नई दिल्ली : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सैन्य नेतृत्व से वर्तमान समय में लगातार बदल रहे भू-राजनीतिक परिदृश्य में रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए तर्कसंगत ढ़ग से सोचने, अप्रत्याशित परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढालने और नवीनतम प्रौद्योगिक प्रगति का लाभ उठाने का आह्वान किया है। 19 अक्टूबर को नई दिल्ली में 62वें राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (एनडीसी) पाठ्यक्रम (2022 बैच) के एमफिल दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, रक्षा मंत्री ने अधिकारियों से रणनीतिक विचारक बनने का आग्रह किया, जो भविष्य के संघर्षों का अनुमान लगाने, वैश्विक राजनीतिक गतिशीलता को समझने तथा बुद्धिमत्ता और समानुभूति दोनों के साथ नेतृत्व करने में सक्षम हों।
रक्षा मंत्री ने कहा: “वर्तमान समय में युद्ध पारंपरिक युद्ध क्षेत्रों से आगे निकल गया है और अब एक बहु-क्षेत्रीय वातावरण में संचालित होता है, जहाँ साइबर, अंतरिक्ष और सूचना युद्ध, पारंपरिक अभियानों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं। साइबर हमले, दुष्प्रचार अभियान और आर्थिक युद्ध ऐसे साधन बन गए हैं, जो बिना एक भी गोली चलाए पूरे देश को अस्थिर कर सकते हैं। सैन्य नेतृत्व के पास जटिल समस्याओं का विश्लेषण करने और अभिनव समाधान तैयार करने की क्षमता होनी चाहिए।”
श्री सिंह ने आज के समय में तेजी से हो रही प्रौद्योगिक प्रगति को सबसे महत्वपूर्ण ताकत बताया, जो भविष्य के लिए तैयार सेना के विकास को गति प्रदान करती है। उन्होंने कहा, “ड्रोन और स्वायत्त वाहनों से लेकर कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) और क्वांटम कंप्यूटिंग तक, आधुनिक युद्ध को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियां बहुत तेजी से विकसित हो रही हैं। हमारे अधिकारियों को इन तकनीकों को समझना चाहिए और उनका उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए।”
रक्षा मंत्री ने रक्षा अधिकारियों से इस बात का गहन विश्लेषण करने का आह्वान किया कि एआई जैसी विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का सबसे अच्छा लाभ कैसे उठाया जाए, जिसमें सैन्य अभियानों में आमूल-चूल बदलाव लाने की क्षमता है। उन्होंने मानवीय हस्तक्षेप के महत्व पर रोशनी डालते हुए, लिए जाने वाले निर्णयों में एआई की सीमा तय करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। मंत्री महोदय ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में एआई पर बढ़ती निर्भरता जवाबदेही और अनपेक्षित परिणामों की संभावना के बारे में चिंताएं पैदा कर सकती है।
श्री सिंह ने लोगों द्वारा दैनिक आधार पर उपयोग किए जाने वाले उपकरणों और प्रौद्योगिकियों को विरोधियों द्वारा हथियार बनाने की संभावना से निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “यह सोचना कि हमारे विरोधी इन औजारों का दुरुपयोग कर रहे हैं, हमें इस बात की याद दिलाता है कि हमें इन खतरों के लिए कितनी तत्परता से तैयारी करनी चाहिए। एनडीसी जैसी संस्थाओं को अपने पाठ्यक्रम को इस तरह से विकसित करना चाहिए कि न केवल इसमें इस तरह के अपरंपरागत युद्ध पर केस स्टडी शामिल हो, बल्कि इसमें रणनीतिक नवाचार को भी बढ़ावा दिया जाए। पूर्वानुमान लगाने, अपने आपको परिस्थिति के अनुकूल ढालने और प्रतिक्रिया करने की क्षमता हमेशा उभरने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारी तैयारी को परिभाषित करेगी।’’
“सैन्य नेतृत्व के सामने मौजूद नैतिक दुविधा के पहलू पर कि किस सीमा तक मशीनों को जीवन-मरण के फैसले लेने चाहिए, रक्षा मंत्री ने कहा कि नैतिकता, दर्शन और सैन्य इतिहास में अकादमिक शिक्षा अधिकारियों को संवेदनशील विषय को संभालने और सही निर्णय लेने के लिए टूल्स प्रदान करेगी। उन्होंने वर्तमान युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए भविष्य के नेतृत्व में नैतिक ढांचे को स्थापित करने में एनडीसी जैसी रक्षा शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक सुरक्षा गठबंधनों की जटिलताओं पर अच्छी पकड़ रखें, क्योंकि उनके द्वारा लिए गए निर्णयों के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जो युद्ध के मैदान से आगे बढ़कर कूटनीति, अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्र तक जाते हैं।
श्री सिंह ने तकनीकी रूप से उन्नत और चुस्त सेना विकसित करने के सरकार के संकल्प को दोहराया, जो उभरते खतरों का जवाब देने और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने में सक्षम हो। उन्होंने बल देकर कहा कि सशस्त्र बलों को भविष्य के लिए तैयार और लचीला बनाए रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं एनडीसी जैसे रक्षा संस्थान सैन्य नेतृत्व के दृष्टिकोण को आकार देने और उन्हें आधुनिक युद्ध की जटिलताओं से निपटने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रक्षा मंत्री ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के पाठ्यक्रम को गतिशील और अनुकूलनीय होना चाहिए, ताकि युद्ध के मैदान में लड़ने वालों के लिए इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित हो सके। उन्होंने आधुनिक युद्ध की चुनौतियों, नैतिक दुविधाओं और रणनीतिक नेतृत्व को केवल चिंतन के विषय नहीं, बल्कि उनको वह आधार बताया जिस पर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का भविष्य निर्मित होगा।
इस बात पर जोर देते हुए कि सीखना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए जो किसी पाठ्यक्रम की अवधि तक सीमित न हो, श्री राजनाथ सिंह ने एनडीसी की पहुंच और प्रभाव को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर ऑनलाइन, अल्प-कालिक मॉड्यूल शुरू करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “इससे ज्यादा अधिकारियों को, चाहे उनकी भौगोलिक स्थिति या समय की कमी कुछ भी हो, इस तरह के प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान और विशेषज्ञता से लाभ उठाने का अवसर मिलेगा।”
रक्षा मंत्री ने एनडीसी के व्यापक और सुस्थापित पूर्व छात्र नेटवर्क को एक अप्रयुक्त संसाधन की संज्ञा दी और कहा कि ये इस पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मंत्री महोदय ने कहा कि अपने पूर्व छात्रों के अनुभव और उनकी अंतर्दृष्टि का लाभ उठाकर, एनडीसी एक संपन्न, सहयोगात्मक शिक्षण ईकोसिस्टम को बढ़ावा दे सकता है, जो रक्षा कर्मियों के पेशेवर विकास को निरंतर समृद्ध करता रहेगा।
श्री सिंह ने 62वें एनडीसी पाठ्यक्रम के उन अधिकारियों को बधाई दी, जिन्हें एमफिल की डिग्री प्रदान की गई, विशेष रूप से मित्र देशों के अधिकारियों को। मंत्री महोदय ने उनको भारत और उनके देशों के बीच एक सेतु की संज्ञा दी। उन्होंने आगे कहा कि पाठ्यक्रम के दौरान साझा की गई चुनौतियाँ और चिंताएँ क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
इस मौके पर मनोनीत रक्षा सचिव आर.के. सिंह, एनडीसी के कमांडेंट एयर मार्शल हरदीप बैंस, मद्रास विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रोफेसर एस एलुमलाई, रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और एनडीसी के संकाय सदस्य मौजूद थे।