नई दिल्ली : देश में पिछले कुछ वर्षों में एक दूसरे को परेशान करने के लिए झूठे मामले दर्ज करने की बाढ़ आ गई है. इसका खुलासा जब होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और आरोपी भारी नुक्सान उठा चुका होता है. ऐसे में पीड़ित व्यक्ति मुवाजे के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं. लेकिन इन मालों पर सुप्रीम कोर्ट की राय बिलकुल अलग है. ऐसे ही एक झूठे आपराधिक मुकदमे में फंसाए गए लोगों को मुआवजा देने की व्यवस्था बनाने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यह सरकार के देखने का विषय है. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में 20 साल तक रेप के फर्जी आरोप में जेल में रहने वाले यूपी के विष्णु तिवारी का हवाला देते हुए कोर्ट से मुअबजा देने के निर्देश देने की मांग की गई थी.
इस मामले पर याचिकाकर्ताओं ने लॉ कमीशन की 277वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया था. 2018 में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में झूठे मुकदमे में फंसाए गए लोगों को मुआवजा देने की सिफारिश की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च को इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
आदालत की नोटिस के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे में यह बताया गया कि लॉ कमीशन की रिपोर्ट पर राज्यों से राय मांगी गई है. अभी तक 16 राज्यों ने जवाब दिया है. इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस यू यू ललित और एस रविंद्र भाट की बेंच ने केंद्र के जवाब को देखते हुए कहा कि यह विषय सरकार के लिए विचार करने का है. सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से आदेश देकर इसे जटिल नहीं बनाना चाहता.
याचिकाकर्ता के वकील विजय हंसारिया ने अपनी दलीलों से जजों को आश्वस्त करने की कोशिश की. लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को ठुकरा दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में मुआवजे की व्यवस्था बनाना निचली अदालत में मुकदमे की प्रक्रिया को और जटिल बना देगा. अदालत ने साफ़ कर दिया कि यह व्यवस्था पहले से ही है कि कोई व्यक्ति झूठे मुकदमे के लिए सरकार से मुआवजा मांग सकता है.