अभियोजन पक्ष ने की हत्या के 13 दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग

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मारुति सुजूकी प्रकरण : दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस पूरी

अदालत आज सुनाएगी सभी 31 दोषियों की सजा पर फैसला

अभियोजन पक्ष ने की हत्या के 13 दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग 2गुडग़ांव (अशोक): मारुति सुजूकी प्रकरण में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल की अदालत में अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए 31 दोषियों की सजा पर दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस हुई। अभियोजन पक्ष ने हत्या के आरोप में दोषी करार दिए गए 13 दोषी श्रमिकों को फांसी की सजा देने के लिए अदालत में दलीलें दी, जबकि बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने इन 13 दोषियों के साथ सजा में नरमी बरतने का आग्रह अपनी दलीलों द्वारा किया। खचाखच भरे अदालत कक्ष में न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सभी 31 दोषियों की सजा पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

अदालत दोषियों की सजा पर आज शनिवार को अपना फैसला सुनाएगी। अदालत परिसर में प्रात: से ही रिहा किए गए आरोपियों, उनके परिजनों व दोषियों के परिजनों, शुभचिंतकों तथा श्रमिक संगठनों सहित मीडिया का जमावड़ा लगना शुरु हो गया था। जिला प्रशासन ने भी शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए बड़ी संख्या में अदालत परिसर व अदालत के बाहर पुलिसकर्मी तैनात किए थे, ताकि किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित न हो सके। गुडग़ांव अदालत में वकालत कर रहे अधिवक्ता भी बड़ी संख्या में अदालत कक्ष में मौजूद रहे और दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनते रहे। प्रात: साढ़े 10 बजे अदालत ने अभियोजन पक्ष के अधिवक्ताओं की दलीलें सुननी शुरु की। बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने भी अपनी दलीलें दी, जो सायं 3 बजे खत्म हुई।

अभियोजन पक्ष ने दी दलीलें

अभियोजन पक्ष की ओर से डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी लाल सिंह यादव व असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी अनुराग हुड्डा ने अदालत में कई उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को दलीलों के रुप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि 13 दोषियों ने जघन्य अपराध किया है। इस घटना में मारुति कंपनी के एचआर हैड अवनीश देव की मृत्यु भी हुई है। इसलिए दोषियों को फांसी की सजा दी जाए, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि जो गलत काम करेगा, उसको सजा तो मिलेगी ही। उन्होंने कहा कि दोषियों के साथ किसी प्रकार की कोई दया नहीं दिखानी चाहिए।

कई विचारकों के शोध किए प्रस्तुत

अधिवक्ताओं ने विचारकों थॉमस, सीजर बकेरिया व जर्मी बैंथम की अपराधों पर किए गए शोध को भी दलीलों के रुप में अदालत में पेश किया। उन्होंने दलीलों में कहा कि उक्त विचारकों का भी मत है कि जिस अपराधी ने जो अपराध किया है और उसे जो उस अपराध से फायदा मिला है, उसे सजा अधिक मिलनी चाहिए। सजा मिलने में देरी नहीं होनी चाहिए। अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि मृतक अवनीश देव की पत्नी बिना पति के व उसका पुत्र बिना पिता के रह गया है। इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए अधिवक्ताओं ने कहा कि घटना के दिन यानि कि 18 जुलाई 2012 को कंपनी प्रबंधन ने सुपरवाईजर के साथ श्रमिक जियालाल के साथ विवाद हो जाने पर जियालाल को निलंबित कर दिया था। कंपनी प्रबंधन ने श्रमिक यूनियन पदाधिकारियों को आश्वस्त किया था कि उसका निलंबन शीघ्र ही वापिस ले लिया जाएगा, लेकिन श्रमिक अपनी बातों पर अड़े रहे और यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हो गई।

मच्छी सिंह बनाम पंजाब स्टेट

अधिवक्ताओं ने मच्छी सिंह बनाम पंजाब स्टेट के वर्ष 1983 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मृत्युदंड दिया जा सकता है। हालांकि इसकी कई कैटेगरी हैं। श्रमिक यूनियन की भूमिका पर भी प्रश्रचिन्ह लगाते हुए दलीलें दी गई कि श्रम विभाग के श्रमायुक्त द्वारा कंपनी पहुंचकर यूनियन प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया गया था कि जियालाल का निलंबन वापिस ले लिया जाएगा, लेकिन श्रमिक यूनियन व अन्य श्रमिक नहीं माने।

निर्भया कांड की भी रही गूंज

इस मामले में निर्भया कांड के फैसले की गूंज भी सुनाई दी। अधिवक्ताओं ने कहा कि सरकार को समाज का ताना-बाना कायम रखने के लिए निर्भया कांड में अध्यादेश तक लाना पड़ गया था, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि गलत काम का गलत अंजाम होता है और उसकी सजा मिलती है।

13 दोषियों की सजा पर दी दलीलें

अधिवक्ताओं ने 13 श्रमिक दोषियों को सजा देने की दलीलें देते हुए अदालत से आग्रह किया कि भादंस की धारा 325 व 452 में अधिकतम सजा 7-7 साल की है। इन दोषियों को अधिकतम सजा दी जाए।

बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने दी दलीलें

बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं के रुप में सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जोन व वृंदा ग्रोवर सहित स्थानीय अधिवक्ता राजेंद्र पाठक, राजकुमार, मोनू आदि भी अदालत में पेश हुए। सभी अधिवक्ताओं ने अदालत से विभिन्न उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत से आग्रह किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी फांसी की सजा दिए जाने के लिए कई कैटेगरी बनाई हुई हैं, लेकिन इन 13 दोषियों का अपराध इन कैटेगरी में नहीं आता कि उन्हें फांसी की सजा दे दी जाए। अधिवक्ताओं ने लॉ कमीशन के कमिश्रर जस्टिस शाह की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने भी वर्ष 2015 में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फांसी की सजा आतंकवादियों या आतंकी घटनाओं से जुड़े अपराधियों को ही दी जा सकती है। इन अपराधियों का अपराध इतना बड़ा नहीं है कि उन्हें फांसी की सजा दी जाए। अधिवक्ताओं ने अदालत को स्पष्ट किया कि इस प्रकरण में यह साबित हो ही नहीं पाया है कि अवनीश देव की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, किसने आग लगाई। मामले की जांच भी ठीक ढंग से नहीं की गई है। अधिवक्ताओं ने अदालत से आग्रह किया कि 13 दोषियों की सजा पर दया दिखाते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा ही दी जाए। क्योंकि सभी दोषी अभी युवावस्था में हैं।

13 दोषियों की सजा पर दलीलें

बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलों में कहा कि घटित हुई घटना में कंपनी का कोई भी अधिकारी व कर्मचारी गंभीर रुप से घायल नहीं हुआ था और न ही कोई अस्पताल में भर्ती हुआ तथा किसी को फ्रैक्चर आदि भी नहीं आया था। अधिकांश को मामूली चोटें आई थी। ऐसे में अभियोजन पक्ष द्वारा उन्हें 7 साल की सजा देना न्याय संगत नहीं है। उन्होंने अपनी दलीलों में कहा कि सभी दोषी शिक्षित हैं। कोई 12वीं है तो कोई गे्रजूएट है। कई दोषियों ने तो जेल में अपनी बंदी के दौरान ही शिक्षा भी प्राप्त की है। अधिकांश दोषियों के माता पिता वृद्ध हो चुके हैं। परिवार में केाई अन्य सदस्य कमाने वाला नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे हैं। एक दोषी तो दिव्यांग है, वह कैसे इस घटना को अंजाम दे सकता था। माता-पिता बीमार हैं। दलीलों में कहा गया कि इन दोषियों का कोई पहला आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है और उनके खिलाफ कोई अन्य मामला भी नहीं है। अदालत से आग्रह किया गया कि दोषियों ने 4 साल जेल में बिताए हैं, उनकी जेल में बिताई गई अवधि को सजा के रुप में पर्याप्त मानते हुए उन्हें अंडरगोन कर रिहा किया जाए।

हत्या के मामले के दोषी

राममेहर, संदीप ढिल्लों, रामविलास, सर्वजीत सिंह, पवन कुमार, सोहन कुमार, प्रदीप गुर्जर, अजमेर सिंह, सुरेश कुमार, अमरजीत, धनराज भामी, योगेश कुमार सभी श्रमिक यूनियन पदाधिकारी व जियालाल।

मारपीट के आरोपी

रामसबद, इकबाल सिंह, जोगेंद्र सिंह, प्रदीप, विजयलाल, आनंद, विशाल भारत, सुनील कुमार, प्रवीण कुमार, कृष्ण लांगड़ा, विरेंद्र सिंह, हरमिंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, नवीन, शिवाजी, सुरेंद्र, प्रदीप कुमार, नवीन पुत्र बलवान।

18 जुलाई 2012 को घटित हुई थी हिंसात्मक घटना

आईएमटी मानेसर स्थित मारुति सुजूकी कंपनी में वर्ष 2012 की 18 जुलाई को हिंसात्मक घटना घटित हो गई थी, जिसमें कंपनी के एचआर हैड अवनीश देव की दर्दनाक मौत भी हो गई थी और कंपनी के दर्जनों अधिकारी भी घायल हो गए थे। शॉप फ्लोर पर कार्यरत श्रमिक जियालाल और प्लांट सुपरवाईजर संग्राम किशोर मांझी के साथ किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई थी। किसी को यह नहीं मालूम था कि ये छोटी सी घटना इतना बड़ा रुप ले लेगी। कंपनी में आगजनी व तोडफ़ोड़ की घटना भी घटित हो गई और उच्चाधिकारी की मौत भी हो गई। कंपनी प्रबंधन को एक माह तक कंपनी बंद भी करनी पड़ गई थी और प्रबंधन ने 564 स्थायी व हजारों अस्थायी श्रमिकों को भी नौकरी से निकाल दिया था।

ये श्रमिक तभी से अपनी बहाली की मांग करते आ रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में शांति बनी रहे, इस सब को लेकर तत्कालीन हुड्डा सरकार ने औद्योगिक फोर्स के रुप में पुलिसकर्मियों की टीम का गठन भी कर दिया गया था। प्रदेश सरकार के सुरक्षा के आश्वासन के बाद ही कंपनी प्रबंधन ने कंपनी खोली थी और काफी समय बाद उत्पादन नियमित हो सका था।

प्रदेश सरकार ने सरकार के खर्चे पर इस मामले की पैरवी करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी व उनकी टीम का गठन भी कर दिया था। तुलसी व उनकी टीम को करीब 9 करोड़ रुपए मेहनताने के रुप में भी सरकार ने दिए थे। भाजपा सरकार आने के बाद केटीएस तुलसी को हटा दिया गया था। उनके स्थान पर डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी व उनकी टीम को इस मामले की पैरवी के लिए लगाया गया था।

अदालत में बहस पूरी हो जाने के बाद  श्रमिक संगठनों ने की बैठक

आज फिर होगी श्रमिक संगठनों की बैठक

 अभियोजन पक्ष ने की हत्या के 13 दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग 3दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की शुक्रवार को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश आरपी गोयल की अदालत में बहस पूरी हो जाने के बाद श्रमिक संगठनों, ट्रेड यूनियन काउंसिल और अन्य श्रमिक यूनियनों की बैठक का आयोजन मिनी सचिवालय क्षेत्र में किया गया। ट्रेड यूनियन काउंसिल के सदस्य कामरेड अनिल पंवार, कुलदीप जांघू व कामरेड डीएल सचदेव ने बैठक को संबोधित करे हुए कहा कि मारुति सुजूकी प्रकरण में दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस पूरी हो चुकी है।

अभियोजन पक्ष ने 13 दोषी साथियों को फांसी की सजा देने का आग्रह अदालत से किया है। हालांकि दोषियों की पैरवी कर रहे अधिवक्ताओं ने फांसी की सजा दिए जाने का विरोध करते हुए नरमी बरतने का आग्रह अदालत से किया है। वक्ताओं ने कहा कि सभी श्रमिक व श्रमिक संगठन संयम बरतें, किसी प्रकार की कोई अशांति व्याप्त न होने दें।

 

उन्होंने कहा कि आज शनिवार को अदालत का फैसला आ जाने के बाद फिर से ट्रेड यूनियन काउंसिल और श्रमिक संगठनों की बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें आगे की रणनीति बनाई जाएगी। बैठक में श्रमिक नेता अजमेर सिंह, राजेश शर्मा, सुरेश गौड़, रमेश समोता, राजकुमार, सतीस खटकड, सेवा राम, मुकेश शर्मा, सत्यनारायण, नरेश कुमार, मनोज कुमार, रामनिवास, भूपन दास, चंदन सिंह, हरजीत ग्रोवर, अनिल कुमार आदि शामिल थे।

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