इन पटाखों का नाम सेफ वॉटर रिलीज़र (स्वास), सेफ मिनिमल एल्युमिनियम (सफल) एवं सेफ थर्माइट क्रैकर (स्टार) रखा गया है।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारतीय आतिशबाजी उद्योग 6000 करोड़ के वार्षिक टर्नओवर से भी अधिक का है एवं 5 लाख से भी अधिक परिवारों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोज़गार के अवसर प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के इस प्रयास का उद्देश्य जहां प्रदूषण को कम करना है वहीं इस उद्योग में शामिल लोगों की आजीविका की रक्षा करना भी है। मंत्री ने बताया कि आतिशबाजी निर्माताओं ने पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रयोगशालाओं में काफी रुचि दर्शायी एवं नये पटाखे बनाने के लिये उनकी निर्माण इकाईयों में किसी परिवर्तन की आवश्यकता भी नहीं होगी।
डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने भी पटाखों में और अधिक सुधार के लिये अनेक कदमों का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि “भारत में पहली बार सीएसआईआर-नीरी में एक उत्सर्जन परीक्षण सुविधा की स्थापना की गई है एवं परम्परागत एवं प्रदूषणहीन पटाखों के उत्सर्जन एवं ध्वनि की निगरानी के लिये एक विस्तृत परीक्षण जारी है।” यह सुविधा आतिशबाजी का उपयोग करते समय नमूनों एवं नापतौल के लिये समस्त उच्च स्तरीय यंत्रों का इस्तेमाल करती है।
मंत्री ने यह भी बताया कि कच्चे माल के निरूपण के लिये एक सुविधा भी अस्तित्व में आने वाली है क्योंकि यह पाया गया है कि कई बार आतिशबाजी में ख़राब कच्चे माल का इस्तेमाल हवा में प्रदूषण के कणों का श्रोत बनता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद शिवकाशी में कच्चे माल के परीक्षण की अतिरिक्त सुविधाएं स्थापित कर इस संबंध में और मज़बूती लाएगा। कुछ औपचारिकताओं के पूरा होने पर परीक्षण की यह प्रक्रिया अगले दो माह में प्रारंभ हो जाने की संभावना है। यह सुविधा पटाखा निर्माण संघ की परीक्षण सुविधाओं के साथ सहयोग एवं साझेदारी कर आ सकती हैं।
आतिशबाजी क्षेत्र पर विस्तृत रुख लेते हुए डॉक्टर हर्षवर्द्धन ने कहा कि अपने सामाजिक-विज्ञानसम्मत उत्तरदायित्व के अनुरूप वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) दीर्घावधि एवं भविष्यगत लक्ष्यों पर कार्य कर रहा है जिनसे स्वच्छ एवं सुरक्षित दीपावली मनाई जा सकेगी।
तकनीकी पहलूः
पटाखों का नामकरण सेफ वॉटर रिलीज़र (स्वास), सेफ मिनिमल एल्युमिनियम (सफल) एवं सेफ थर्माइट क्रैकर (स्टार) रखा गया है।
इसमें उड़ने वाली धूल को दबाने के लिये वाष्प के कण एवं गैसीय उत्सर्जन के लिये घोलने वाला द्रव्य छोड़ने का अद्भुत गुण है, साथ ही आवाज़ के मामले में यह परम्परागत पटाखों जैसा ही है ।
स्वास पटाखे पोटेशियम नाइट्रेट एवं सल्फर का उपयोग नहीं करते जिससे हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड एवं नाइट्रस ऑक्साइड के प्रदूषण के कणों की मात्रा में कमी (30-35%) आती है। इसकी आवाज़ एवं तीव्रता वाणिज्यिक पटाखों के अनुरूप, 105-110 dBA, ही है।
परीक्षणों के अनुसार सुसंगत प्रदर्शन के साथ स्वास के भंडार और उपयोग होने की अवधि 3 सप्ताह है।
स्टार पटाखे भी पोटेशियम नाइट्रेट एवं सल्फर का उपयोग नहीं करते जिससे हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड एवं नाइट्रस ऑक्साइड के प्रदूषण के कणों की मात्रा में कमी (30-35%) आती है । इसकी आवाज़ एवं तीव्रता वाणिज्यिक पटाखों के अनुरूप, 105-110 dBA, ही है।
सफल में एल्युमिनियम का उपयोग न्यूनतम होता है जिससे वाणिज्यिक पटाखों की तुलना में हवा में प्रदूषण फैलाने वाले कणों में काफी कमी (35-40%) आती है । इसकी ध्वनि एवं तीव्रता वाणिज्यिक पटाखों के अनुरूप, 105-110 dBA, ही है।
स्वास/ स्टार/ सफल के परीक्षण हेतु सुरक्षा, स्थायित्व एवं अन्य संबंधित विषयों के दृष्टिकोण से विश्लेषण के लिये पेट्रोलियम एण्ड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गेनाइज़ेशन (पीइएसओ) से सम्पर्क किया गया है।
बैरियम नाइट्रेट को कम क़ीमत वाली पर्यावरण हितैषी सामग्री से परिवर्तित कर अनार के क्रियाशील नमूने विकसित किये जा रहे हैं जिनसे हवा में प्रदूषण फैलाने वाले कणों में अत्यधिक कमी (30-35%) आती है।
इन क्रियाशील नमूनों को शिवकाशी में बड़े पटाखा निर्माताओं के समक्ष सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया है।
इ-आतिशबाजी- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-सीरी (सीएसआईआर-सीरी), एक इलेक्ट्रॉनिक प्रयोगशाला होने के नाते, आतिशबाजी द्वारा मनोरंजन की सामाजिक अभिलाषा की पूर्ति के लिये एक सुरक्षित एवं प्रदूषण मुक्त तकनीक के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाजी का विकास कर रही है । इसमें विभिन्न उत्पाद जैसे इ-लड़ी, इ-अनार, इ-क्रैकर शो इत्यादि सम्मिलित हैं। वर्तमान में सीएसआईआर-सीरी इ-लड़ी की प्रयोगशाला स्तरीय प्रतिकृति के साथ तैयार है।
इ-लड़ी प्रकाश/ ध्वनि के लिये उच्च-वोल्टेज इलेक्ट्रॉस्टेटिक डिस्चार्ज पर आधारित है। थर्मल स्विच को उष्मा देकर इस पटाखे को चलाया जाता है जिससे किसी पारम्परिक पटाखे को चलाने जैसा जोशो-खरोश पैदा होता है। इ-लड़ी में विभिन्न प्रकार का प्रकाश/ ध्वनि देने वाली सुविधाएं होती हैं। पिलानी में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद -सीरी की टीम ने इ-लड़ी की क्रियाशील प्रतिकृति विकसित की है जिसका प्रदर्शन अगले दो माह में करने की योजना है।
नीचे दिया चित्र एक सजावटी प्रतिरूप के माध्यम से इस अवधारणा का प्रयोगशाला –स्तरीय क्रियान्वयन दर्शाता है। उच्च वोल्टेज जनित्र टैस्ला-क्वाइल की अवधारणा के ज़रिये उच्च स्तरीय वोल्टेज प्रदान करने में सक्षम है। इच्छित प्रकाश/ ध्वनि प्राप्त करने के लिये इन पोड्स को समानांतर रूप से जोड़ा जाता है। यहां इ-लड़ी की कार्यप्रणाली को दर्शाता हुआ वीडियो भी संलग्न हैं। इस प्रतिकृति के दूसरे स्वरूप में कॉम्पैक्ट फॉर्म फैक्टर एवं थर्मल एक्चुएशन सुविधा भी शामिल होगी ।
इ-लड़ी की प्रतिकृति
दहन पश्चात नियंत्रण प्रणाली एवं विधियां: वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-नीरी (सीएसआईआर-नीरी) ने ‘प्योर-वायु’ नाम की नयी प्रणाली का विकास कर एरिया सोर्स कंट्रोल का एवं उड़ने वाली धूल से बचाव के लिये फोटे-चिप सामग्री का उपयोग करने की योजना भी बनाई है। वर्तमान में इस प्रणाली का परीक्षण चल रहा है।
कम उत्सर्जन वाले पटाखेः सीएसआईआर-सीइसीआरआई, कराईकुडी ने फ्लैश पाउडर में आमतौर पर इस्तेमाल में लाये जाने वाले एल्युमिनियम एवं एल्युमिनियम-आधारित यौगिकों को बदलकर कम उत्सर्जन वाले पटाखों का विकास किया है।
सीएसआईआर-सीइसीआरआई टीम ने कृष्णा फायरवर्क्स, शिवकाशी के साथ मिल कर अनार के संशोधित रासायनिक घटक जिल-जिल एवं एटम बम विकसित किये हैं, क्योंकि बाज़ार में इनकी बहुत मांग है एवं उद्योगों द्वारा अर्जित लाभ का बड़ा भाग इनसे प्राप्त होता है।
अनार में आवश्यक रूप से एल्कली नाइट्रेट, विभिन्न आकारों वाले एल्युमिनियम चूर्ण एवं कुछ मामलों में प्रकाश की मात्रा बढ़ाने के लिये बाइंडर यानी बंधक पाए जाते हैं। प्राथमिक उष्मा के एक स्रोत के रूप में एवं प्रकाश उत्पन्न करने वाले पदार्थ के तौर पर एल्युमिनियम का उपयोग किया जाता है। ज्वलन ताप को कम करने एवं प्रदूषण फैलाने वाले कणों को कम करने के लिये मैग्नीशियम एल्युमिनियम का समुचित स्थानपन्न हो सकता है। शिवकाशी में किये गए परीक्षणों के दौरान अनारों के अनेक अलग-अलग संशोधित रासायनिक संरूपणों का परीक्षण किया गया। एल्युमिनियम को मैग्नीशियम चिप एवं मैग्नीशियम-आधारित यौगिकों से प्रतिस्थापित कर अनारों के लिये अन्य रासायनिक संरूपण तैयार किये गए। इन परिवर्तित रासायनिक घटकों के स्वभाव का इनके रंग, धुएं, प्रकाश पैदा करने की ऊंचाई, प्रकाश की मात्रा एवं फटने की क्षमता इत्यादि के आधार पर परीक्षण किया गया एवं परिणामों को विश्लेषित कर दर्ज किया गया। इन उत्पादों ने प्रदूषण के कणों, विषैली गैसों, कम धुएं एवं कम ध्वनि के मामले में अच्छे परिणाम दिये। सीएसआईआर-सीइसीआरआई की टीम ने पर्यावरण हितैषी सामग्री का उपयोग कर प्रदूषण फैलाने वाले कणों में 25-35% की कमी वाले अनारों का निर्माण किया है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद -नीरी प्रदूषण फैलाने वाले कणों में 20% की कमी के लिये सुखानेवाले पदार्थ के रूप में राख का उपयोग बंद कर बिजली-पटाखे की प्रभावोत्पादकता का परीक्षण कर रहे हैं।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-नीरी (सीएसआईआर-नीरी) की टीम द्वारा पटाखे फोड़ने के लिये सामग्रियों की उष्माक्षेपी उष्मा का उपयोग करने की अवधारणा पर आधारित पटाखों के ध्वनि उत्पादक क्रियाशील नमूने विकसित किये गए हैं, जो प्रदूषण फैलाने वाले कणों में (30-35%) की कमी वाले हैं, इनमें सल्फर डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता, साथ ही परम्परागत ऑक्सीकारी पदार्थों का उपयोग न करने के कारण इनकी क़ीमत भी कम होती है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की प्रयोगशालाओं का नेटवर्कः
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के नेटवर्क में शामिल प्रयोगशालाओं: सीएसआईआर- केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीरी), सीएसआईआर- केंद्रीय इलेक्ट्रोकैमिकल अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीइसीआरआई), सीएसआईआर- केंद्रीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमइआरआई), सीएसआईआर-केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएलआरआई), सीएसआईआर- भारतीय रसायन प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-आईआईसीटी), सीएसआईआर- भारतीय आविष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआआर-आईआईटीआर), सीएसआईआर- राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-एनबीआरआई), सीएसआईआर-राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (सीएसआईआर-एनसीएल), सीएसआईआर- राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआआर-नीरी) ने आतिशबाजी में उत्सर्जन की अत्याधुनिक एवं वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी प्रौद्योगिकी विकसित करने के उद्देश्य से सीएसआईआर की नवाचार क्षमता में बढ़ोतरी के लिये विशिष्ट लक्ष्य के साथ एक परियोजना तैयार की है।