विभिन्न श्रमिक संगठनों ने कार्यक्रम का आयोजन कर मई दिवस के शहीदों को किया याद

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-सरकार ने पूंजीपतियों को श्रमिकों का शोषण करने की दे रखी है पूरी छूट
-श्रमिकों से संगठित रहने का किया आग्रह 

गुरुग्राम , 1 मई :  अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पिछले कई दशकों से पहली मई को पूरे विश्व में मनाया जाता रहा है। श्रम और पंूजी के आंतरिक
द्वंद से पैदा हुए शोषण के विरुद्ध मजदूरों के संघर्ष और उसके परिणाम स्वरूप मजदूरों के कल्याण के लिए किए उपाय भी अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने के प्रमुख कारण हैं। विभिन्न श्रमिक संगठनों ने पहली मई को प्रतिष्ठानों व सार्वजनिक स्थानों पर भी अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस का
धूमधाम से आयोजन किया।

ट्रेड यूनियनों द्वारा कमला नेहरु पार्क में संयुक्त रुप से एकत्रित होकर शहीदों को याद किया गया और उन्हें श्रद्धासुमन भी अर्पित किए। विभिन्न श्रमिक संगठन अपने-अपने झण्डे बैनर  के साथ बड़ी संख्या में इस कार्यक्रम में शामिल हुए। श्रमिक नेता अनिल पंवार, जसपाल राणा, वीरेंद्र उपाध्याय, होम सिंह लाठर, सतबीर सिंह, ऊषा सरोहा, एसएल प्रजापति, अधिवक्ता विनोद भारद्वाज आदि ने कार्यक्रम में शामिल श्रमिकों को संबोधित करते हुए कहा कि श्रमिकों को जो अधिकार मिले  हुए हैं, उसके पीछे असंख्य लोगों का बलिदान भी है।

उन्होंने श्रमिक आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 1886 में अमेरिका में श्रमिकों ने काम के घंटे तय करने के लिए एक आंदोलन किया था, जिसको कुचलने के लिए फायरिंग की गई थी, जिसमें कुछ मजदूरों की मौंत हो गई थी और बड़ी संख्या में मजदूर घायल भी हो गए थे। वर्ष 1889 अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में प्रस्ताव पारित कर हर साल 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय भी लिया गया था।

भारत में 1 मई 1923 को लेबर किसानयूनियन ऑफ हिंदुस्तान की पहल पर मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत हुई। वक्ताओं ने कहा कि कार्ल माक्र्स ने मजदूरों को नारा दिया था कि दुनिया के मजदूरो एक हो जाओ। कार्ल माक्र्स का मानना था कि उत्पादन के साधनों पर जिस
पूंजीवादी वर्ग का अधिकार हैं वह मजदूरों के शोषण पर आधारित अतिरिक्त मूल्य को हड़पने से कभी बाज नही आएगा। इसकी वजह से बेरोजगारी भी बढ़ती है।

उनकी इस सोच को देश में बेरोजगारी के रुप में भी देखा जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि भारत में मजदूर आंदोलन को नया तेवर देने के लिए भारत के संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की भी बड़ी भूमिका रही है। अंबेडकर का मानना था कि अपने हक के लिए मजदूरों का हड़ताल करना या हड़ताल में शामिल होना सिविल अपराध है, न कि फौजदारी गुनाह। वक्ताओं ने केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। महंगाई आसमान छू रही है। देश में उत्पादन में भी भारी गिरावट आई है।

सरकार श्रमिकों के हकों पर डाका डालने से बाज नहीं आ रही है। उन्होंने सभी श्रमिकों से आग्रह किया कि वे संगठित रहें, तभी वे प्रतिष्ठानों के संचालकों व सरकार से अपने मांगें पूरी करा सकते हैं। कानूनों को जिस तरीके से बदला जा रहा है, उससे यही साबित होता है कि सरकार पूंजीपतियों के साथ है। सभी ने मई दिवस के शहीदों को क्रांतिकारी सलाम भी किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न श्रमिक संगठन एटक, एचएमएस, इंटक, हरियाणा कर्मचारी महासंघ, किसान मोर्चा, स्वतंत्र श्रमिक यूनियनें आदि के प्रतिनिधि व सदस्य भी शामिल हुए।

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