-हरियाणा के भिवानी और हिसार से स्वयं सहायता समूह की 100 महिलाएं पहुंची मेले का भ्रमण करने
गुरूग्राम, 22 अक्टूबर। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित व राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान द्वारा समर्थित ‘सरस आजीविका मेला 2024’ में आज राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर), दिल्ली शाखा द्वारा एक महत्वपूर्ण सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र का मुख्य विषय ‘स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात विपणन’, था। जिसे हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) के राहुल रंजन द्वारा संबोधित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय ग्रामीण एवं पंचायती राज संस्थान से चिरंजी लाल कटारिया, सहायक निदेशक, सुधीर कुमार सिंह, शोध एवं प्रशिक्षण अधिकारी, सुरेश प्रसाद , एनआईआरडीपीआर से आशुतोष धामी और नरेश कुमारी आदि उपस्थित थे।
यह सत्र हरियाणा के गुरुग्राम स्थित सेक्टर 29 के लीज़र वैली ग्राउंड में लर्निंग पवेलियन में आयोजित किया गया, जहां हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों से जुड़े एसएचजी के सदस्यों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपने उत्पादों के निर्यात के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई। इस सत्र में प्रमुख रूप से उन चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा की गई जिनका सामना एसएचजी को अपने उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करते समय करना पड़ता है।
इस सत्र के दौरान वक्ता राहुल रंजन ने अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार, निर्यात प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए आवश्यक कानूनी और प्रशासनिक जानकारी, विभिन्न देशों की मांगों और पसंदों के अनुरूप उत्पादों को तैयार करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से वैश्विक विपणन की रणनीतियों आदि पर प्रकाश डाला।
इस आयोजन का उद्देश्य ग्रामीण शिल्पकारों को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है, बल्कि उनके उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना भी है। देशभर के एसएचजी के उत्पादों को एक व्यापक और सम्मानजनक बाजार उपलब्ध कराना है।
सत्र में उपस्थित प्रतिभागियों को राहुल रंजन द्वारा हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे भारत के हस्तशिल्प उत्पादों की अद्वितीयता और विविधता को वैश्विक बाजारों में प्रस्तुत करके न केवल स्वयं सहायता समूह की ग्रामीण महिलाओं की आजीविका में सुधार किया जा सकता है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मजबूती से पेश किया जा सकता है।
सत्र के दौरान वैश्विक ब्रांडिंग और मार्केटिंग, सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स प्रबंधन, बाजार अनुसंधान और ग्राहक मांग, ई-कॉमर्स प्लेटफार्म का उपयोग आदि पर जोर दिया गया।
सत्र में आई अलग अलग राज्यों से ग्रामीण उधमियों के सशक्तिकरण पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का समापन सुझावों और प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जहां उपस्थित प्रतिभागियों ने राहुल रंजन से अपने संदेह और निर्यात प्रक्रिया से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। हस्तशिल्प उत्पादों की निर्यात संभावनाओं को समझने और बाजार में स्थापित करने के लिए कारीगरों ने इस सत्र से बहुत कुछ सीखा। इस प्रकार के आयोजन ग्रामीण शिल्पकारों को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने और उनके उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सरस मेले का आयोजन 29 अक्टूबर तक रहेगा जिसमें रोजाना लगभग पचास हज़ार लोग पहुँच रहे हैं और मेले को सफल बनाने में अपना विशेष तौर पर योगदान दे रहे हैं।
हरियाणा के भिवानी और हिसार से स्वयं सहयता समूह की 100 महिलाएं मेले का भर्मण करने के लिए पहुंची। इन महिलाओ को जिला कार्यात्मक प्रबंधक भिवानी और हिसार से शरीफ अली और विजेंदर श्योराण की अगुआई में लाया गया। ये महिलाएं ज्यादातर हस्तशिल्प, कड़े -चुडिया ,अचार , मुरब्बे ,कॉटन और धागे आदि बनाने का काम करती है। इन लखपति दीदियों को गीता जयंती समारोह, तीज महोत्सव और संसद भवन का दौरा कराया जा चुका है ताकि ये महिलाये अपनी कला को लोगों के सामने प्रदर्शित कर सकें।