बजट में कृषि संकट काे दूर करने की दिशा नहीं : स्वराज अभियान

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नई दिल्ली :  माेदी सरकार ने 2017 के लिए बजट पेश कर दिया है .पिछली बार की तरह इस बार भी सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि बजट में गांव व किसानाें के लिए बहुत कुछ किया गया है .लेकिन सरकार के दावे हकीकत से काेसाें दूर नजर आते हैं .किसानाें की आय 2022 तक दाेगुनी करने की पिछले बजट में की गई घाेषणा काे इस बार भी दाेहरा दिया गया है ,सरकार ने भी स्पष्ट नहीं किया है कि दाेगुनी आय मात्रा में हाेगी या महंगाई दर काे जाेडते हुए लेकिन किसानाें की आय वास्तव में दाेगुनी कैसे हाेगी इसके लिए राेडमैप व कार्ययाेजना गायब है .2016-17 में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में आैसत राष्ट्रीय वृद्धि दर मात्र 3.9% व गेंहूं के लिए 5.1% रही है ,यही दर रही ताे एमएसपी दाेगुना हाेने में करीब पच्चीस साल लगेंगे .इस तथ्य से साबित हाेता है कि किसानाें की आय दाेगुनी करने की सरकार की काेई ठाेस याेजना नहीं है आैर आय दाेगुनी करना महज एक जुमला है .

देश में किसानाें की आय बेहद कम है .

70वें एनएसएसआे सर्वे(NSSO-Situation Assessment Survey Of Agricultural Households) के अनुसार एक खेती आधारित परिवार की आैसत मासिक कृषि आय केवल 3844रूपये है जिसमें पशुपालन भी शामिल है .देश में लगभग 52%किसान परिवाराें के कर्ज में डूबे हाेने का अनुमान है .किसानाें की आत्महत्या की दर बढ़ी है .किसानाें काे कर्ज के जाल से मक्ति के लिए सरकार ने काेई कदम नहीं उठाया .छाेटे ,सीमांत व बटाईदार किसान जिनके पास निजी ऋण के चंगुल से निकलने का या संस्थागत वित्त पाने का काेई उपाय नहीं है ,इस बजट से निराश हुए .आत्महत्या कर चुके किसान परिवाराें की सहायता के लिए बजट में कुछ नहीं किया गया .

लाेग उम्मीद कर रहे थे कि नाेटबंदी से किसानाें व ग्रामीण मजदूराें काे हुए भारी नुकसान की भरपाई के लिए बजट राहत लेकर आयेगा .लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी जबकि नाेटबंदी ने खरीफ फसलाें की बिक्री आैर रबी फसलाें की राेपाई व बुआई काे बुरी तरह प्रभावित किया .आलू , टमाटर सहित अन्य सब्जी उत्पादक किसानाें काे अपनी फसलाें काे फेंक देना पडा ,ग्रामीण मजदूराें काे काम नहीं मिल सका . लगातार सूखा ,अतिवृष्टि व बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाआें की मार झेल रहे किसानाें पर नाेटबंदी सरकारी आपदा साबित हुई .

प्राकृतिक आपदाआें से नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दिया जाता है किसानाें काे नाेटबंदी से पहुँची छति सरकार द्वारा थाेपी गई आपदा थी उसकी भरपाई के लिए बजट में मुआवजा देना सरकार का कर्तव्य था .लेकिन सरकार ने केवल नाेटबंदी का दर्द दिया दवा नहीं दी .आंकडाें के अनुसार अभी भी देश में खेती का 60%से अधिक हिस्सा वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है इसमें संकट अधिक है जाे सूखे व किसानाें की आत्महत्या में भी परिलक्षित हाेता है .वहां सिंचाई व्यवस्था सुनिश्चित करने की काेई याेजना बजट में नहीं दिखती .

अब तक की सबसे बडी याेजना की तरह पेश की जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा याेजना (पीएमएफवीवाई)हवाई बाताें आैर असम्भव दावाें का पुलिंदा है .इस याेजना में प्रीमियम पर सरकार ने पिछले वर्ष 13240 कराेड रू.खर्च किए जिसमें केवल 26.5%किसानाें काे बीमा सुरक्षा मिली इससे बीमा कम्पनियाें काे ताे माेटा मुनाफा हाे गया लेकिन कितने किसानाें काे बीमा का कितना लाभ मिल सका इसका उल्लेख बजट में नहीं है .अब 2017-18 में पिछले वर्ष से भी कम केवल 9000 कराेड रू.इस मद में सरकार ने आवंटित किये हैं फिर भी दावा है कि कवरेज 26.5% से बढ़ाकर 40%किया जायेगा ,यह समझ से परे है .जाहिर है प्रधानमंत्री फसल बीमा याेजना किसानाें काे फायदा पहुँचाने काे नहीं बल्कि बीमा कम्पनियाें काे फायदा पहुँचाने के लिए बनाई गई है .
मनरेगा के लिए आवंटित 48000 कराेड रूपये काे सरकार अपनी बडी़ उपलब्धि बताकर पेश कर रही है जबकि पिछले वर्ष मनरेगा में खर्च 47500कराेड रूपये से यह महज 500कराेड रूपया ही अधिक है . जबकि स्वराज अभियान द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्राें के मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम काेर्ट ने मनरेगा फण्ड बढ़ाने का आदेश दिया था आैर राज्याें के अपने आंकलन के अनुसार यह 80000 कराेड रूपया हाेना चाहिये था .

आज जब कृषि संकट भयावह हाे गया है ,किसान अपनी फसलाें के उचित दाम से वंचित हैं आैर असहनीय कर्ज के बाेझ तले आत्महत्या कर रहे हैं सरकार कृषि संकट का बुनियादी व ढ़ांचागत समाधान निकालने व कृषि व किसानाें काे बचाने के लिए आगे आने की जगह विदेशाें से खाद्यान्न के आयात काे बढ़ावा देने में लगी है .यह समझ से परे है कि जब अपने किसानाें काे दाल का 50रूपये प्रति किलाे न्यूनतम समर्थन मूल्य देने वाली सरकार विदेशाें से 60से 90रूपये प्रति किलाे के हिसाब से दाल आयात क्याें कर रही है ?

 

देश में जब गेंहूँ का पर्याप्त उत्पादन हाे रहा है ताे अपने किसानाें काे उचित मूल्य देने की जगह सरकार गेंहूँ का आयात करमुक्त क्याें कर रही है ?
कुल मिलाकर माेदी सरकार के इस बजट में कृषि संकट काे दूर करने की काेई दिशा नहीं दिखती बल्कि यह कृषि संकट काे बढ़ाने का काम करेगा .
आज कृषि आैर ग्रामीण उत्पादन से जुडे सभी हिस्साें के संकट का बुनियादी आैर ढ़ांचागत समाधान निकालने की जरूरत है .खेती किसानी के इस भयावह संकट के समाधान के लिए स्वराज अभियान के जय किसान आन्दाेलन व साथी किसान संगठनाें ने 01फरवरी काे जंतर मंतर पर किसान संसद में बजट से किसानाें की उम्मीदाें काे सरकार के सामने रखने के लिए किसान बजट पेश किया था .जिसमें किसानाें की आय सुरक्षा के सवाल काे प्रमुखता से उठाया गया .किसानाें की मांग है कि देश में सभी किसान व खेतिहर परिवाराें की स्थाई आय आश्वस्त करने के लिए एक आय गारंटी प्रणाली बनाई जाय .जिसकाे ‘लाभकारी आैर सार्वभाैमिक मूल्य प्राप्ति का आश्वासन’ (Remunerative and Universal Price Yield Assurance (RUPYA)) नाम दिया गया .इस कार्य याेजना में फसलाें की कीमत का लाभकारी हाेने, इसका लाभ सभी किसानाें काे देने , किसी भी तरह के फसल नुकसान आैर दाम में कमी से किसान काे बचाने आदि तत्व शामिल हाेंगे .

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