गुरुग्राम : हरियाणा में पहली बार गुडग़ांव के लेजरवैली पार्क में आयोजित हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले के अंतिम दिन देश की विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं का संगम दिखाई दिया। देश के अलग-अलग प्रदेशों से आए कलाकार अपनी-अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से दर्शकों को देश की महान संस्कृति का दर्शन करवा रहे हैं। कलाकारों की बेहतरीन व मनमोहक प्रस्तुतियों को देखकर मेले में आने वाले दर्शक खुद को लोक गीतों पर झूमने से रोक नहीं पा रहे हैं। इस चार दिवसीय मेले में दर्शकों को आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारत की महान संस्कृति से रूबरू होने का अवसर मिला, जिसे मेले के आखिरी दिन कोई भी नहीं गंवाना चाहता था। रविवार होने के कारण भी हरियाणा और आसपास के प्रदेशों के लोगों का जनसमुह हिंदू अध्यात्मिक एवं सेवा मेले को देखने के लिए उमड़ा। अंतिम दिन लगभग एक लाख लोग मेले में पहुंचे। दर्शकों ने इस मेले के अपने अपने नजरिये से देखा :
पहली बार देखा ऐसा मेला
आज से पहले काफी मेले देखे लेकिन ऐसा मेला पहली बार देखने को मिला है। यहाँ एक साथ अनेक संस्कृतियों के दर्शन हुए
मोहिनी, दर्शक
संस्कृति और परम्पराओं से हुए रूबरू
मेला देख कर काफी खुशी मिली। मेले में आकर अपनी परम्पराओं और संस्कृति के महत्व के बारे में काफी नई जानकारी मिली
सीमा, दर्शक
पहली बार देखा हिन्दू मेला
आज तक काफी मेले देखने को मिले लेकिन इस तरह का हिन्दू मेला पहली बार देखने को मिला है। मेला देखने के बाद अपनी महान संस्कृति पर काफी गर्व महसूस हो रहा है।
संजय, दर्शक
बढ़ेगा सैनिकों का मनोबल
आज तक इतिहास में ऐसा कोई मेला नहीं हुआ जहां सैनिकों को एक बड़े मंच पर इतना मान सम्मान मिला हो । इस मेले में सैनिकों को मिले मान सम्मान से देश के सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा।
पंकज चौहान, सैनिक
आजादी के 70 साल बाद शुरु हुआ आजादी का दौर
अंग्रेजों से आजादी तो 1947 में मिल गई थी लेकिन वास्तविक आजादी का दौर तो अब शुरू हुआ है। मेले के इस आयोजन से हमारे बच्चों को हिन्दू संस्कृति के बारे में जानकारी मिलेगी। इस तरह के आयोजन जरुरी हैं।
बी. डी. वशिष्ट
ज्ञानवर्धक रहा मेला
मेले में आये यश, अनुष्का और नीतू ने बताया कि अभी तक मेले में घूमने और मौज मस्ती के लिए जाते थे लेकिन इस मेले में हिंदू संस्कृति के बारे में जानकारी मिली यह मेला काफी ज्ञानवर्धक रहा।
समरसता को मिलेगा बढ़ावा
इस तरह के मेले के आयोजन से समरसता को बढ़ावा मिलेगा। गाँव में भी ऐसे आयोजन होने चाहिएं। इससे जात-पात और छुआ छूत खत्म होगी और साधु संतों का मान सम्मान बढ़ेगा
सन्त याशरण