बिहार के मछुआरे की बेटी ने विश्व तैराकी में जीता गोल्ड मेडल

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बिहार के मछुआरे की बेटी ने विश्व तैराकी में जीता गोल्ड मेडल 1सरकारी सुविधा नगण्य 

2018 ओलंपिक में मेडल जीतना चाहती है बेबी कुमारी  

गुरुग्राम : गरीबी और मुफलिसी के बावजूद कुछ करने की चाहत रखने वाले अपनी मंजिल ढूंढ ही लेते हैं. बेगूसराय की बेबी कुमारी ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा उस वक्त कर दिखाया है. बेबी कुमारी ने अंतरराष्ट्रीय आधुनिक पेंटाथलान संघ द्वारा गोवा में आयोजित यूनियन इंटरनेशनल डे पेंटाथलॉन मॉर्डन बैथलॉन वर्ल्ड 2016 में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है.
गांव के पोखर से तैराकी कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली बेबी कुमारी मछली मारनेवाले एक गरीब पिता की बेटी है.
गरीबी और मुफलिसी के बीच कुछ करने की चाहत ने आज बेबी को वो पहचान दी जो शायद कम ही लोगों को नसीब होता है. सीमित संसाधनों के बाबजूद तैराकी में कुछ कर गुजरने की हसरत इनमें बचपन से ही थी और परिवार का भरपूर सहयोग भी मिला..
 गांव के पोखर से तैराकी की शुरूआत करनेवाली ग्रामीण बालिका ने हाल ही मे गोवा में अंतराष्ट्रीय आधुनिक पेंटांथलान संघ द्वारा आयोजित वर्ल्ड टूर प्रतियोगिता मे गोल्ड मेडल जीता.  19 से 21 आयु वर्ग की महिला श्रेणी में भारत की ओर से बेबी और राजस्थान की एक युवती ने हिस्सा लिया था. इसमें बिहार की इस बेटी को कामयाबी हासिल हुई. इस कामयाबी से उत्साहित इस तैराक की इच्छा अब 2018 के ओलंपिक खेल में हिस्सा लेने की है.
यह कामयाबी सिर्फ उसके माता पिता के लिए ही नहीं बल्कि पूरे गांव के लिए खुशी का क्षण लेकर आया है. ग्रामीण ख़ुशी से झूम उठे हैं.  गोल्ड मैडल हासिल करने के बाद गांव पहुंचते ही गांववालो ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया. इस कामयाबी से  मां व पिता का सीना गर्व से उंचा है लेकिन सरकार की उदासीनता बेहद खलने वाली है . इस प्रतियोगिता मे बेबी ने इंग्लैड, श्रीलंका, नेपाल सहित कई देशो के प्रतिभागियों को अपने दम पर पछाड़ा और गोल्ड मेडल पर कब्ज़ा जमाया. प्रदेश सरकार के खेल विभाग या जिला प्रशासन की ओर से इस कामयाबी पर अब तक कोई प्रतिक्रिया सुनने व देखने को नहीं मिली है.
सरकारी अमले का यह हाल तो तब है जब बिहार के बाहर और देश के अन्य बड़ी प्रतियोगिताओं में भी जिला और बिहार का नाम रोशन करने वाली बेबी कुमारी 2007 से लेकर 2014 तक तैराकी में बिहार चैंपियन रही है. अपनी इस कामयाबी के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक से सम्मान पा चुकी हैं.
इतनी बड़ी सफलता के बाबजूद आज तक सरकार ने उसकी कोई सुध नहीं ली. फूस के टूटे फूटे घर, दो गाय के अलावा मछली मारकर परिवार का भरण पोषण करने वाले पिता ने अपनी बेटी के हौसले को कभी कम नही होने दिया. दुखद प्रकरण यह है कि जैसे जैसे यह कामयाबी की सीढियाँ चढ़ती गई इसके परिवार की माली हालत और खराब होती गई.
गौरतलब बात यह है कि बेबी के एक भाई और एक बहन भी तैराकी में अपना जौहर दिखा चुके हैं. बेबी न सिर्फ तैराकी में बल्कि पढ़ने मे भी बचपन से ही मेधावी रही है. बेबी के शिक्षिका अपनी शिष्या की इस कामयाबी पर फूले नही समां रही है. शिक्षिका का भी मानना है की अगर इसकी  प्रतिभा को निखारने के लिए सरकार आगे आए तो नजारा कुछ और हो सकता है. 
बहरहाल गांव लौटने पर गांव के लोगो ने बेबी का गर्मजोशी से स्वागत किया. गांववाले उसे जहां नन्ही जलपरी के नाम से पुकारते हैं वही गांव में खेल के संसाधन के नामोनिशान नही होने से बेहद खफा भी है. गांववाले इस बात से चिंतित हैं कि अगर जल्द ही सरकार ने इस ओर घ्यान नही दिया तो एक दिन इस जलपड़ी  का हैसला कही पस्त न हो जाए.
सीमित संसाधन  के बाबजूद बिहार और देश का नाम रौशन करनेवाली बेबी 2018 में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेल मे हिस्सा लेकर देश का नाम रौशन करना चाहती है। अब लोगों को इंताज तो इस बात का है कि कब  सरकार बेबी के इस सपने को पूरा करने में सहयोग करने को  सामने आती है ?  

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