संदीप पराशर
फरीदाबाद, 31 जुलाई : मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए इसे 2025 से हरियाणा में पूरी तरह से लागू करने और हर साल 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति दिवस मनाने की घोषणा की है। इस पर ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन आईपा ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा लागू की जा रही नई शिक्षा नीति से शिक्षा का व्यवसायीकरण और बढ़ेगा। क्योंकि इस शिक्षा नीति में प्राइवेट कॉलेज व स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों के साथ की जा रही मनमानी पर रोक लगाने के लिए कोई भी प्रावधान नहीं रखा गया है। उल्टा आगे पीपीपी मोड़ पर कॉलेज व स्कूल खोलने के लिए पूजीपतियों को निवेश करने की छूट दी जा रही है इससे लूट और मनमानी और बढ़ जाएगी।
अभी तक जिन कॉलेज व स्कूलों को मान्यता के साथ-साथ, सरकारी अनुदान दिया जा रहा था उसे बंद करके ऐसे स्कूलों के प्रबंधकों से अपने संसाधनों से स्कूल की आमदनी जुटाने की व्यवस्था करने के लिए कहा जा रहा है। कुल मिलाकर के शिक्षा को पूरी तरह से बाजार के हवाले किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति में सरकारी शिक्षा का स्तर सुधारने, सरकारी कालेज व स्कूलों में गुणात्मक और व्यापक सुधार करने, सरकारी शिक्षकों को निर्धारित वेतनमान देने उनकी सर्विस की सुरक्षा की गारंटी देने आदि की कोई बात नहीं की गई है।
आईपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल एडवोकेट व राष्ट्रीय महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा है कि नई शिक्षा नीति में कई खामियां हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरूरी है। इन खामियों के बारे में विस्तार से आइपा की ओर से प्रधानमंत्री व केंद्रीय शिक्षा मंत्री को कई पत्र लिखे गए हैं इसके अलावा देश के कई शिक्षाविदों, कानूनविदों व शिक्षक, अभिभावक संगठनों ने नई शिक्षा नीति की कई बातों का विरोध किया है उसके बावजूद केंद्र व हरियाणा सरकार खामियों से भरी इस शिक्षा नीति को लागू करने पर आमादा है।
कैलाश शर्मा ने कहा है कि आइपा की ओर से सरकारी व प्राइवेट शिक्षा में सुधार के बारे में एक ग्यारह सूत्री मांगपत्र भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया उस पर भी कोई उचित कार्यवाही नहीं की गई है। आईपा का कहना है कि नई शिक्षा नीति में सभी वर्गों और उनकी जरूरतों का ध्यान में नहीं रखा गया है। देश की बड़ी आबादी अब भी शिक्षा के लिए सरकारी कॉलेज व स्कूलों पर निर्भर है। लेकिन इनमें सुधार की कोई भी बात नहीं की गई है। अब बात चल रही है कि शिक्षा में गैर सरकारी संस्थानों, एनजीओ,औद्योगिक घरानों की भागीदारी बढ़ाई जाए और सबसे बड़ी चिंता की बात है। शिक्षा नीति में यह तो कहा गया है कि प्राइवेट शिक्षण संस्थान अपने आय व्यय को पब्लिक डोमिनी में डालेंगे लेकिन उनके खातों की सीएजी या अन्य सरकारी ऑडिट कंपनी से जांच व ऑडिट कराने की कोई बात नहीं की गई है।
प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट को कितनी वैधानिक फीस किन-किन फंडों में लेनी है और आमदनी को किन किन मदों में खर्च करना है इसका भी कोई जिक्र नहीं है। शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों का शोषण रोकने व समान काम के लिए समान वेतन के बारे में कुछ भी नहीं है। निजी कालेज व स्कूलों की फीस पर प्रभारी अंकुश लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है। शिक्षा का अधिकार आरटीई कानून का दायरा 12 वीं तक करने और इसमें अल्पसंख्यक स्कूलों को भी शामिल करने का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है.
शिक्षा नीति में स्कूल बैग का वजन कम करना एक अच्छी बात है लेकिन 2019 में भी केंद्र सरकार ने सभी कक्षाओं के बच्चों के बस्ते का बजन निर्धारित किया था उसका पालन स्कूल प्रबंधकों ने नहीं किया। इस शिक्षा नीति में इसका पालन न करने वाले स्कूलों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी इसका कोई जिक्र नहीं है।
कैलाश शर्मा ने कहा है कि नई शिक्षा नीति को देशभर में इसी स्वरूप के साथ लागू किया गया तो बच्चों की शिक्षा खराब से बुरी स्थिति में चली जाएगी और बच्चों को सरकारी शिक्षा नीति से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। आईपा ने प्रधानमंत्री व केंद्रीय शिक्षा मंत्री से अपील की है कि वे नई शिक्षा नीति में बताई गई खामियों को दूर करके ही इस नई शिक्षा नीति को लागू कराएं तभी वर्तमान व आने वाली पीढ़ी को फायदा होगा।