नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस के प्रकोप से उत्पन्न स्थिति में दवाइयों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण कानून में बड़ा बदलाव किया है। ए के श्रेणी में रखे गये दवाई उद्योग इकाइयों को बी श्रेणी में करने का निर्णय लिया है। इस बदलाव से अब उन्हें इकाई स्थापित करने के लिए आवश्यक पर्यावरण संबंधी बाध्यताओं से छूट मिल गयी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती भारतीय दवाइयों की मांग को देखते हुए भारत सरकार का यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा जिससे दवाई निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी मुद्रा कमाने के अवसर बढ़ेंगे। दूसरी तरफ इससे इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) के वैश्विक प्रकोप से उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति का समाधान करने एवं विभिन्न दवाओं की उपलब्धता या उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 27 मार्च, 2020 को ईआईए अधिसूचना 2006 में एक संशोधन किया है। विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए विनिर्मित थोक दवाओं या मध्यवर्तियों के संबंध में सभी परियोजनाओं या कार्यकलापों को वर्तमान ‘ए‘ कैटेगरी से ‘बी2‘ कैटेगरी में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
किसी औद्योगिक क्षेत्र में मनुष्य के स्वास्थ्य , वहाँ की प्रकृति पर्यावरण और मानव निर्मित संसाधनों पर दवाई उद्योग के संभावित प्रभाव को देखते हुए ईआईए अधिसूचना, 2006, में मोटे तौर पर सभी परियोजनाओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है- श्रेणी ए और श्रेणी बी । अभी तक श्रेणी ए में रखे दवाई उद्योग को अब बी 2 श्रेणी में डाल दिया गया है। बी2 श्रेणी वाले को कई प्रकार की छूट है।
‘बी2‘ कैटेगरी में आने वाली परियोजनाओं को बेसलाइन डाटा के संग्रह, ईआईए अध्ययनों एवं सार्वजनिक परामर्श की आवश्यकता से छूट दे दी गई है। ऐसे प्रस्तावों का पुनर्वर्गीकरण राज्य स्तर पर मूल्यांकन के विकेंद्रीकरण को सुगम बनाने के लिए किया गया है जिससे कि प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके। सरकार ने यह कदम देश में कम समय में महत्वपूर्ण दवाओं/ड्रग्स की उपलब्धता बढ़ाने के उद्वेश्य से उठाया है। यह संशोधन 30 सितंबर, 2020 तक प्राप्त होने वाले सभी प्रस्तावों पर लागू है। राज्यों को भी ऐसे प्रस्तावों की त्वरित गति से प्रोसेस करने के लिए परामशदात्री जारी कर दिए गए है।
इसके अतिरिक्त, दी गई समय सीमा के भीतर प्रस्तावों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिए और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि जमीनी स्तर पर वर्तमान में विद्यमान स्थिति को देखते हुए प्रस्तावों का मूल्यांकन भौतिक बैठकों के जरिये संभव नहीं है, मंत्रालय ने राज्यों को वीडियो कांफ्रेंस जैसी सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का सुझाव दिया है।
लगभग दो सप्ताह की अवधि के भीतर, इस वर्ग के भीतर 100 से अधिक प्रस्ताव प्राप्त हो चुके हैं, जो राज्यों में संबंधित विनियमन प्राधिकारियों द्वारा निर्णय लिए जाने के विभिन्न स्तरों पर हैं।