कहानी संग्रह,मुक्तक संंग्रह व काव्य संग्रह का हुआ लोकार्पण
बहादुरगढ़। क्षेत्र की साहित्यिक संस्था कलमवीर विचार मंच के तत्वावधान में पटेल नगर स्थित श्री रामाभारती स्कूल में भव्य काव्योत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुरुग्राम के युवा पत्रकार रमाकांत उपाध्याय व वरिष्ठ साहित्यकार अशोक जैन के सानिध्य में संपन्न काव्योत्सव की अध्यक्षता 150 से अधिक पुस्तकों के रचयिता डॉ.मधुकांत ने की। अतिथि साहित्यकारों के सभागार में पहुंचने पर संस्था के अध्यक्ष आनंद स्वरूप गुप्ता व उनके सहयोगियों ने पुष्प मालाओं से उनका स्वागत किया। देर शाम तक चले इस आयोजन में बहादुरगढ़ के अलावा झज्जर, रोहतक,चरखीदादरी व भिवानी सहित दिल्ली के कवियों-कलाकारों ने भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
काव्योत्सव का शुभारंभ चरखीदादरी से पधारीं पुष्पलता आर्य की सरस्वती वंदना से हुआ। भिवानी के गीतकार विकास यशकीर्ति, झज्जर से आए हरियाणवी हास्य कवि मास्टर महेन्द्र, नजफगढ़ दिल्ली के चर्चित गज़लकार मनीष मधुकर आदि ने जहां अपनी शानदार प्रस्तुति से समां बांध दिया वहीं गुरुग्राम के कथाशिल्पी अशोक जैन व बहादुरगढ़ की कवयित्री डॉ.मंजु दलाल ने कुछ मुक्तक व संदेशपरक कविता सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम के दौरान वीरेंद्र कौशिक व अनिल भारतीय ‘गुमनाम’ के अलावा नवोदित कलमवीरों कुमार मोनू राघव, मोहित कौशिक व कौशल समीर ने भी खूब वाहवाही लूटी। हिन्दी के प्रसार को समर्पित विनोद गिरधर की कविता को भी बहुत सराहा गया।
इस अवसर पर डॉ.मधुकांत के कहानी संग्रह ‘वृद्ध जीवन की कहानियां’, अशोक जैन के मुक्तक संग्रह ‘चमकती धूप के साये’ और डॉ.मन्जु दलाल के काव्य संग्रह ‘खुशबुओं के उजाले’ का लोकार्पण भी कार्यक्रम में उपस्थित उपन्यासकार दिबेन सहित अन्य अतिथि साहित्यकारों ने किया।
कार्यक्रम के दौरान जहां मंचासीन अतिथि साहित्यकारों को सुंदर स्मृति चिन्ह प्रदान किए गये वहीं कई दशकों से साहित्य साधना में जुटे संस्था के संस्थापक कृष्ण गोपाल विद्यार्थी को भी संस्था के कुछ सदस्यों द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि श्री रमाकांत उपाध्याय के प्रेरक उद्बोधन व डॉ- मधुकांत के अध्यक्षीय संबोधन के साथ कोरोना गाइडलाइन के अनुरूप सीमित लोगों के लिए आयोजित इस कार्यक्रम का समापन हुआ।
काव्योत्सव में प्रस्तुत कुछ रचनाओं की बानगी देखिए……
मौसम ने अंगड़ाई ली तो सूखे पत्ते हुए हरे,
जंगल के सब तरुवर दिखते हैं फूलों से भरे भरे।
फिर से अपना नीड़ बनाया आकर उन्हीं परिंदों ने-
झुलसाने वाली गर्मी से जो रहते थे परे परे।।
( अशोक जैन )
जा चुकीं सदियां हज़ारों आएँगी बेशक़ हज़ार।
तू बहा है तू बहेगा खून में बन कर रवानी ।
ए तिरंगे आसमानी आसमानी।
आबरू के वास्ते ढक लूँ बदन कपड़ों से मैं ।
तू ढका है रूह पर ये जिस्म तो होते हैं फ़ानी।
ए तिरंगे आसमानी आसमानी।
( पुष्पलता आर्य)
आओ निश्चय करें मन बना लें।
हिंदी भाषा को फिर से बढ़ा लें।
राष्ट्रभाषा यही है हमारी,
संकटों में घिरी है संभालें।
(विनोद गिरधर)
मनमोहक अभिराम तत्व जो मन ललचाता है।
साथ में अपने लेकर लाखों विपदा आता है ।
पंचवटी में सीताजी का हरण हुआ जबसे,
स्वर्ण हिरण को देखके तब से मन घबराता है।
(मनीष मधुकर)
किस्मत का बड़ा करम रहा मुझ पर,
अपनों का बड़ा सितम रहा मुझ पर।
रोज़ दुआ करते रहे अपनों के लिए,
अपनेपन का बड़ा भरम रहा मुझ पर।
(कौशल समीर)
बिन पेंदी के लोटों से यूं गहरी यारी ठीक नहीं।
अपने से ऊँचे लोगों में रिश्तेदारी ठीक नहीं।
बांध सको तो उनको बांधो, जिनकी सोच विषैली है,
चिड़िया जैसी बिटिया पर तो पहरेदारी ठीक नहीं।
( विकास यशकीर्ति)
जितना दबाव आया सहकर निखर गया।
दुनिया की ठोकरों से लड़कर सँवर गया।
उसे पा लिया उसी ने,जो घट में उतर गया,
दुनिया की ठोकरों से लड़कर सँवर गया।
(कुमार मोनू राघव)
मुस्कुराहट दिल में उतर जाएगी,
खिल उठेंगे सुमन तितलियां गाएंगी,
खुशबू खुशबू जहां में बिखर जाएगी
( डॉ. मंजु दलाल )