नई दिल्ली : नीतीश कुमार के भाजपा से नाता तोड़ने से भाजपा के हाथ से न केवल बिहार की सत्ता चली गई, बल्कि राज्यसभा में भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इस बात बकी आशंका अनहि से जताई जाने लगी है कि संसद के उच्च सदन में नरेंद्र मोदी सरकार को ओडिशा के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाई.एस.आर. कांग्रेस जैसी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ेगा. अहम विधेयकों को राज्यसभा में पास करवाने में इन दलों की मदद लेनी पड़ सकती है.
हालांकि जनता दल यू भाजपा के साथ रहते हुए भी एन डी ए को राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं था. वर्तमान में राज्यसभा में कुल सांसदों की संख्या 237 है जबकि बहुमत का आंकड़ा 119 है. अभी जम्मू-कश्मीर से 4, त्रिपुरा से एक और 3 मनोनीत होने वाली सीटें खाली है. एक निर्दलीय और 5 मनोनीत सदस्यों सहित एन डी ए के मौजूदा सांसदों की संख्या 115 रही है. जद यू के अलग होने पर यह आंकड़ा 110 पर आ गया है. बहुमत के के लिए 9 सांसद चाहिए. उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में JDU के 5 सांसद हैं. इनमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश भी शामिल हैं. अब उपसभापति के लिए भी दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. यह नीतीश कुमार पर निर्भर करेगा कि वे पार्टी की ओर से क्या गाइड लाइन तय करते हैं.
दूसरी तरफ संभावना है कि संसद के शीत सत्र से पहले सरकार राज्यसभा के लिए तीन और लोगों को मनोनीत कर अपना जुगाड़ कर सकती है. इसके अलावा त्रिपुरा की सीट भी भाजपा की झोली में जाने के आसार हैं. इसके बावजूद सरकार का आंकड़ा 114 तक ही पहुंचेगा.
लेकिन परेशानी इस बता की है कि तब बहुमत का नया आंकड़ा 121 पर पहुंच जाएगा. ऐसे में सरकार के पास सात सदस्यों की कमी रहेगी. जाहिर है भाजपा को अहम कानूनों को पास कराने के लिए बीजू जनता दल और वाई एस आर कांग्रेस से मदद की ज़रूरत होगी. दोनों दलों के उच्च सदन में 9-9 सदस्य हैं. सरकार के लिए सुखद बात यह है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में इन दोनों दलों के अलावा टी डी पी और बी एस पी के साथ अकाली दल ने भाजपा उम्मीदवारों का समर्थन किया था. सरकार की रणनीति पर बहुत कुछ निर्भर करेगा .