नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने आज कांग्रेस पार्टी की कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान से बात करने का सुझाव देने के सवाल पर तीव्र आलोचना की. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ संवित पात्रा ने कहा कि आज हम सुबह से भारतीय सेना के उन अफसरों और जवानों की अंतिम यात्रा को देख रहे थे, जिन्होंने मां भारती के लिए जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। मगर मुझे आश्चर्य होता है कि कुछ चैनल ये भी दिखा रहे हैं कि अभी भी वहां आतंकी हमलों पर कार्रवाई जारी है। इन सबके बीच कुछ नेता ऐसे हैं, जो देश विरोधी बयान दे रहे हैं।
डॉ पात्रा ने कहा कि कांग्रेस के दिग्गज नेता सैफ़ुद्दीन सोज ने बयान दिया है कि हिंदुस्तान को पाकिस्तान से न केवल बात करनी चाहिए अपितु आतंकवादियों के दिमाग में क्या चल रहा है, उसे भी समझने को कोशिश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को करनी चाहिए। ये कांग्रेस की सोच है, सैफ़ुद्दीन सोज वही कांग्रेसी नेता है जिन्होंने अपनी किताब में लिखा था कि जम्मू कश्मीर अलग होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता सवाल पूछते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक फर्जी थे, आप हमें सबूत दिखाइए। कांग्रेस के दिग्गज नेता पूछते हैं कि बताओ भगवान राम किस कमरे में पैदा हुए थे बताइए।
उनका कहना था कि जब ये सवाल पूछते हैं कि तो जायज है, इनका कोई बॉयकाट नहीं होता। लेकिन जब पत्रकार किसी डिबेट में इनसे सवाल पूछ लेता है कि आपके राज्य में भ्रष्टाचार क्यों हो रहा है। तो ये पत्रकारों का बॉयकाट कर देते हैं। उन्होंने राहुल गांधी से सवाल करते हुए पूछा कि मिडिया के नाम जारी कर इनका बहिष्कार करना किस लोकतंत्र का परिचायक है ?
उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन के नेता आज इस प्रकार के बयान दे रहे हैं। आर्मी चीफ को कांग्रेस सड़क का गुंडा कहती है और आतंकवादी के मन को पढ़ने की बात करती है। हम इस बयान की निंदा करते हैं।
भाजपा प्रवक्ता ने यह कहते हुए याद दिलाया कि संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 10 मई 1951 को तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया था। विशेष रूप से, यह संशोधन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए था; इसने भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के साधन प्रदान किए।
उन्होंने कहा कि जहां तक फारुख अब्दुल्ला और बाकी नेताओं का सवाल है उन्होंने भी पाकिस्तान से बातचीत की बात कही है।हिंदुस्तान ने हजारों बार कहा है कि Talks and terror can never moves together. उसके बावजूद जब वीर जवानों की यात्रा चल रही है, उस समय ऐसे बयान न केवल अनुचित हैं बल्कि दुःखद भी हैं।
उन्होंने इमरजेंसी की याद दिलाते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 1975 के आपातकाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इतना दमन किया गया जैसा पहले कभी नहीं हुआ था! 1971 में संसद द्वारा पारित आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (MISA) ने प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रशासन को बहुत व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं। प्रेस पर ताला लगा दिया गया, लोगों और मीडियाकर्मियों पर अत्याचार किये गये।
भाजपा नेता ने कहा कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सत्तारूढ़ सरकार ने 29 अगस्त 1988 को मानहानि विधेयक 1988 प्रस्तुत किया। यह मीडिया पर विशेषकर खोजी पत्रकारिता पर सेंसरशिप लगाने का सरकार का प्रयास था। विशेष रूप से, राजीव गांधी की सरकार द्वारा इस मानहानि विधेयक को पेश करने का एक महत्वपूर्ण कारण बोफोर्स मामले में श्री राजीव गांधी के दोषों को गिनाने में प्रेस की कार्रवाई की निंदा करना था। हालाँकि, मानहानि के इस अत्याचारी कानून के खिलाफ लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन ने सरकार को इस बिल को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। क्या राहुल गांधी की लिस्ट ‘मोहब्बत की दुकान’ से संबंधित है ? उन्होंने कहा कि मोहब्बत की दूकान में नफरत का सामान है .