नई दिल्ली : केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आज संसद में पेश ‘आर्थिक समीक्षा 2023-24’ में कहा गया है कि उभरती हुई अभूतपूर्व वैश्विक चुनौतियों के बीच एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए भारत को एक त्रि-पक्षीय समझौतें की आवश्यकता है, जिसके तहत सरकार केन्द्र और राज्य सरकारों के सहयोग से निजी क्षेत्र को विश्वास में लेकर अच्छी सोच और उचित व्यवहार के साथ कार्य करें तथा उनके निवेश का ख्याल रखें।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार तीसरे कार्यकाल के लिए ऐतिहासिक जनादेश के साथ सत्ता में लौटी है। उनका अभूतपूर्व तीसरा कार्यकाल राजनीतिक और नीतिगत निरंतरता का संकेत देता है।
समीक्षा में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से उभरने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत और स्थिर स्थिति में है, जो भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने में लचीलापन प्रदर्शित करती है। हालांकि उबरने की स्थिति बनी रहनी चाहिए, फिर भी सुधार को कायम रखने के लिए घरेलू मोर्चे पर कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि व्यापार, निवेश और जलवायु जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सहमति बनाना आसाधारण रूप से कठिन हो गया है।
मजबूत भारतीय अर्थव्यवस्था
समीक्षा में अन्य बातों के अलावा कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहित करने वाले अनेक संकेत हैः
- उच्च आर्थिक वृद्धि वित्त वर्ष 2024 में पिछले दो वर्षों में 9.7 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की वृद्धि दर के बाद आई है
- मुख्य मुद्रा स्फीति दर काफी हद तक नियंत्रण में है। हालांकि कुछ विशिष्ट खाद्य वस्तुओँ की मुद्रा स्फीति दर बढ़ी हुई है
- वित्त वर्ष 2024 में व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2023 की तुलना में कम था
- वित्त वर्ष 2024 में चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7 प्रतिशत है, चालू खाते में वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में अधिशेष दर्ज किया गया
- विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है
- सार्वजनिक निवेश ने पिछले कई वर्षों में पूंजी निर्माण को बनाए रखा है, जबकि पूंजी क्षेत्र ने अपनी बैलेंस सीट की गिरावट को दूर किया है और वित्त वर्ष 2022 में निवेश करना शुरू कर दिया है
- राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से पता चलता है कि गैर-वित्तीय निजी क्षेत्र के पूंजी निर्माण, जिसे वर्तमान मूल्यों में मापा जाता है, में वित्त वर्ष 2021 में गिरावट के बाद वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 में जोरदार वृद्धि हुई
- मशीनरी और उपकरणों में निवेश में लगातार दो वर्षों, वित्त वर्ष 2020 और वित्त वर्ष 20214 में गिरावट आई, तथा उसके बाद इसमें जोरदार उछाल आया
- वित्त वर्ष 2024 के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि निजी क्षेत्र में पूंजी निर्माण का विस्तार जारी रहा, लेकिन धीमी दर से।
विदेशी निवेशकों के निवेश रुचि
आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है कि हालांकि भारत के भुगतान संतुलन से पता चलता है कि नई पूंजी के डॉलर अंतर्वाह के संदर्भ में मापी गई विदेशी निवेशकों की निवेश रुचि वित्त 2024 में 45.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जबकि वित्त वर्ष 2023 में यह 47.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जबकि प्रत्यक्ष विदेश निवेश रूका हुआ था। यह मामूली गिरावट वैश्विक रुझान के अनुरूप है। वित्त वर्ष 2023 में निवेश का प्रत्यावर्तन 29.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वित्त वर्ष 2024 में 44.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
समीक्षा में कहा गया है कि अनेक निजी इक्विटी निवेशकों ने भारत में तेजी से बढ़ते इक्विटी बाजारों का लाभ उठाया और लाभ कमाते हुए बाहर निकल गए। यह एक स्वस्थ बाजार परिवेश का संकेत है जो निवेशकों को लाभदायक निकासी प्रदान करता है, जिससे आने वाले वर्षों में नए निवेश आएंगे।
समीक्षा में कहा गया है कि आने वाले वर्षों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए माहौल कई कारणों से बहुत अनुकूल नहीं हैः
· विकसित देशों में ब्याज दरें कोविड के वर्षों के दौरान और उससे पहले की तुलना में बहुत अधिक हैं
- उभरती अर्थव्यवस्थाओं को विकसित अर्थव्यवस्थाओं की सक्रिय औद्योगिक नीतियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जिसमें घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने वाली पर्याप्त सब्सिडी शामिल होगी
- अंतरण मूल्य निर्धारण, करों, आयात शुल्कों और गैर-कर नीतियों से संबंधित अनिश्चितताओं और व्याख्याओं का समाधान किया जाना अभी भी बाकी है
· भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं, जो बढ़ रही हैं, पूंजी प्रवाह पर अधिक प्रभाव डालेंगी।
रोजगार पर झटकों का असर
रोजगार सृजन के संबंध में, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है कि कृषि रोजगार में वृद्धि ग्रामीण भारत में रिवर्स माइग्रेशन (महानगरों और शहरों से गांव एवं कस्बों की ओर होने वाला पलायन) और श्रम बल में महिलाओं के प्रवेश से आंशिक रूप से समझाई गई है।
वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है कि फैक्टरी नौकरियों की कुल संख्या में 2013-14 और 2021-22 के बीच सालाना 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और छोटी फैक्ट्रियों (सौ से कम श्रमिकों को रोजगार देने वाली फैक्टरी) की तुलना में बड़ी फैक्टरियों (सौ से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाली फैक्टरी) में रोजगार में 4.0 प्रतिशत की तेजी से वृद्धि हुई। समीक्षा में कहा गया है कि इस अवधि में भारतीय कारखानों में रोजगार की कुल संख्या 1.04 करोड़ से बढ़कर 1.36 करोड़ हो गई है।
‘भारत में अनिगमित गैर-कृषिगत उद्यमों (निर्माण क्षेत्र को छोड़कर) के प्रमुख संकेतकों’ के एनएसएस के 73वें दौर के परिणामों की तुलना में वर्ष 2022-23 के लिए अनिगमि त उद्यमकों के वार्षिक सर्वेक्षण को ध्यादन में रखते हुए, सर्वेक्षण में बताया गया है कि इन उद्यमों में वर्ष 2015-16 में कुल रोजगार 11.1 करोड़ से गिरकर 10.96 करोड़ रह गई। विनिर्माण क्षेत्र में 54 लाख श्रमिकों की कमी हुई, लेकिन व्या1पार एवं सेवा के क्षेत्र में श्रमशक्ति का प्रसार हुआ। इन दो अवधियों के बीच अनिगमित उद्यमों में श्रमिकों की संख्या में लगभग 16.45 लाख की कमी आई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह तुलना विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों में उल्ले खनीय वृद्धि का संकेत देती है, जो वर्ष 2021-22 (अप्रैल-2021 से लेकर मार्च 2022) और वर्ष 2022-23 (अक्टूदबर 2022 से सितम्बरर 2023) के दौरान सृजित हुईं।
थोड़े अंतराल पर लगे दो बड़े आर्थिक झटकों –उच्चब कॉरपोरेट ऋणग्रस्तदता के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र की अनर्जक आस्तियां (एनपीए) और कोविड-19 महामारी-का विश्लेकषण करते हुए, इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2045 में ‘विकसित भारत’ की दिशा में भारत की यात्रा वर्ष 1980 से 2015 के दौरान हुए चीन के उत्था‘न से बहुत अलग नहीं होगी।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि आधुनिक विश्वक, डी-ग्लो बलाइजेशन, भू-राजनीतिक, जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के आगमन से श्रमिकों के कौशल स्तर-कम, मध्यवम एवं उच्चे- के संदर्भ में भारत में काफी अनिश्चितता पैदा होगी। इससे आने वाले वर्षों एवं दशकों में भारत में सतत उच्चय विकास दर की राह में बाधा आएगी। सर्वेक्षण का कहना है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए केन्द्रा एवं विभिन्न राज्ये सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच एक व्याौपक गठबंधन की जरूरत होगी।
रोजगार सृजन : निजी क्षेत्र के लिए वास्तीविक न्यूरनतम शर्त
भारतवासियों की ऊंची एवं बढ़ती अपेक्षाओं की पूर्ति करने और 2047 तक विकसित भारत की यात्रा को पूरा करने हेतु निजी क्षेत्रों, केन्द्रे एवं राज्यआ सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय सहयोग को रेखांकित किया गया है, क्योंतकि रोजगार सृजन मुख्यत: निजी क्षेत्रों में संभव होता है और आर्थि क प्रगति को प्रभावित करने वाले विभिन्नं (सभी नहीं) मुद्दों, रोजगार सृजन एवं उत्पाोदकता तथा इस संबंध में होने वाली कार्रवाईयां राज्यि सरकारों के दायरे में होती हैं।
कुल 33 हजार से अधिक कंपनियों के नमूने के नतीजों को ध्यान में रखते हुए, इस सर्वेक्षण का कहना है कि वित्तीेय वर्ष 2020 एवं वित्ती य वर्ष 2023 के बीच भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र का मुनाफा लगभग चौगुना हो गया और इसलिए वित्ती0य प्रदर्शन के संदर्भ में कार्रवाई की जिम्मे दारी निजी क्षेत्र की है।
सर्वेक्षण का कहना है कि यह अतिरेक मुनाफे से लाभान्वित भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र के हित में है कि वे गंभीरतापूर्वक रोजगार सृजन की जिम्मेसदारी लें और सही क्षमता और कौशल वाले लोगों की भर्ती करे।
निजी क्षेत्र, सरकार एवं बौद्धिक जगत के बीच सहयोग
सर्वेक्षण एक अन्यू त्रिपक्षीय सहयोग – सरकार, निजी क्षेत्र और बौद्धिक जगत के बीच – के विचार का भी विलेषण करता है। इस सहयोग का उद्देश्य प्रौद्योगिकीय उभारों के साथ कदम मिलाने और उनसे आगे जाने हेतु भारतवासियों को उपयुक्तय कौशल से लैस करने के अभियान को गति देना है। इस अभियान में सफल होने हेतु, सरकारों को उद्योग जगत और अकादमिक संस्था नों को इस महत्वंपूर्ण कार्य में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करना होगा।
वास्ताविक कॉरपोरेट सामाजिक उत्तहरदायित्वम
यह सर्वेक्षण दीर्घकालिक निवेश की संस्कृति को विकसित करके कॉरपोरेट क्षेत्र की महती भूमिका का भी विश्ले षण करता है। दूसरे, अब जब कि कॉरपोरेट क्षेत्र मुनाफा से लाभान्वित हो रहे हैं। भारतीय बैकों का कुल ब्या ज मार्जिन में उल्ले खनीय वृद्धि हुई है। यह एक अच्छीह बात है। मुनाफे में चलने वाले बैंक ज्यामदा ऋण प्रदान कर सकते हैं।
अच्छेय समय को जारी रखने हेतु इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले वित्तीय चक्र में आई मंदी से मिले सबकों को याद रखना महत्व पूर्ण है। बैंकिंग उद्योग को दो एनपीए चक्रों के बीच के अन्तर को अवश्या लंबा करना चाहिए। सर्वेक्षण में कहा गया है कि रोजगार और आय में वृद्धि से सृजित होने वाले उच्चा मांगों से कॉरपोरेट को काफी लाभ मिलतमा है। निवेश संबंधी उद्देश्योंो के लिए घरेलू बचतों को दिशा देने से वित्तीलय क्षेत्र को लाभ पहुंचता है। इन लिंकेजों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि आने वाले दशकों में बुनियादी ढांचे और ऊर्जा बदलाव के क्षेत्रों में निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके।
सर्वेक्षण में भारत की कामकाजी उम्र वाली आबादी के रोजगार के बारे में भी बात की गई है, जिन्हेंष उपयुक्तं कौशल और अच्छी। सेहत की जरूरत होगी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सोशल मीडिया, स्क्रीोन टाइम, गलत आदतें और हानिकारक भोजन का मिश्रण सार्वजनिक स्वा स्य्सर एवं उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है तथा भारत की आर्थिक क्षमता को कमजोर कर सकता है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की पारंपरिक जीवन शैली और खानपान में यह दर्शाया है कि कैसे सदियों से हम स्वरस्थप जीवन जी सकते हैं और प्रकृति और एवं पर्यावरण के साथ तालमेल बिठा सकते हैं। यह भारतीय व्यसवसाय जगत के व्याेवसायिक हित में होगा कि वे इनके बारे में सीखे और इन्हें अपनाएं क्योंरकि उन्हें एक वैश्विक बाजार का लाभ उठाने की बजाए उसका नेतृत्वब करना।
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि नीति निर्माताओं-निर्वाचित या नियुक्तल – को भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार होना होगा। इसके लिए विभिन्न- मंत्रालयों, राज्योंन तथा केन्द्र् एवं राज्यों के बीच संवाद, सहयोग साझेदारी और समन्व य की आवश्ययकता होगी। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि यह चुनौती कठिन है और इससे इस पैमाने पर तथा उथल-पुथल भरे वैश्विक वातावरण में कभी नहीं निपटा गया है, इस सर्वेक्षण में इस लक्ष्यठ को पूरा करने हेतु सरकारों, व्यबवसाय जगत तथा सामाजिक क्षेत्र के बीच व्यांपक सहमति का आह्वान किया गया है।
‘भारत में अनिगमित गैर-कृषिगत उद्यमों (निर्माण क्षेत्र को छोड़कर) के प्रमुख संकेतकों’ के एनएसएस के 73वें दौर के परिणामों की तुलना में वर्ष 2022-23 के लिए अनिगमित उद्यमकों के वार्षिक सर्वेक्षण को ध्यान में रखते हुए, सर्वेक्षण में बताया गया है कि इन उद्यमों में वर्ष 2015-16 में कुल रोजगार 11.1 करोड़ से गिरकर 10.96 करोड़ रह गई। विनिर्माण क्षेत्र में 54 लाख श्रमिकों की कमी हुई, लेकिन व्यापार एवं सेवा के क्षेत्र में श्रमशक्ति का प्रसार हुआ। इन दो अवधियों के बीच अनिगमित उद्यमों में श्रमिकों की संख्या में लगभग 16.45 लाख की कमी आई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह तुलना विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देती है, जो वर्ष 2021-22 (अप्रैल-2021 से लेकर मार्च 2022) और वर्ष 2022-23 (अक्टूबर 2022 से सितम्बर 2023) के दौरान सृजित हुईं।
थोड़े अंतराल पर लगे दो बड़े आर्थिक झटकों –उच्च कॉरपोरेट ऋणग्रस्तता के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र की अनर्जक आस्तियां (एनपीए) और कोविड-19 महामारी-का विश्लेषण करते हुए, इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2045 में ‘विकसित भारत’ की दिशा में भारत की यात्रा वर्ष 1980 से 2015 के दौरान हुए चीन के उत्थान से बहुत अलग नहीं होगी।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि आधुनिक विश्व, डी-ग्लोबलाइजेशन, भू-राजनीतिक, जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के आगमन से श्रमिकों के कौशल स्तर-कम, मध्यम एवं उच्च- के संदर्भ में भारत में काफी अनिश्चितता पैदा होगी। इससे आने वाले वर्षों एवं दशकों में भारत में सतत उच्च विकास दर की राह में बाधा आएगी। सर्वेक्षण का कहना है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए केन्द्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच एक व्यापक गठबंधन की जरूरत होगी।
रोजगार सृजन : निजी क्षेत्र के लिए वास्तविक न्यूनतम शर्त
भारतवासियों की ऊंची एवं बढ़ती अपेक्षाओं की पूर्ति करने और 2047 तक विकसित भारत की यात्रा को पूरा करने हेतु निजी क्षेत्रों, केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच एक त्रिपक्षीय सहयोग को रेखांकित किया गया है, क्योंकि रोजगार सृजन मुख्यत: निजी क्षेत्रों में संभव होता है और आर्थिक प्रगति को प्रभावित करने वाले विभिन्न (सभी नहीं) मुद्दों, रोजगार सृजन एवं उत्पादकता तथा इस संबंध में होने वाली कार्रवाईयां राज्य सरकारों के दायरे में होती हैं।
कुल 33 हजार से अधिक कंपनियों के नमूने के नतीजों को ध्यान में रखते हुए, इस सर्वेक्षण का कहना है कि वित्तीय वर्ष 2020 एवं वित्तीय वर्ष 2023 के बीच भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र का मुनाफा लगभग चौगुना हो गया और इसलिए वित्तीय प्रदर्शन के संदर्भ में कार्रवाई की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की है।
सर्वेक्षण का कहना है कि यह अतिरेक मुनाफे से लाभान्वित भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र के हित में है कि वे गंभीरतापूर्वक रोजगार सृजन की जिम्मेदारी लें और सही क्षमता और कौशल वाले लोगों की भर्ती करे।
निजी क्षेत्र, सरकार एवं बौद्धिक जगत के बीच सहयोग
सर्वेक्षण एक अन्य त्रिपक्षीय सहयोग – सरकार, निजी क्षेत्र और बौद्धिक जगत के बीच – के विचार का भी विलेषण करता है। इस सहयोग का उद्देश्य प्रौद्योगिकीय उभारों के साथ कदम मिलाने और उनसे आगे जाने हेतु भारतवासियों को उपयुक्त कौशल से लैस करने के अभियान को गति देना है। इस अभियान में सफल होने हेतु, सरकारों को उद्योग जगत और अकादमिक संस्थानों को इस महत्वपूर्ण कार्य में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करना होगा।
वास्तविक कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व
यह सर्वेक्षण दीर्घकालिक निवेश की संस्कृति को विकसित करके कॉरपोरेट क्षेत्र की महती भूमिका का भी विश्लेषण करता है। दूसरे, अब जब कि कॉरपोरेट क्षेत्र मुनाफा से लाभान्वित हो रहे हैं। भारतीय बैकों का कुल ब्याज मार्जिन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह एक अच्छी बात है। मुनाफे में चलने वाले बैंक ज्यादा ऋण प्रदान कर सकते हैं।
अच्छे समय को जारी रखने हेतु इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले वित्तीय चक्र में आई मंदी से मिले सबकों को याद रखना महत्वपूर्ण है। बैंकिंग उद्योग को दो एनपीए चक्रों के बीच के अन्तर को अवश्य लंबा करना चाहिए। सर्वेक्षण में कहा गया है कि रोजगार और आय में वृद्धि से सृजित होने वाले उच्च मांगों से कॉरपोरेट को काफी लाभ मिलतमा है। निवेश संबंधी उद्देश्यों के लिए घरेलू बचतों को दिशा देने से वित्तीय क्षेत्र को लाभ पहुंचता है। इन लिंकेजों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि आने वाले दशकों में बुनियादी ढांचे और ऊर्जा बदलाव के क्षेत्रों में निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके।
सर्वेक्षण में भारत की कामकाजी उम्र वाली आबादी के रोजगार के बारे में भी बात की गई है, जिन्हें उपयुक्त कौशल और अच्छी सेहत की जरूरत होगी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सोशल मीडिया, स्क्रीन टाइम, गलत आदतें और हानिकारक भोजन का मिश्रण सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है तथा भारत की आर्थिक क्षमता को कमजोर कर सकता है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की पारंपरिक जीवन शैली और खानपान में यह दर्शाया है कि कैसे सदियों से हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं और प्रकृति और एवं पर्यावरण के साथ तालमेल बिठा सकते हैं। यह भारतीय व्यवसाय जगत के व्यावसायिक हित में होगा कि वे इनके बारे में सीखे और इन्हें अपनाएं क्योंकि उन्हें एक वैश्विक बाजार का लाभ उठाने की बजाए उसका नेतृत्व करना।
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि नीति निर्माताओं-निर्वाचित या नियुक्त – को भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार होना होगा। इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों तथा केन्द्र एवं राज्यों के बीच संवाद, सहयोग साझेदारी और समन्वय की आवश्यकता होगी। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि यह चुनौती कठिन है और इससे इस पैमाने पर तथा उथल-पुथल भरे वैश्विक वातावरण में कभी नहीं निपटा गया है, इस सर्वेक्षण में इस लक्ष्य को पूरा करने हेतु सरकारों, व्यवसाय जगत तथा सामाजिक क्षेत्र के बीच व्यापक सहमति का आह्वान किया गया है।
कृषि विकास का इंजन बन सकती है, यदि…
आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि कृषि क्षेत्र की बेहतर सेवा के लिए मौजुदा एवं नई नीतियों के पुन: सामंजस की आवश्यकता है। इसके लिए राज्यों को साथ लेकर एक अखिल भारतीय संवाद की आवश्यकता है। सर्वेक्षण में बताया गया कि यदि भारत कृषि क्षेत्र की कमजोर नीतियों की गांठो को खोल पाने में समर्थ होता है तो अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा। सर्वेक्षण में बताया गया है कि अन्य बातों के अलावा इससे आत्म विश्वास बहाल होगा और राज्य एक बेहतर भविष्य की दिशा में राष्ट्र को ले जाने में समर्थ होंगे, साथ ही इसके सामाजिक आर्थिक लाभ भी मिलेंगे।
प्रौद्योगिकीय विकास और भू-राजनीति दोनो पारंपरिक बुद्धिमत्ता के समक्ष चुनौतियां पेश कर रहे है व्यापार संरक्षणवाद, संसाधन की जमाखोरी, अतिरिक्त क्षमता एवं डंपिंग, अधिक उत्पादक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के परिणामस्वरूप विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों से वृद्धि की बढ़ने में देशों के लिए दायरा संकीर्ण हो रहा है।
सर्वेक्षण में जड़ों की ओर यानि कृषि परंपराओें के तौर पर हम जहां थे, वहीं लौटने का आहवान किया गया है। साथ ही वैसे नीति निर्माण की मांग की गई है जो कृषि क्षेत्र से उच्चतर मूल्य संवर्धन कर सके, किसानों की आय बढ़ा सके, खाद्य प्रसंस्करण तथा निर्यात के लिए अवसर तैयार कर सके तथा भारतीय शहरी युवाओं के लिए कृषि क्षेत्र फैशनदान और लाभदायक दोनों बन सके। यह समाधान भारत की शक्ति का स्रोत बनने के साथ- साथ शेष विश्व यानि विकासशील एवं विकसित देशों के लिए एक मॉडल बन सकता है।
सफल ऊर्जा संक्रमण एक ऑर्केस्ट्रा है
ऊर्जा परिवर्तन और गतिशीलता जैसी अन्य प्राथमिकताएं, कृषि क्षेत्र की नीतियों को सही ढंग से लागू करने की जटिलता की तुलना में फीकी पड़ सकती हैं। फिर भी, उनमें एक बात समान है।
सर्वेक्षण के अनुसार, ऊर्जा परिवर्तन और गतिशीलता के क्षेत्र में कई मंत्रालयों और राज्यों में कई कामों के बीच तालमेल बिठाने की आवश्यकता होती है। इस क्षेत्र के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों को ध्यान में रखना आवश्यक है:
- शत्रुतापूर्ण राष्ट्रों पर संसाधन की निर्भरता,
- तकनीकी चुनौतियां जैसे विद्युत उत्पादन में रुकावट, अक्षय ऊर्जा स्रोतों और बैटरी भंडारण से उत्पादन में उतार-चढ़ाव के बीच ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करना,
- भूमि की कमी वाले देश में भूमि प्रबंधन के अवसर की लागत की पहचान,
- राजकोषीय निहितार्थ जिसमें अक्षय ऊर्जा उत्पादन और ई-मोबिलिटी समाधानों को लेकर सब्सिडी के लिए अतिरिक्त व्यय, जीवाश्म ईंधन की बिक्री और परिवहन से वर्तमान में प्राप्त होने वाला कर और माल ढुलाई से राजस्व की हानि शामिल है,
- तथाकथित ‘संकटग्रस्त परिसंपत्तियों’ से बैंक बैलेंस शीट को होने वाली हानि और
- वैकल्पिक गतिशीलता के समाधानों जैसे सार्वजनिक परिवहन मॉडल आदि के गुणों की जांच।
सर्वेक्षण में यह उल्लेख किया गया है कि अन्य देशों की नीतिगत कार्यप्रणालियों का अनुकरण करना न तो व्यवहार्य है और न ही वांछनीय है। इसलिए हमें मूलभूत नीतियां तैयार करनी चाहिए।
छोटे उद्यमों को उन्मुक्त करना
सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि छोटे उद्यमों को कानून अनुपालन के बोझ से अधिकतम राहत की आवश्यकता है, जिसका वे सामना करते हैं। कानून, नियम और विनियमन उनके वित्त, क्षमताओं और सीमा को बढ़ाते हैं, या शायद उन्हें बढ़ने की इच्छा से वंचित करते हैं।
जाने देना अच्छे शासन का हिस्सा है
आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आगे आने वाली चुनौतियों पर विचार करते समय किसी को भी घबराना नहीं चाहिए, क्योकि लोकतांत्रिक भारत का सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन एक महत्वपूर्ण सफलता की गाथा है। भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 1993 में लगभग 288 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 3.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है। भारत ने प्रति डॉलर ऋण पर अन्य तुलनीय देशों से अधिक वृद्धि की है।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि भारतीय राष्ट्र अपनी क्षमता को उन्मुक्त कर सकता है तथा अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है, ताकि वह उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सके, जहां उसे ऐसा करना आवश्यक है। इसके लिए उसे उन क्षेत्रों पर अपनी पकड़ ढ़ीली नहीं करनी होगी, जहां उसे ऐसा करना आवश्यक नहीं है। लाइसेंसिंग, निरीक्षण और अनुपालन संबंधी आवश्यकताएं, जो सरकार के सभी स्तरों द्वारा व्यवसायों पर लागू की जाती हैं, एक भारी बोझ है। सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि इतिहास के सापेक्ष, बोझ हल्का हुआ है। लेकिन जहां होना चाहिए था, उसके सापेक्ष, यह अभी भी बहुत भारी है। इसका बोझ उन लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ता है, जो इसे उठाने में सबसे कम सक्षम हैं, यानि छोटे और मध्यन उद्यम। सर्वेक्षण में ईशोपनिषद को उद्धृत किया गया है जो हम सभी को अपनी संपत्ति छोड़ देने (त्यागने), स्वतंत्र होने और उस स्वतंत्रता का आनंद लेने का आदेश देता है।
ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्यस्विद्धनम्
सत्ता सरकारों बेशकीमती संपत्ति है। वे कम से कम कुछ हद तक इसे छोड़ सकते है और शासक एवं शासित दोनों में इसके द्वारा पैदा होने वाले हल्केपन का आनंद ले सकते हैं।