नई दिल्ली ( 4 दिसंबर ) : दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता और मशहूर अभिनेता शशि कपूर का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को मुंबई में 79 साल की उम्र में निधन हो गया।
शशि कपूर राज कपूर और शम्मी कपूर के सबसे छोटे भाई थे। वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शशि कपूर का असली नाम बलबीर राज कपूर था। साल 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। साल 2015 में उन्हें 2014 के दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
शशि कपूर ने हिन्दी सिनेमा की 160 फिल्मों में काम किया था। वे 79 साल के थे। 60 और 70 के दशक में शशि कपूर ने जब-जब फूल खिले, कन्यादान, शर्मीली, आ गले लग जा, रोटी कपड़ा और मकान, चोर मचाए शोर, दीवार कभी-कभी और फकीरा जैसी कई फिल्में में काम किया।
शशि कपूर की पत्नी जेनिफर की 1984 में कैंसर से मौत होने के बाद वह काफी अकेले रहने लगे थे और उनकी तबीयत भी खराब होती चली गई। बीमारी की वजह से शशि कपूर ने फिल्मों से दूरी बना ली।
शशि कपूर का असली नाम बलबीर राज कपूर है। इनका जन्म जाने माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर पर हुआ। अपने पिता एवं भाइयो के नक़्शे कदम पर चलते हुए इन्होने भी फ़िल्मो में ही अपनी तक़दीर आजमाई। शशि कपूर ने ४० के दशक से ही फ़िल्मो में कम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मो में भूमिकाये निभाई।
इन्होने मुंबई के डोन बोस्की सकूल से पदाई पूरी की। पिता पृथ्वीराज कपूर इनको छुटिट्यो के दोरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इसकी का नतीजा रहा की शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें ‘आग’ (१९४८) और ‘आवारा’ (१९५१) में भूमिकाएं दी। आवारा में उन्होंने राजकपूर (जय रुद्) बचपन का रोल किया था। ५० के दशक मे पिता की सलाह पर वे गोद्फ्रे कैंडल के थियेटर ग्रुप ‘शेक्स्पियाराना’ में शामिल हो गए और उसके साथ दुनिया भर में यात्राये की। इसी दोरान गोद्फ्रे की बेटी और ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर से उन्हें प्रेम हुआ और मात्र २० वर्ष की उम्र में १९५० में विवाह कर लिया। शशि कपूर ने गैर परम्परागत किस्म की भूमिकाओ के साथ सिनेमा के परदे पर आगाज किया था। उन्होंने सांप्रदायिक दंगो पर आधारित धर्मपुत्र (१९६१) में काम किया था। उसके बाद चार दीवारी और प्रेमपत्र जैसी ऑफ बीत फ़िल्मो में नजर आये।
वे हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने हाउसहोल्डर और शेक्सपियर वाला जैसी अंग्रेजी फ़िल्मो में मुख्या भूमिकाये निभाई। वर्ष १९६५ उनके लिए एक महत्वपूर्ण साल था। इसी साल उनकी पहली जुबली फ़िल्म ‘जब जब फूल खिले’ रिलीज हुई और यश चोपड़ा ने उन्हें भारत की पहली बहुल अभिनेताओ वाली हिंदी फ़िल्म ‘वक्त’ के लिए कास्ट किया। बॉक्स ऑफिस पर लगातार दो बड़ी हिट फ़िल्मो के बाद व्यावहारिकता का तकाजा यह था की शशि कपूर परम्परागत भूमिकाये करे, लेकिन उनके अन्दर का अभिनेता इसके लिए तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने ‘ए मत्तेर ऑफ़ इन्नोसेंस’ और ‘प्रीटी परली ६७’ जसी फ़िल्मे की. वहीँ हसीना मन जाएगी, प्यार का मोसम ने उन्हें एक चोकलेटी हीरो के रूप में स्थापित किया। वर्ष १९७२ की फ़िल्म सिथार्थ के साथ उन्होंने अन्तराष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी मोजुदगी कायक राखी.
७० के दसक में शशि कपूर सबसे व्यस्त अभिनेताओ में से एक थे। इसी दसक में उनकी ‘चोर मचाये शोर’, दीवार, कभी – कभी, दूसरा आदमी और ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम’ जैसी हिट फ़िल्मे रिलीज हुयी. वर्ष १९७१ में पिता पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद शशि कपूर ने जेनिफर के साथ मिलकर पिता के स्वप्न कोजारी रखने के लिए मुंबई में पृथ्वी थियेटर का पुनरूथान किया। अमिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फ़िल्मो दीवार, कभी – कभी, त्रिशूल, सिलसिला, नमक हलाल, दो और दो पांच, शान ने भी उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलवाई.