चण्डीगढ़ : प्यारी गौरैया घर के आंगन में चह चहकाने व संरक्षण कार्यरत राजा शर्मा ने कहा कि घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि गोरैया एक छोटी घरेलू चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गोरैया का पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। १४ से १६ से.मी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है|
पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है। गौरैया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं।
अब घरों से कर रखी गौरैया संरक्षण की शुरुवात।
पहले कभी घरों में चह चहाने वाली गौरैया(sparrow) शायद अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही है जिसका कारण कोई और नहीं बल्कि यह है कि अब लोगों के पक्के महलों के कारण यह नन्ही गौरेया अपना घर बना नही पाती।
शहरों में तो अब यह गौरैया देखी भी नहीं जाती पर कुछ चुने हुए लोग जिन्हें प्रकृति से लगाव होता है वह इनके संरक्षण के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं उनमें से हैं पंचकूला के मकान न. 452 सेक्टर 11 और एस डी कॉलेज चंडीगढ़ के मेधवी छात्र राजा शर्मा।
उनका कहना है कि यदि हम लोग अपने घरों में गौरैया के रहने की व्यवस्था कर देते हैं तो यह चिड़िया फिर से घरों में चह चहाने लग पड़ेगी ।
घर से करें शुरूआत-
हमें अपने घर से शुरुआत करनी चाहिए है। सबसे पहले गौरैया को रहने लायक ऐसा घर देना है जहां पर वह सुरक्षित महसूस कर सके। नया घर बना रहे हैं तो गौरैया के लिए जगह छोड़ सकते हैं।
राजा ने अपने ही घर मे खुद ही आधा दर्जन गौरैया के घर लगा रखे है | आज उन घरों में आधा दर्जन से ज्यादा गौरैया रहती हैं। वह उनके लिए अपने बगीचे में बाजरा और कनकी के कटोरे रखे हुए हैं और एक कटोरे में उनके लिए पानी की व्यवस्था भी की गई है। उन्होंने बताया की बगीचों में भी जैविक खेती करते रहे ताकि गौरैया को प्राकृतिक भोजन की कमी भी न हो ।
इसके साथ उन्होंने गिलहरी के लिए भी घर और “गिलहरी फीडर” बना रखा है।
राजा अब हिन्द एजुकेशनल सोसाइटी के साथ मिलकर ट्राइसिटी में गौरैया संरक्षण व आरवी हट्स के लिए जन जागृति अभियान भी 8 जुलाई 2015 से चलाया हुआ है । चिड़ियों के संरक्षण के लिए लकड़ी के आरवी हट्स तैयार करके पर्यावरण व पंछी प्रेमियों तक पहुँचाने में कार्यत है । राजा ने बताया की इसके लिए एक एक वेबसाइट(sparrowworld) भी बनाई हुई है जहाँ जाकर कोई भी गौरैया के घर के बारे जानकारी ले सकता है ।
ऐसे करें पहल-
– अपने घरों में लकड़ी व मिट्टी के घोंसले रखें।
-कटोरे में पानी, कनकी व बाजरी के दानें रखें।
-हो सके तो जैविक खेती का प्रयोग करे ।
-पक्के महलों के बरामदों एक कोने में गौरेया के लिए घर का स्थान दे ।