागवार गुजर सकती है.