नई दिल्ली : केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह आज नई दिल्ली में कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों (ARDBs) के राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर केंद्रीय सहकारिता और पूर्वोत्तर मामलों के राज्यमंत्री बी.एल. वर्मा, सहकारिता मंत्रालय के सचिव, एनसीयूआई के अध्यक्ष और इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी, अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन- एशिया-प्रशांत क्षेत्र के अध्यक्ष तथा कृभको के अध्यक्ष डॉ. चंद्र पाल सिंह यादव सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
इस अवसर पर देश के पहले केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकारिता का आयाम कृषि विकास के लिए बहुत अहम है और इसके बिना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की किसानों की आय को दोगुना करने की परिकल्पना को हम पूरा नहीं कर सकते। कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का इतिहास भारत में लगभग 9 दशक पुराना है। कृषि ऋण के दो स्तंभ हैं, लघुकालीन और दीर्घकालीन। 1920 से पहले इस देश का कृषि क्षेत्र पूर्णतया आकाशीय खेती पर आधारित था, जब बारिश आती थी तो अच्छी फसल होती थी। 1920 के दशक से किसान को दीर्घकालीन ऋण देने की शुरूआत हुई जिससे अपने खेत में कृषि के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के किसान के स्वप्न के सिद्ध होने की शुरूआत हुई। देश की कृषि को भाग्य के आधार से परिश्रम के आधार पर परिवर्तित करने का काम केवल और केवल कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों ने किया। उस वक़्त कोऑपरेटिव सेक्टर के इस आयाम ने किसान को आत्मनिर्भर करने की दिशा में बहुत बड़ी शुरूआत की। उन्होंने कहा कि अगर पिछले 90 साल की यात्रा को देखें तो पता चलेगा कि कृषि और कृषि व्यवस्था के अनुरूप हम इसे नीचे तक नहीं पहुंचा पाए हैं। उन्होंने कहा कि बहुत सारी बाधाएं हैं लेकिन इन्हें पार करके दीर्घकालीन वित्त को जब तक नहीं बढ़ाते तब तक देश के प्रधानमंत्री की कल्पना के अनुसार कृषि विकास असंभव है। कई बड़े राज्य ऐसे हैं जहां बैंक चरमरा गए हैं और इस पर भी विचार करने की ज़रूरत है। सरप्लस फंड को ग़ैर-कृषि उपयोगों की ओर डायवर्ट करने से उद्देश्यों की परिपूर्ति नहीं होती। नाबार्ड के उद्देश्यों की परिपूर्ति तभी होती है जब उपलब्ध सारा पैसा ग्रामीण विकास और कृषि के क्षेत्र में ही लगे। लेकिन ये तब तक संभव नहीं है जब तक कृषि के क्षेत्र में हम दीर्घकालीन वित्त, इन्फ्रास्ट्रक्चर और माइक्रो-इरिगेशन को बढ़ावा नहीं देते।
श्री शाह ने कहा कि कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का काम सिर्फ़ फ़ायनांस करना नहीं है, बल्कि गतिविधियों का विस्तार करना है। हमें काम के विस्तार में जो कुछ भी बाधाएं हैं, उनके रास्ते निकालने पड़ेंगे और तब जाकर हम कृषि विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ़ बैंक ना चलाएं बल्कि बैंक बनाने के उद्देश्यों की परिपूर्ति की दिशा में काम करने का भी प्रयास करें। लॉंग टर्म फ़ायनांस के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सहकारिता के इस क्षेत्र की स्थापना की गई। नई नई कोऑपरेटिव सोसायटीज़ बनाकर हमें किसान को मध्यम और लंबी अवधि के ऋण देने होंगे।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि ऋण वसूली की दिशा में भी हमें तेज़ी लानी होगी। सेवाओं का भी विस्तार करना होगा, अपने अपने कार्यक्षेत्रों में कार्यशालाएं, संवाद करके किसानों में इरिगेटिड लैंड का प्रतिशत, उपज, उत्पादन बढ़ाने, किसान को समृद्ध बनाने और जागरूकता लाने के लिए परिसंवाद करने होंगे। उन्होंने कहा कि सहकारिता के क्षेत्र में किसी संस्थान का पद संभालना पर्याप्त नहीं है बल्कि जिस उद्देश्य के लिए 1924 से ये सेवाएं शुरू हुई हैं, उनकी प्राप्ति के लिए मेरे कार्यकाल में मैं क्या कर सकता हूं, इसकी चिंता करना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि तीन लाख से ज्यादा ट्रैक्टरों को इन बैंकों ने फाइनेंस किया है, लेकिन देश में 8 करोड़ से ज्यादा ट्रैक्टर हैं। 13 करोड़ किसानों में से लगभग 5.2 लाख किसानों को हमने मध्यम और लॉन्ग टर्म फाइनेंस दिया है। कई नए रिफॉर्म्स बैंकों ने किए है जो स्वागतयोग्य हैंलेकिन रिफॉर्म्स बैंक स्पेसिफिक ना रहे, वह पूरे सेक्टर के लिए हो। एक बैंक अच्छा काम करता है तो फेडरेशन का काम है कि सारे बैंकों को इसकी जानकारी देकर उसे आगे बढ़ाने का काम करे। बैंक स्पेसिफिक रिफॉर्म्स सेक्टर को नहीं बदल सकता मगर सेक्टर में रिफॉर्म्स हो गए तो सेक्टर अपने आप बदल जाएगा और सेक्टर बदल जाएगा तो सहकारिता बहुत मजबूत हो जाएगी। कुआं, पंप सेट, ट्रैक्टर, भूमि विकास, हॉर्टिकल्चर, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन जैसे कई क्षेत्र आपके काम के अंदर समाहित है, लेकिन इनका एक्सटेंशन करने की जिम्मेदारी हमारी है और हमें इन्हें आगे बढ़ाना पड़ेगा तब जाकर जिस उद्देश्य के साथ इस सहकारिता इकाई की शुरुआत हुई, उन उद्देश्यों की पूर्ति होगी। आज इस सम्मेलन में आए सभी बैंकों के सदस्य इस क्षेत्र की best practices पर भी चर्चा करें, व्यापार में बैंकिंग के अंदर नई विविधता लाने के लिए अगर किसी सुधार या बदलाव की जरूरत है तो सहकारिता मंत्रालय के द्वार आपके लिए 24×7 खुले हैं।
श्री शाह ने कहा कि विशेषकर एग्रीकल्चर फाइनेंस में, चाहे short-term हो या long-term, एक दृष्टि से देश लकवा ग्रस्त हो गया है। कई जगह एक्टिविटी बहुत अच्छी चलती है और कई राज्यों में बहुत बिखर गई है। हमें इसे पुनर्जीवित करना होगा और जो किसान लाचारी से अपर्याप्तता का भुक्तभोगी बना है, उसे सहकारिता क्षेत्र को अपनी उंगली पकड़ा कर आर्थिक विकास के रास्ते पर चलाने का काम करना है। पूंजी की कमी नहीं है, फाइनेंस करने की हमारी व्यवस्था और हमारे इंफ्रास्ट्रक्चर चरमरा गए हैं,उन्हें पुनर्जीवित करना पड़ेगा और हर राज्य के बैंक को अपने राज्य के ऐसे क्षेत्र को चिन्हित करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगा कि नाबार्ड भी इस दिशा में एक्सटेंशन और एक्सपेंशन का एक विंग बनाए जिससे देश में जिन किसानों को मध्यकालीन और लॉन्ग टर्म फाइनेंस चाहिए उसे मिल सके। संस्थागत कवरेज को पर्याप्त बनाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि लॉन्गटर्म फाइनेंस हमेशा शॉर्टटर्म फाइनेंस से ज्यादा होना चाहिए तभी क्षेत्र का विकास होता है। लॉन्ग टर्म फाइनेंस जितना ज्यादा होगा उतनी ही व्यवस्था दुरुस्त होगी और शॉर्ट टर्म फाइनेंस अपने आप बढ़ जाएगा। 25 साल पहले हमारे यहां लॉन्ग टर्म फाइनेंस एग्रीकल्चर फाइनेंस का 50% था और 25 साल बाद यह हिस्सा घटकर 25% हो गया है, हमें इसकी चिंता करनी चाहिए। असम, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में पूरा हमारा ढांचा चरमरा गया है। वर्तमान में सिर्फ 13 राज्यों में कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अपेक्षाकृत दृष्टि से चल रहे हैं और यह सरकार की अपेक्षा के हिसाब से चल रहे हैं।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि हमारा देश दुनिया में कृषि भूमि की उपलब्धता में दुनिया में सातवें नंबर पर है और कृषि एक्टिविटी की दृष्टि से अमेरिका के बाद 39.4 करोड़ एकड़ की भूमि के साथ हम दूसरे नंबर पर हैं।इतना बड़ा विशाल क्षेत्र हमारे सामने है डेवलपमेंट करने के लिए और इसीलिए नाबार्ड की स्थापना हुई। अगर 39.4 करोड़ एकड़ भूमि हम पूर्णतया इरिगेटेड कर लेते हैं तो भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की भूख मिटाने के लिए भारत का किसान काफी है। लेकिन इसको इरिगेटेड करना है और पानी की कमी है तो माइक्रो इरिगेशन सिस्टम की तरफ जाना है और जोत छोटी हो गई है तो कोऑपरेटिव सोसाइटी से भी हमें इसको इरिगेट करना है। उन्होंने कहा कि मेरा आग्रह है कि यह सारे बैंक पुनर्जीवित हो और इसके लिए सरकार, नाबार्ड और फेडरेशन काम करें। आने वाले दिनों में नाबार्ड, फेडरेशन और सहकारिता विभाग की एक ज्वाइंट मीटिंग भी बुलाने वाला हूं कि कैसे हर एक राज्य में लॉन्ग टर्म फाइनेंस की एक मजबूत व्यवस्था खड़ी की जा सके। इसके लिए फेडरेशन को भी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी।
श्री शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सहकारिता विभाग ने ढेर सारे कदम उठाए हैं। अभी-अभी एक बहुत बड़ा कदम उठाया है कि सभी पैक्स को 2500 करोड़ की लागत से कंप्यूटराइज किया जाएगा।पैक्स, डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक, स्टेट कोऑपरेटिव बैंक और नाबार्ड सभी एकाउंटिंग की दृष्टि से ऑनलाइन हो जाएंगे और इससे पारदर्शिता के साथ पैक्स को चलाने में बहुत बड़ा फायदा होगा। हमने अभी प्रशिक्षण के संदर्भ में भी सहकारिता विश्वविद्यालय बनाने का भी एक सैद्धांतिक निर्णय किया है। GEM प्लेटफार्म पर अभी प्रायोगिक स्तर पर 100 करोड़ से ज्यादा टर्नओवर वाली सभी इकाइयां खरीद कर पाएगी। इससे हमारी खरीद भी सस्ती होगी, पारदर्शिता भी होगी और करप्शन भी बंद होगा। देश में सहकारी डेटाबेस ही नहीं है और जब तक डेटाबेस नहीं है तब तक एक्सपेंशन का सोच ही नहीं सकते। इस देश में कितने तटीय राज्यों में मछुआरों की सहकारी समिति नहीं है, इसका हमारे पास कोई डेटाबेस नहीं है। इस देश में कितनी इरीगेशन में काम करने वाली कॉपरेटिव हैं, हमारे पास कोई डेटाबेस नहीं है। कितने गांव पैक्स के लाभ से वंचित है इसका भी डेटाबेस नहीं है। यह डेटा बेस बनाने का काम भी हमने शुरू कर दिया है और इससे बहुत बड़ा फायदा होने वाला है। एक्सपेंशन तभी हो सकता है जब मालूम हो कि एक्सपेंशन कहां होना है। इस बेसिक काम को करना भी भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय ने शुरू किया है। पैक्स के मॉडल बाइलॉज सरकार ने भेजे हैं और मेरा सभी सहकारिता आंदोलन के साथ जुड़े सभी कार्यकर्ताओं से निवेदन है कि पैक्स के मॉडल बाइलॉज के अंदर आपके सुझाव और प्रेक्टिकल अनुभव का निचोड़ आप जरूर हमें भेजिए। हम पैक्स को बहुआयामी बनाना चाहते हैं। ये गैस वितरण, भंडारण का काम करेगी, सस्ते अनाज की दुकान भी हम ले सकते हैं, पेट्रोल पंप भी ले सकते हैं, एफपीओ भी बन सकता है, कम्युनिकेशन सेंटर भी बन सकता है, नल से जल के वितरण का काम भी पैक्स कर सकते हैं। जब कंप्यूटराइज हो जाएंगे तब इन सारे आयामों को समाहित करने के लिए एक व्यवस्था भी खड़ी हो जाएगी। परंतु इसको मल्टीडाइमेंशनल, मल्टीपरपज बनाना है तो 70-80 साल पहले बने हुए मॉडल बाइलॉज को बदलना पड़ेगा। उनमें सहकारिता के तत्व को कम नहीं करना है परंतु आज के अनुरूप पैक्स में नई-नई कौन सी एक्टिविटी जुड़ सकती हैं, यह जोड़ने का हमने काम किया है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती के प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए भी अमूल प्राइमरी काम कर रहा है। हैंडीक्राफ्ट के मार्केटिंग के लिए भी हमने एक बहुराज्यीय कॉपरेटिव बनाने का सोचा है। बीज सुधार के लिए इफको और कृभको को जिम्मेदारी दी है, एक्सपोर्ट के लिए भी एक मल्टीस्टेट कॉपरेटिव का एक्सपोर्ट हाउस बनेगा और इसके लिए भी भारत सरकार इनीशिएटिव ले रही है और 15 अगस्त से पहले हम इसको जमीन पर उतारने का काम करेंगे। श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बजटीय आवंटन में भी ढेर सारी बढ़ोतरी कॉपरेटिव डिपार्टमेंट के लिए की है।
श्री शाह ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने ढेर सारे काम किए हैं। इनमें से मैं एमएसपी की बात ज़रूर कहना चाहता हूं, जो आपसे जुड़ा हुआ है। धान की खरीदी में लगभग 88% की वृद्धि की है, पहले 2013-14 में 475 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा जाता था, आज 896 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा जाता है और लाभार्थी किसान 76 लाखसे बढ़कर 1 करोड़ 31 लाख हो गए हैं। गेहूं की खरीदी में 72% की वृद्धि हुई है, पहले 251लाख मीट्रिक टन खरीदते थे और आज 433 लाख मीट्रिक टन खरीदते हैं। यह बताता है कि सरकार पूर्णतया हमारे साथ है। किसान क्रेडिट कार्ड, जैविक खेती को बढ़ावा, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, कृषि का निर्यात पहली बार 50 बिलियन डॉलर को पार कर गया है, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सिर्फ 8 साल में 64 लाख हैक्टेयर भूमि को बढ़ाया गया है, पहले के 70 साल में 64 लाख हैक्टेयर और इन पिछले 8 साल में 64 लाखहैक्टेयर। एग्रीकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर में गवर्नमेंट का इन्वेस्टमेंट जितना बढ़ता है, उतना ही कोऑपरेटिव,खासकर एग्रीकल्चर फाइनेंस के कॉपरेटिव की हमारी इकाइयों का पोटेंशियल बढ़ता है। कृषि का यंत्रीकरण भी शुरू हुआ है, लगभग 6800 करोड का बजट 10,000 एफपीओ पर खर्च किया गया है और डिजिटल ट्रांजैक्शन भी मंडियों की बहुत बड़ी मात्रा में बढ़ी है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि कोऑपरेटिव क्षेत्र को कोई सरकार नहीं बढ़ा सकती बल्किइस क्षेत्र को कोऑपरेटिव ही बढ़ा सकता है। सरकार तो आपको सुविधा दे सकती है मगर इस क्षेत्र में सहकारिता की स्पिरिटपुनर्जीवित करना और सालोंसाल तक बढ़ता रहे, इस प्रकार के सहकारिता क्षेत्र की शुरुआत करने की जिम्मेदारी हम लोगों की है। सरकार कितना भी पैसा डाले कोऑपरेटिव नहीं बढ़ेगा, लेकिन अगर हम कोऑपरेटिव के स्पिरिट, हमारे लक्ष्यों को पुनर्जीवित करेंगे और लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहेंगे, लक्ष्य प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करेंगे तो निश्चित रूप से आने वाले दिनों में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनामी के मोदी जी के स्वप्न को पूरा करने में कोऑपरेटिव की बहुत बड़ी भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि देश के 70 करोड गरीबों को समविकास, समावेशी विकास की प्रक्रिया में अगर कोई सेक्टर भागीदार बना सकता है तो हमारा सहकारिता सेक्टर कर सकता है।