क्या मोदी के डर से तेलांगना के मुख्यमंत्री के सी आर, शरद पवार के दरबार में पहुंचे ?

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सुभाष चौधरी 

नई दिल्ली : देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी अभी उफान पर ही है कि इसी बीच 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने में कई राज्यों के नेता जुट गए . अभी तक विपक्षी एकता को हवा देने की कोशिश में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लीड कर रही थी तो अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी मैदान में कूद पड़े। लेकिन दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मंसा के केंद्र में महाराष्ट्र के मराठा नेता और एनसीपी के कर्ता-धर्ता शरद पवार ही है। इसलिए ही पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री उनके दरबार में पहुंची थी तो अब चंद्रशेखर राव भी पवार के दरबार में पहुंचे।

क्या मोदी के डर से तेलांगना के मुख्यमंत्री के सी आर, शरद पवार के दरबार में पहुंचे ? 2तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने रविवार को महाराष्ट्र का रुख किया. उन्होंने मुंबई प्रवास के दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से औपचारिक मुलाकात की जबकि एनसीपी नेता शरद पवार से भी खास मुलाकात कर नई राजनीतिक जमीन तैयार करने का ऐलान कर दिया।

इस मुलाकात की खासियत यह रही कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की भी उनके घर पर करीब 2 घंटे से अधिक बातचीत चली। दोनों ही नेताओं के बीच हुई बातचीत का मुख्य विषय राष्ट्रीय राजनीति और केंद्र एवं राज्य के बीच उत्पन्न खिंचाव रहा। चर्चा यह है कि दोनों नेताओं ने गैर भाजपा शासित राज्यों के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग करने के मुद्दे पर भी चिंता जताई। इसके अलावा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे की भी संभावना तलाशी गई जिसका लक्ष्य एक तरफ नरेंद्र मोदी को सत्ता में वापसी से रोकना है जबकि दूसरी तरफ राजनीतिक हाशिए पर खरी कांग्रेस पार्टी को और पीछे धकेलना है।क्या मोदी के डर से तेलांगना के मुख्यमंत्री के सी आर, शरद पवार के दरबार में पहुंचे ? 3

के चंद्रशेखर राव ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की इस मुलाकात के बाद उन्होंने मीडिया को बताया कि वह श्री पवार का इसलिए धन्यवाद करने पहुंचे हैं क्योंकि उन्होंने तेलंगाना राज्य के निर्माण में समर्थन दिया था. उन्हें  उन्होंने पत्रकारों के समक्ष आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में बड़े बदलाव का संकेत देते हुए कहा कि 75 साल के बाद देश को जहां होना चाहिए वहां नहीं पहुंच पाया. उन्होंने कहा कि अब नए तरीके से नई सोच के तहत देश को आगे ले जाने का समय आ गया है. उन्होंने यह भी साफ किया कि वे अन्य राजनीतिक दलों से भी बात करेंगे और सभी को एक मंच पर लाने का उनका प्रयास होगा. उन्होंने यहां तक कहा कि सभी राजनीतिक दलों से बात कर जनता के सामने एक संयुक्त एजेंडा मजबूत विकल्प के रूप में रखा जाएगा।

इस बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने तीसरे मोर्चे के गठन के सवाल पर कहा कि कांग्रेस के बिना राजनीतिक मोर्चा गठन करने की बात उन्होंने कभी नहीं की . उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी तीसरे मोर्चे के गठन का प्रस्ताव दिया था. तब भी शिवसेना ने यह स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस को साथ लेकर चलना होगा।

बहरहाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हो या फिर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव दोनों के प्रयास को कितनी सफलता मिलती है यह तो समय बताएगा. लेकिन नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होने की कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं की छटपटाहट साफ दिखने लगी है। हालांकि इस प्रकार का प्रयास 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भी किया गया था लेकिन समय से पहले ही वह भरभरा गया था.  इसलिए ही शायद देश की जनता इनके प्रयास को तब तक गंभीरता से न लें जब तक कि इनका मूर्त रूप अपने प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में सामने ना आ जाए।

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वैसे एनसीपी प्रमुख शरद पवार सधे हुए राजनेता माने जाते हैं । उन्होंने भाजपा और नरेंद्र मोदी की चाहत को महाराष्ट्र में अपनी कूटनीति से धूल चटा दी है. एक ऐसी पार्टी शिवसेना, जो कई दशकों से हिंदूवादी राजनीति करती रही और कांग्रेस पार्टी के लिए अछूत बनी रही, वह भी आज कांग्रेस के साथ खड़ी है। यह परिणाम एनसीपी नेता शरद पवार की राजनीतिक सूझबूझ के साथ किए गए प्रयास का ही है। कहना न होगा कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने की भरसक कोशिश होती रही लेकिन शरद पवार के पैर अंगद की तरह ऐसे जमे हुए हैं कि उसे उखाड़ पाना भाजपा नेतृत्व के लिए नामुमकिन सा हो रहा है। संभव है उनकी इसी उपलब्धि को देखते हुए देश के विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आशा और उम्मीद अब शरद पवार से जुड़ गई लगती है. उन्हें एक हद तक यह विश्वास हो चला है कि नरेंद्र मोदी के रथ के पहिए को 2024 के चुनावी कुरुक्षेत्र में अगर कोई धसा सकता है तो वह शरद पवार हैं।

संकेत साफ है कि कई विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं को वर्तमान में हो रहे पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम सामने आने का इंतजार है। माना जा रहा है कि अगर इन पांच राज्यों में से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी नहीं होती है सपा सत्ता में आती है तो इस विपक्षी एकता के प्रयास को और बल मिल सकता है क्योंकि तीसरे मोर्चे के एक मजबूत पाए के रूप में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी जुड़ सकते हैं।

के चंद्रशेखर राव के उद्धव ठाकरे और शरद पवार से हुई मुलाकात पर केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि अगर शिवसेना और अन्य दल मिलकर तीसरा मोर्चा बना भी लेंगे तब भी एनडीए पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. उन्होंने कहा की 2024 में भाजपा फिर सत्ता में आएगी और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी उनका ही परचम लहराएगा। इन सारे कयासों और दावे व प्रति दावे से कुछ हद तक पर्दा उठने की स्थिति 10 मार्च को आने वाले चुनावी परिणाम से बनेगी। अगर भाजपा मजबूत रही तब भी विपक्षी एकता की कोशिश मोदी फोबिया के भय के साए में होगी और अगर भाजपा कमजोर रही तो मोदी रथ को कुछ हद तक रोकने के उत्साह में हवा बनाने का प्रयास होगा . धरातल पर यह कामयाब होगा या नहीं पूर्व की घटनाओं के कारण आशंका के घेरे में हैं .

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