नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार के रूप में पूर्व राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू के नाम की घोषणा तो कर दी है लेकिन इनकी राजनीतिक यात्रा को लेकर लोगों में अभी कौतूहल बना हुआ है. देश में इनका नाम पहली बार चर्चा में तब आया जब नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2015 में इन्हें झारखंड राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया. श्रीमती मुर्मू ने झारखंड में यह जिम्मेदारी 2021 तक निभाई।
देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने की शत प्रतिशत संभावना को लिए हुए द्रोपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा में मयूरभंज के एक जनजातीय परिवार में हुआ। बेहद सामान्य आदिवासी परिवार से संबंध रखने वाली मुर्मू ने रामा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की और 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग ओडिशा सरकार में जूनियर असिस्टेंट के रूप में नौकरी की।
इसके बाद 1994 से लेकर 1997 तक श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर रायरंगपुर में शिक्षिका रही ।
संथाल समुदाय से आने वाली मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. बाद में वे रायरंगपुर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की उपाध्यक्ष बनीं. 2013 में वह पार्टी के एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य के पद तक पहुंचीं. द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान, 2000-2002 तक वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार और 6 अगस्त, 2002 से मई तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री थीं.
राजनीतिक फलक पर द्रोपदी मुर्मू सबसे पहले वर्ष 2000 में आई जब इन्होंने ओडिशा सरकार में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में ट्रांसपोर्ट एवं वाणिज्य विभाग की जिम्मेदारी संभाली और 2004 तक मंत्री रही।
रायरंगपुर से दो बार विधायक रहीं मुर्मू ने 2009 में तब भी अपनी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था, जब बीजद ने राज्य के चुनावों से कुछ हफ्ते पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था, जिसमें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद ने जीत दर्ज की थी.
श्रीमती मुर्मू 2002 से 2004 तक ओडिशा सरकार के राज्यमंत्री के रूप में पशुपालन और मत्स्य पालन विभाग कि मंत्री रही।
वर्ष 2002 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी के एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रही जबकि 2006 से 2009 तक भाजपा के एसटी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रही।
वर्ष 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित की गई। 2013 से अप्रैल 2015 तक श्रीमती मुर्मू पुनः एसटी मोर्चा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनाई गई.
देश में नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बाद वर्ष 2015 से 2021 तक द्रोपदी मुर्मू झारखंड राज्य की राज्यपाल रही और अब इन्हें भारतीय जनता पार्टी ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद एवं सेना के सर्वोच्च सेनापति के पद के चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है।
मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था और दंपती के तीन संतान हैं- दो बेटे और एक बेटी. मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा रहा है क्योंकि उन्होंने अपने पति और दोनो बेटों को खो दिया है. उनकी बेटी इतिश्री का विवाह गणेश हेम्ब्रम से हुआ है.
देश में भारतीय जनता पार्टी की भारी बहुमत वाली सरकार है जबकि अधिकतर राज्यों में भाजपा और उसके गठबंधन वाली सरकार चल रही है. इसके अलावा बड़े पैमाने पर राज्यों में भी निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी भाजपा को हासिल है जबकि कई विपक्षी दलों का समर्थन भी द्रोपदी मुर्मू के नाम पर मिलना तय है। इनमें ओडिशा में सत्ता में बैठे बीजू जनता दल और झारखंड में सत्ता में काबिज हेमंत सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे दल से भी समर्थन मिलने की प्रबल संभावना है। इनका राष्ट्रपति चुना जाना तय माना जा रहा है .
वह साल 2000 और 2004 में ओडिशा (Odisha) के रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थीं. वह 2015 में झारखंड (Jharkhand) के राज्यपाल (Governor) के रूप में शपथ लेने वाली पहली महिला थीं. वह राज्यपाल नियुक्त होने वाली पहली महिला आदिवासी नेता रही हैं. निर्वाचित होने के बाद द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति (President) और दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी. इसके अलावा वे ओडिशा से भी प्रथम राष्ट्रपति होंगी. उन्होंने राजनीति और समाज सेवा में लगभग दो दशक बिताए हैं.