नई दिल्ली : फिल्म निर्माता अनंत महादेवन ने कहा, “सिनेमा एक उपभोक्ता उत्पाद नहीं है बल्कि एक रचनात्मक कला है”। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि छोटे बजट की फिल्मों की कीमत पर बड़े बजट की फिल्मों को समर्थन मिलता है, क्योंकि लोकप्रिय अभिनेताओं की उपस्थिति के कारण ये फिल्में ज्यादा लाभ कमाती है। छोटे बजट की फिल्मों का अपना दर्शक वर्ग है, लेकिन वितरक और फिल्मों का प्रदर्शन करने वाले उत्साह नहीं दिखाते हैं। हम महोत्सव का मार्ग चुनते हैं, लेकिन हमारी इच्छा रहती है कि हम इन फिल्मों को बेच सके और इन्हें व्यावसायिक फिल्में साबित कर सके।
अभिनेत्री सुहासिनी मुले और उषा जाधव एवं सिनेमेटोग्राफर अल्फोंस रॉय के साथ अनंत महादेवन आज आईएफएफआई, पणजी में अपनी फिल्म ‘माई घाट’’ पर बातचीत कर रहे थे।
यह फिल्म एक मां की कहानी है, जो अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए के संघर्ष करती है। उसके बेटे को गलत तरीके से चोरी के अपराध में फंसा दिया गया है और पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो जाती है।
फिल्म के बारे में सुहासिनी मुले ने कहा, “हम बहुत तेज गति से काम किया करते हैं, लेकिन इस फिल्म की गति बहुत संतुलित है। फिल्म आपको इस बात से अवगत कराती है कि मुख्य किरदार 13 वर्षों से न्याय के लिए संघर्ष कर रही है। अनंत ने ‘मौन’ का बेहद खूबसूरती से उपयोग किया है।
फिल्म के बारे में अनंत ने कहा, “फिल्म दुनिया के सिनेमेटिक भाषा में बात करती है और और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए फिल्म का चुना जाना सम्मान की बात है। यह फिल्म में निर्माता मोहिनी गुप्ता के विश्वास को दर्शाता है। उन्होंने दृढ़ विश्वास व्यक्त किया और मैं उन्हें निराश नहीं कर सकता था।”
केनजीरा फिल्म के निर्देशक मनोज काना ने कहा, “मैं मलयालम थिएटर से हूं। मैंने जनजातियों के साथ बहुत काम किया है। उनके जीवन जीने के तरीके ने मेरे दिल को छू लिया है। ‘केनजीरा’ फिल्म के सभी कलाकार जनजातीय समुदाय से हैं। चायिलम और अमीबा के बाद यह मेरी तीसरी फिल्म है। मनोज काना ने फिल्म निर्माण के लिए वित्त पोषण की दिक्कतों का वर्णन किया। उन्होंने एक घटना का वर्णन किया, जिसमें एक स्कूल बंद हो गया था। स्कूल परिसर में थिएटर आयोजित करके छात्रों को आकर्षित किया गया था।