चंडीगढ़, 9 मार्च : हरियाणा सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दुगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि को लाभकारी बनाने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने, किसान परिवारों और भूमिहीन श्रमिकों के शारीरिक, वित्तीय और मनोवैज्ञानिक दवाब को कम करने के लिए अनेक कदम उठाएं हैं।
आज यहां राज्य विधानसभा में बजट 2018-19 पेश करते हुए वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि मेरा मानना है कि राज्य का आर्थिक विकास तब तक मायने नहीं रखता जब तक कि उसके लाभ स्पष्ट रूप से कृषि क्षेत्र को न मिले।
उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध राज्य सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दुगुनी करने के निर्धारित लक्ष्य को पाने और उनकी बेहतरी के लिए सात कार्य बिंदुओं पर केन्द्र सरकार के साथ मिलकर कार्य कर रही है।
हमारे किसानों के कठोर परिश्रम और सरकार के हस्तक्षेपों के फलस्वरूप, खाद्यान्नों का उत्पादन वर्ष 2014-15 में 153 लाख मीट्रिक टन से 17 प्रतिशत से भी अधिक बढक़र वर्ष 2016-17 में 180 लाख मीट्रिक टन हो गया। वर्ष 2017-18 के लिए खाद्यान्नों के उत्पादन का लक्ष्य 174 लाख मीट्रिक टन निर्धारित किया गया है।
हरियाणा खाद्यान्नों के उत्पादन और खरीद में एक अधिशेष राज्य रहा है। रबी विपणन सीजन 2017-18 के दौरान, केन्द्रीय पूल के लिए 1625 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 74.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई। खरीफ विपणन सीजन 2017-18 के दौरान, सामान्य और ग्रेड-ए (लेवीएबल) किस्मों के 59.17 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद क्रमश: 1550 रुपये और 1590 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गई। गेहूं और धान की यह खरीद अब तक की सर्वाधिक खरीद है।
रबी विपणन सीजन 2018-19 के लिए, राज्य में खरीद एजेंसियों ने 1735 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लगभग 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद के प्रबन्ध किए हैं। यह भाव पिछले वर्ष की तुलना में 110 रुपये प्रति क्विंटल अधिक है।
राज्य सरकार ने गन्ना किसानों के हितों की रक्षा के लिए गन्ने का अब तक का सर्वाधिक 330 रुपये प्रति क्विंटल का मूल्य निर्धारित किया है। इसके अलावा, किसानों से सूरजमुखी, मूंग, बाजरा और सरसों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गई है और भविष्य में भी की जाती रहेगी।
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि राज्य सरकार भारत सरकार के उस निर्णय का स्वागत करती है कि सभी अघोषित खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य उनकी उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना होगा, जैसा कि रबी की अधिकतर फसलों के लिए है। यह ऐतिहासिक निर्णय भारतीय किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।
पानी और बीज के अतिरिक्त मृदा कृषि में एक महत्वपूर्ण आदान है। राज्य मृदा में मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की पहचान करने के लिए मृदा परीक्षण कार्यक्रम लागू कर रहा है। प्रदेश में 34 स्थैतिक और 2 मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं (एसटीएल) संचालित हैं। राज्य में लगभग 13.34 लाख मृदा नमूने एकत्रित किए गये और 40 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में जैविक खाद और जैव उर्वरकों के उपयोग के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत 50 एकड़ प्रत्येक के 20 कलस्टरों में जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और 250 गांवों में किसानों को शिक्षित करने के लिए नाबार्ड के सहयोग से जलवायु स्मार्ट कृषि योजना शुरू की गई है।
उर्वरकों की आवश्यकता और उपयोग को सुव्यवस्थित बनाने के लिए, राज्य सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है और उर्वरक रिटेल आउटलेट्स पर 7300 प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनें स्थापित की गई हैं।
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि सरकार ने कृषि को लाभकारी बनाने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने तथा किसान परिवारों और भूमिहीन श्रमिकों के शारीरिक, वित्तीय और मनोवैज्ञानिक दवाब को कम करने के लिए उपाय करने हेतु ‘हरियाणा किसान कल्याण प्राधिकरण’ स्थापित करने का निर्णय लिया है।
बागवानी का जिक्र करते हुए कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि वर्तमान सरकार इस तथ्य को बखूबी समझती है कि किसानों की आय बढ़ाने और उनकी बेहतरी के लिए बागवानी, पशुपालन, डेरी, मत्स्य पालन आदि में कृषि का विविधिकरण अति आवश्यक है। इस दिशा में, सरकार ने वर्ष 2030 तक राज्य में बागवानी के तहत क्षेत्र को 7.5 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक बढ़ाकर दोगुना करने तथा उत्पादन को तीन गुणा करने के उद्देश्य से ‘हॉर्टिकल्चर विजन’ तैयार किया है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सरकार ने 140 फसल समूहों में 340 ‘बागवानी गांव’ घोषित किये हंै, जिसके लिए फसल विविधिकरण तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक फसल समूह विकास कार्यक्रम (सीसीडीपी) तैयार किया गया है। इसके अलावा, राज्य सरकार उच्च मूल्य वाली सब्जियों और उनके प्रत्यक्ष विपणन के लिए फरीदाबाद जिले में एक पायलट परियोजना शुरू करके 13 एनसीआर जिलों में पेरी-अर्बन खेती को बढ़ावा दे रही है।
तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों के साथ करनाल में प्रदेश का पहला बागवानी विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है। वैश्विक संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर कार्य करने की परिकल्पना की गई है। बागवानी फसलों में प्रदर्शन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, प्रत्येक जिले में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। मधुमक्खी पर भारत में अपनी तरह का पहला केंद्र 2017 में कुरुक्षेत्र में स्थापित किया गया तथा पलवल, झज्जर और नारनौल में तीन उत्कृृष्टता केंद्रों पर कार्य शुरू हो चुका है।
वित्त मंत्री ने कहा कि थोक बाजार में कम कीमतों के दौरान किसानों को प्रोत्साहन देकर उनके जोखिम को कम करने के लिए बागवानी फसलों में ‘भावांतर भरपाई योजना’ शुरू की गई है। प्रथम चरण में, चार फसलों नामत: प्याज, टमाटर, आलू और फूलगोभी को इस योजना के तहत शामिल किया गया है।
केंद्र सरकार ने कृृषि उत्पादों की प्रणाली को सुचारू, पारदर्शी और किसान/आढ़ती हितैषी बनाने के लिए ई-एनएएम (राष्ट्रीय कृृषि बाजार) के नाम से ई-मार्केट प्लेटफॉर्म शुरू किया है। प्रदेश में 54 मंडियों को इस प्लेटफार्म से जोड़ा जा चुका है तथा 54 और मंडियों को इस वर्ष के अंत तक जोड़ दिया जाएगा।
पशुपालन एवं डेरी
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि पशुपालन और डेरी क्षेत्र एक अन्य क्षेत्र है, जिसे ध्यान केंद्रित करने के लिए चिह्नित किया गया है, क्योंकि यह क्षेत्र किसानों की आय को बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारे किसानों के कठोर परिश्रम और सरकार से व्यापक सहायता के कारण, प्रदेश में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दूध की उपलब्धता 329 ग्राम की राष्ट्रीय औसत की तुलना में 878 ग्राम के स्तर पर पहुंच गई है। प्रदेश में वीटा बूथों के माध्यम से पाश्च्युरीकृत ए-2 गाय का दूध उपलब्ध करवाने वाला हरियाणा देश का एकमात्र राज्य है।
आवारा बैलों की समस्या से निपटने के साथ-साथ मादा पशुओं की संख्या में वृद्धि करके दूध उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों में, सरकार का वर्ष 2018-19 में बड़े पैमाने पर सेक्सड सीमन टैक्नोलोजी अपनाने का प्रस्ताव है। इस तकनीक के तहत गाय के 90 प्रतिशत से अधिक बछिया पैदा होंगी, जिससे न केवल आवारा बैलों की समस्या हल होगी, बल्कि दुग्ध उत्पादन के लिए मादा पशुओं की उपलब्धता में भी वृद्धि सुनिश्चित होगी।
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा, ‘‘हरियाणा विश्व प्रसिद्ध मुर्राह नस्ल की भैंस का गर्वित भंडार है। मुर्राह जर्मप्लाजम के और अधिक विकास, प्रचार और संरक्षण के लिए, मैं वर्ष 2018-19 के दौरान नारनौंद उपमण्डल, हिसार में ‘मुर्राह अनुसंधान एवं कौशल विकास केंद्र’ स्थापित करने का प्रस्ताव करता हँू। यह केंद्र स्वरोजगार के लिए डेरी/डेरी फार्मिंग के मूल्य वर्धित उत्पादों हेतु महिलाओं, बेरोजगार युवाओं और किसानों का कौशल विकास करके मुर्राह नस्ल की भैंसों का समग्र विकास सुनिश्चित करने में एक दूरगामी कदम साबित होगा।’