लोक सभा में विपक्ष के प्रबल विरोध के बावजूद सेंट्रल विजिलेंस कमीशन व दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टाब्लिश्मेंट संशोधन बिल 2021 पेश

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सुभाष चौधरी 

नई दिल्ली :  केंद्र सरकार ने आज लोकसभा में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन संशोधन बिल2021  और दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टाब्लिश्मेंट संशोधन बिल 2021  को विपक्ष के प्रबल विरोध के बावजूद सदन के पटल पर विचार के लिए प्रस्तुत किया. दोनों ही बिलों का विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी सहित कई विपक्षी सांसदों ने  विरोध किया और आरोप लगे कि विपक्ष पर दबाव बनाने के लिए दोनों ही प्रमुख संस्थाओं के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव लेकर सरकार आई है . सदन में दोनों बिलों को विचार करने संबंधी प्रस्ताव को अंततः ध्वनि मत के आधार पर लोक सभा अध्य्स्ख ने प्रस्तुत  करने की अनुमति दे दी। विपक्ष द्वारा उठाए गए तकनीकी व राजनीतिक सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशासनिक मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने सभी आरोपों को यह कहते हुए सिरे से खारिज कर दिया  कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार सेंट्रल विजिलेंस कमीशन  और सी बी आई के डायरेक्टर का कार्यकाल पांच वर्षों तक बढ़ाना चाहती है. इसके लिए वर्तमान प्रावधान में संशोधन करने की जरूरत है. केंद्र सरकार लोकसभा में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन संशोधन बिल2021  और दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टाब्लिश्मेंट संशोधन बिल 2021  लेकर आई है जिसे पहले ही अध्यादेश जारी कर लागू कर दिया गया है.  सीबीआई का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस एक्ट के तहत ही किया गया है इसलिए उसके कार्यकाल बढ़ाने के लिए भी इस एक्ट में भी संशोधन की जरूरत है. इसके पास होने से वर्तमान निदेशों का कार्यकाल 5 साल का हो जाएगा जिसको लेकर विपक्ष हमलावर हो गया है.

लोकसभा में प्रश्नकाल के तुरंत बाद ही केंद्रीय कार्मिक प्रशासनिक मंत्री डॉक्टर जितेंद्र प्रसाद सिंह ने जैसे ही सदन के पटल पर सेंट्रल विजिलेंस कमीशन संशोधन बिल2021  एवं दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टाब्लिश्मेंट संशोधन बिल 2021 रखना चाहा विपक्ष की ओर से इसका प्रबल विरोध किया गया। विपक्ष की ओर से दोनों ही संशोधन बिल को यह कहते हुए सभा पटल पर रखने का विरोध किया गया कि इसके सहारे सरकार विपक्षी राजनेताओं पर अनर्गल दबाव बनाना चाहती है. अधिकतर विपक्षी सांसदों का आरोप था कि दोनों ही संस्थाओं के निदेशकों का कार्यकाल 5 वर्ष तक बढ़ाने के प्रस्ताव से अपने चहेते अधिकारियों द्वारा विपक्षी नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले का दुरुपयोग किया जाएगा।

विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार की मंशा इन दोनों बिलों को लाने के पीछे सही नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि अपने चहेते अधिकारियों को उनकी चापलूसी एवं भाजपा सरकार के प्रति व्यक्तिगत विश्वसनीयता को ध्यान में रखते हुए 5 वर्ष का कार्यकाल बढ़ाने वाला बिल लाया गया है। उन्होंने कहा कि इस दोनों बिलों के पारित हो जाने से दोनों प्रमुख केंद्रीय एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के खिलाफ दुरुपयोग करने की प्रबल आशंका है। उन्होंने यहां तक कहा कि दोनों केंद्रीय एजेंसियों की निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने की शर्त चापलूसी नहीं हो सकती इससे सरकार की विकृत मानसिकता प्रदर्शित हो रही है. उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी केंद्र  सरकार दरकिनार कर रही है।

ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद प्रोफेसर सौगत राय ने भी दोनों ही बिलों को सदन के पटल पर रखने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि ये संशोधन बिल अपने चहेते अधिकारियों को लंबे समय तक बिठाए रखने के लिए लाया गया है. इससे दोनों केंद्रीय एजेंसियों की पारदर्शिता समाप्त होगी जबकि विपक्ष के नेताओं पर दबाव बनाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जाएगा।

दिल्ली पुलिस संशोधन बिल का विरोध करते हुए कांग्रेस पार्टी के असम से सांसद गौरव गोगोई ने भी दोनों केंद्रीय एजेंसियों के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाए जाने के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए दोनों बिलों को सदन में रखे जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि इससे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का केंद्र सरकार उल्लंघन कर रही है।

केरल से आर एस पी सांसद एन के प्रेमचंद्रन ने भी दोनों बिलों को लोकसभा में विचार रखने का विरोध करते हुए इसके लिए उद्धृत लक्ष्य और ऑब्जेक्ट को विरोधाभासी बताया.  उन्होंने कहा कि यूएनओ के चार्टर में भी जिस प्रकार के सुझाव दिए गए हैं उसका भी इन दोनों बिलों के माध्यम से सरकार उल्लंघन कर रही है. उन्होंने भी दोनों एजेंसियों के निदेशकों का कार्यकाल 5 साल बढ़ाने का विरोध किया .उन्होंने कहा कि लंबे समय तक इन पदों पर बैठने वाले अधिकारियों का राजनीतिक दुरूपयोग होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

विपक्षी सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशासनिक मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि दोनों बिलों से यूएनओ के चार्टर में वर्णित किसी भी प्रावधान का कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है. उन्होंने याद दिलाया कि बिना कानून लाए भी पिछली सरकारों ने कई बार इस प्रकार की केंद्रीय एजेंसियों के निदेशकों का कार्यकाल अनावश्यक तौर पर बढ़ाया है.

उन्होंने कहा कि अगर सदस्य चाहेंगे तो वे इन दोनों बिलों पर होने वाली चर्चा के दौरान वर्ष वार केंद्रीय एजेंसियों के निदेशकों के कार्यकाल बढ़ाने का ब्यौरा सदन में रखेंगे. उन्होंने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट तौर पर कहा है कि केंद्रीय एजेंसियों के निदेशकों का कार्यकाल 2 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए उनका तर्क था कि अदालत ने अपने निर्णय में न्यूनतम समय सीमा निर्धारित की है ना कि अधिकतम समय सीमा. इसलिए इससे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का कोई उल्लंघन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने विपक्षी सांसदों से दोनों ही बिलों को विस्तार से अध्ययन करने की सलाह दी। उन्होंने विपक्षी सांसदों को याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को बंद पिंजरे का तोता यूपीए शासनकाल में कहा गया था ना कि भाजपा शासनकाल में. उन्होंने कटाक्ष किया कि अब वह शासन बदल चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो सत्रों से सदन की बैठक विपक्ष के हंगामे की वजह से ठीक से नहीं हो पा रही थी इसलिए सरकार अध्यादेश लेकर आई क्योंकि इस बार भी सदन की बैठक सुचारू होने की संभावना नहीं दिख रही थी. ऐसे में काम करने के लिये सरकार के पास अध्यादेश लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

सत्ता पक्ष और विपक्ष के तर्क वितर्क को सुनने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दोनों ही बिलों को सदन के पटल पर विचार रखने की अनुमति दी.  हालांकि इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष ने ध्वनि मत के प्रावधान का उपयोग किया और केंद्रीय मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने दोनों बिलों को सदन के पटल पर विचार के लिए प्रस्तुत किया।

लोकसभा में उत्पन्न हुई आज की इस स्थिति से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों केंद्रीय एजेंसियों के निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने संबंधी इन बिलों पर लोकसभा ही नहीं बल्कि राज्यसभा में भी तनातनी देखने को मिलेगी।  जब इन दोनों बिलों को पारित कराने पर बहस होगी तब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच माहौल गरमाने के आसार हैं.  जबकि बिलों को पारित कराने के लिए विपक्षी सांसद मत विभाजन की भी मांग कर सकते हैं। हालांकि इन्हें पारित कराने में सरकार को संभवत कोई कठिनाई नहीं आएगी क्योंकि लोकसभा में वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार को बहुमत प्राप्त है जबकि राज्यसभा में भी सुविधाजनक स्थिति में है लेकिन चर्चा के दौरान वाद प्रतिवाद की गर्माहट अवश्य देखने को मिलेगी।

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