नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिकाकर्ता हरेन्द्र ढींगरा के तथ्यों व तर्कों के सामने हरियाणा सरकार के पैर उखड़े
एन जी टी में हरियाणा सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा : नहीं करेंगे उक्त रूट से एक्सप्रेसवे का निर्माण
याचिकाकर्ता का आरोप : जानबूझ कर अनैतिक फायदे के लिए किया गया रूट में बदलाव
नए रूट से अरावली संरक्षित क्षेत्र के 12 किलोमीटर तक वन क्षेत्र को होता भारी नुकसान
दिल्ली एन सी आर इकोसिस्टम को था खतरा जबकि वन्य जीवों की 14 प्रजातियों को होना पड़ता दरबदर
सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक
नई दिल्ली /गुडगाँव : गुडगाँव मानेसर एकीकृत मास्टरप्लान 2031 में अनावश्यक बदलाव कर गुड़गांव मानेसर एक्सप्रेसवे की रूट चेंज करने के मामले में हरियाणा के कैबिनेट मिनिस्टर राव नरबीर के सपने को तगड़ा झटका लगा. उनके साथ कुछ बड़े व्यवसायियों की मोटी कमाई करने की अनैतिक योजना को भी आर टी आई एक्टिविस्ट हरेन्द्र ढींगरा की अथक कोशिश ने धूल चटा दिया. इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रिंसिपल बेंच के समक्ष दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण एवं वन संरक्षण की दृष्टि से इसे बेहद संगीन माना और हरियाणा सरकार से इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करने को कहा . लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने रखे गए तथ्यों का कोई जवाब नहीं होने के कारण हरियाणा सरकार ने ट्रिब्यूनल में हलफनामा दायर कर इस प्रोजेक्ट के निर्माण से कदम पीछे खींच लिया. याचिकाकर्ता द्वारा उठाये गए सवालों में उलझता देख हरियाणा सरकार ने उक्त रूट से एक्सप्रेस वे निर्माण के प्रस्ताव से पल्ला झाड लिया. ट्रिब्यूनल ने यह कहते हुए याचिका को निस्तारित किया कि सरकार द्वारा उक्त हाईवे का निर्माण नहीं करने की घोषणा याचिकाकर्ता हरेन्द्र ढींगरा की मांग के अनुरूप है और इससे उनकी शिकायत का हल हो गया है. जाहिर है इस प्रस्ताव ने केबिनेट मंत्री के काम करने के तरीके पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है . याचिकाकर्ता श्री ढींगरा ने जनहित की इस लड़ाई के सुखद अंत पर संतोष जाताया है.
उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में उक्त याचिका वर्ष 2017 आर टी आई एक्टिविस्ट हरेन्द्र ढींगरा ने यह कहते हुए दायर की थी कि हरियाणा के केबिनेट मंत्री राव नरबीर ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए गुडगाँव मानेसर मास्टर प्लान में प्रस्तावित गुडगाँव मानेसर एक्सप्रेस वे की रूट को अपने फायदे के लिए बदल दिया . इससे अरावली संरक्षित क्षेत्र को बड़ा नुकसान होगा जो दिल्ली एन सी आर क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक साबित होगा.
एक्सप्रेस वे की रूट बदलने का विरोध करने के लिए ट्रिब्यूनल के समक्ष याचिका कर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों व तथ्यों और ग्रीन ट्रिब्यूनल की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब हरियाणा सरकार के पास नहीं था. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय हरियाणा सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हरियाणा, वन विभाग हरियाणा सरकार तथा नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया को पार्टी बनाया था. अपनी याचिका में आरटीआई एक्टिविस्ट हरेंद्र ढींगरा ने स्पष्ट रुप से हरियाणा के पीडब्ल्यूडी एवं वन व पर्यावरण मंत्री राव नरबीर एवं एक कंपनी पर सीधा आरोप लगाया था कि गुड़गांव मानेसर मास्टर प्लान 2031 में जानबूझकर बदलाव किया गया और गुडगाँव मानेसर एक्सप्रेस वे की रूट को पूरी तरह बदल कर अपने अनैतिक फायदे के लिए पूरी योजना को ही बदल दिया गया. उन्होंने 6 अप्रैल 2017 को आर टी आई में मिले जवाब का हवाला देते हुए ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने बताया कि गुडगाँव मानेसर एक्सप्रेस वे की डीपीआर तैयार करने के लिए एईकोम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को कंसल्टेंसी दी गई थी. इसके लिए उन्हें हरियाणा पी डब्ल्यू डी विभाग की ओर से लगभग 1करोड़ 15 लाख रु की मोटी फीस दी गयी और उक्त कंपनी ने कैबिनेट मंत्री और अन्य बिल्डर व्य्वासायियों के इशारे पर गुड़गांव मानेसर 2031 मास्टर प्लान में प्रस्तावित उक्त एक्सप्रेस हाईवे की रूट के इतर एंबिएंस मॉल से लेकर मानेसर एनएसजी तक बदले हुए रूट की योजना पूरी तरह तैयार कर के सबमिट कर दी. उक्त कम्पनी ने भी पर्यावरण के मूल सिद्धांतों को दरकिनार करते हुए मंत्री और व्य्वासायियों के अनुकूल अपनी डीपीआर रिपोर्ट तैयार कर दी.
याचिका कर्ता श्री ढींगरा ने उक्त प्रोजेक्ट के रूट बदलने का विरोध करते हुए ट्रिब्यूनल को यह भी बताया कि अनियमितता बरतते हुए सरकार ने गुड़गांव के डिस्ट्रिक्ट रेवेन्यू ऑफिसर के नाम बदले हुए रूट के अनुसार उक्त प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहित करने का आदेश भी जारी कर दिया. उल्लेखनीय है कि उक्त एक्सप्रेस वे के निर्माण की जिम्मेदारी पी डब्ल्यू डी हरियाणा ने एन एच ए आई को दी . याचिकाकर्ता का कहना था कि अगर इस बदले हुए रूट के अनुसार एक्सप्रेस वे का निर्माण कराया गया तो लगभग 12 किलोमीटर की दूरी अरावली रेंज से होकर गुजरेगी जो गांव गैरतपुर बास, बार गुर्जर, कोटा, अकबरपुर और बाघनकी से होते हुए मानेसर तक जाएगी. उन्होंने कहा था कि अगर यह प्रोजेक्ट धरातल पर उतर आया तो इससे अरावली वन क्षेत्र पूरी तरह खतरे में पड़ जाएगा. इससे उक्त क्षेत्र में वन और वन्य जीव/प्राणी के जीवन पर काफी बुरा असर पड़ेगा. प्रतिदिन उस सड़क से गुजरने वाले वाहनों और वन्य प्राणी के बीच संघर्ष होता दिखेगा. साथ ही इससे दिल्ली-एनसीआर के लिए आवश्यक इकोसिस्टम भी पूरी तरह चरमराने के हालात बन जायेंगे.
उन्होंने आरोप लगाया था कि हरियाणा का पी डब्ल्यू डी विभाग सस्टेनेबल डेवलपमेंट के नाम पर दिल्ली एनसीआर के पब्लिक हेल्थ और इकोलॉजी को पूरी तरह दरकिनार करने की कोशिश में जुट गया है.
सुनवाई के दौरान हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने जवाब में बताया कि उन्हें इस प्रोजेक्ट की जानकारी तक नहीं है. हैरानी तो इस बात से और हुई कि इस प्रोजेक्ट से संबंधित केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय , हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वन विभाग हरियाणा से उनका कंसेंट नहीं लिया गया, ऐसा बताया गया.
गुड़गांव मानेसर मास्टर प्लान 2031 में किये गए बदलाव के बाद गुडगाँव मानेसर एक्सप्रेस-वे के लिए जिस रूट का चयन जानबूझ कर किया गया वह क्षेत्र अरावली नोटिफिकेशन एक्ट 1992 के तहत संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. यह क्षेत्र गैर मुमकिन पहाड़ है. जानकारों का कहना है कि जमीन का नोमेन क्लेचर किसी भी सूरत में नहीं बदला जा सकता. इसलिए गैर मुमकिन पहाड़ को किसी भी प्रकार से न तो कृषि भूमि बतायी जा सकती है और न ही अन्य श्रेणी में रख कर नुकसान पहुंचाया जा सकता.
ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका कर्ता ने इसके लिए जिम्मेदार हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं वन विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किया. उक्त मामले की सुनवाई के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष यह भी खुलासा हुआ कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया जिसको हरियाणा सरकार ने उक्त एक्सप्रेस वे बनाने की जिम्मेदारी दी थी के लिए हरियाणा सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर इसके लिए जमीन अधिग्रहित करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी. पहले सेक्शन 4 का नोटिस दिया गया बाद में सेक्शन 6 का नोटिस जारी किया जाना था जो नहीं किया गया. इसके बावजूद इतने बड़े प्रोजेक्ट के प्रति वन विभाग, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी बेखबर बने रहे जबकि उनकी जिम्मेदारी थी अरावली संरक्षित क्षेत्र की देखरेख करना और उसका संरक्षण करना.
उल्लेखनीय है कि 31 मार्च 2013 को जारी नोटिफिकेशन के तहत जिस रूट को इस एक्सप्रेस वे के निर्माण के लिए चुना गया था उससे अरावली क्षेत्र को पूरी तरह अलग रखा गया था. तब के प्रस्ताव के अनुसार उक्त एक्सप्रेस वे जिला के गांव की टीकली, सकतपुर, शिकोहपुर, और नौरंगपुर जैसे गांव से होते हुए निर्माण किया जाना था. लेकिन बदले हुए रूट से गैर मुमकिन पहाड़ , गैर मुमकिन राड, गैर मुमकिन बीहर , बंजर बीड और घने पेड़ पौधे वाले वन क्षेत्र का एरिया बुरी तरह प्रभावित होता. नया प्रस्तावित रूट अरावली क्षेत्र से सम्बंधित गांव गैरतपुर बॉस , बार गुर्जर, कोटा, अकबरपुर और बाघनकी के क्षेत्र के सीने को चीड़ता हुआ निकलता.
याचिका कर्ता द्वारा कहा गया कि गुडगाँव मानेसर एक्सप्रेस हाईवे के लिए चयनित नए रूट से पूरी तरह वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन होगा. प्रस्तावित रूट से हरियाणा के कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सहित कई अन्य बड़ी कंपनियों और व्यावसायियों को मुआवजे के रूप में फायदा पहुंचने की कोशिश है. याचिका में यहां तक बताया गया कि जो डीपीआर तैयार की गई थी उसके अनुसार उक्त एक्सप्रेस वे के लिए टोल टैक्स कलेक्शन सेंटर संबंधित मंत्री एवं मेसर्स गवर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड की जमीन में बनाया जाना प्रस्तावित है और यही कारण है कि बड़े पैमाने पर मुआवजे के रूप में फायदा उठाने की दृष्टि से कैबिनेट मंत्री और गावर कंस्ट्रक्शन जिसके मालिक संजय सिंह है ने उक्त इलाके में बड़े पैमाने पर जमीन की खरीद की. इसके अलावा इस प्रोजेक्ट का सीधा फायदा डीपीएस वर्ल्ड अरावली के डायरेक्टर एवं मालिक राव कमल वीर सिंह एनएचएआई के कांट्रेक्टर मेसर्स गावर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और उनके सब कॉन्ट्रैक्टर ,अंसल अरावली रिट्रीट, गोल्फ कोर्स और एमेटी यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं को पहुंचाने की कोशिश है. इसके लिए उन्होंने प्रस्तावित क्षेत्र में आने वाली जमीनों के लैंड रिकॉर्ड की विस्तृत जांच का व्योरा भी रखा जिसकी जांच कराने की मांग भी की थी.
इस पूरे मामले में बड़ा सवाल यह स्पष्ट हो गया कि अपनी जमीनों की ऊंची कीमत पर मुआवजे वसूलने की चाहत में लगभग 12 किलोमीटर अरावली संरक्षित क्षेत्र को पूरी तरह बर्बाद करने की कोशिश की गई थी जो फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1988 और सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के तहत प्रतिबंधित है.
एक्सप्रेस वे की रूट बदलने की योजना तो इन तथ्यों को भी दरकिनार कर बनाई गयी जब वन विभाग ने उक्त क्षेत्र में कई संरक्षित वन्य प्राणी के रहने की पुष्टि की थी. याचिकाकर्ता ने 30 मार्च 2017 को अपनी आरटीआई के जवाब का हवाला देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को बताया कि इस वन क्षेत्र में वन विभाग ने भी माना है कि यहां तेंदुए , हिरण, गोल्डन जेकल और नीलगाय की संख्या सैकड़ों में हैं.
जाहिर है अगर उक्त अरावली क्षेत्र से 12 किलोमीटर की सड़कें गुजरती तो प्रतिदिन इस प्रकार की खबरें पढ़ने को रोज मिलती कि आज वाहन से टकराकर एक वन्य प्राणी की मौत हो गई. वाहन और वन्य प्राणी के बीच का संघर्ष चलता रहत जिससे वन्य प्राणी अपनी जान बचाने के लिए दूसरे क्षेत्र की ओर रुख कर सकते थे. इस बात की पुष्टि वर्ष 2017 में वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से हरियाणा राज्य के गुड़गांव, फरीदाबाद, मेवात, रेवाड़ी एवं महेंद्रगढ़ जिले के अधीन लगभग 200 स्क्वायर मीटर्स अरावली क्षेत्र का पहली बार किये गए वाइल्डलाइफ सर्वे से भी हुयी है. इस सर्वे में भी वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने माना है कि इस क्षेत्र में वन्य जीवों की 14 प्रकार की प्रजातियां रहती है.
स्पष्टतः याचिकाकर्ता श्री ढींगरा द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष रखे उपरोक्त तथ्यों के सामने हरियाणा सरकार की एक न चली और उन्हें अपने कदम वापस खींचने पड़े. इस अति महत्वपूर्ण एवं पर्यवरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील मामले की लड़ाई का अंत सुखद तो हुआ लेकिन इसमें हरियाणा सरकार की जबरदस्त किरकिरी इस बात को लेकर हुई कि जिन्हें वन क्षेत्र एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के कारगर उपाय करने चाहिए उन्होंने ही इसे बर्बाद करने की पटकथा लिखने की पुरजोर कोशिश की.
बहरहाल, सरकार द्वारा 18 मई को हलफनामा दायर कर उक्त रूट से एक्सप्रेस वे का निर्माण नहीं करने की घोषणा करने से मामले का पटाक्षेप तो हो गया लेकिन इससे वन विभाग हरियाणा और हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों संदेह के दायरे में आ गए है. दोनों विभागों की घोर लापरवाही भी सामने आई है. दूसरी तरफ बड़े पैमाने पर अनियमितता बरतने के भी खुलासा हुआ है. लगभग 3000 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद इनका निष्क्रीय रहना दोनों विभागों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.