गुरुग्राम। आरटीआई एक्टिविस्ट हरिंदर ढींगरा ने आज एक प्रेसवार्ता में कहा कि गुरुग्राम आयुध डिपो के प्रतिबंधित क्षेत्र में करीब डेढ़ लाख की आबादी रहती है। उन्हें सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, क्योंकि प्रतिबंधित क्षेत्र होने के चलते वायु सेना के कानून का उल्लंघन पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कई रोक लगा रखी हैं, लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि प्रतिबंध क्षेत्र में यह नियम गुड़गांव क्षेत्र में बने एक पांच सितारा होटल और मॉल के निर्माण पर लागू नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि एनएच-48 पर स्थित एंबियंस मॉल और लीला होटल दोनों दिल्ली स्थित रजोकरी आयुध डिपो क्षेत्र के प्रतिबंधित दायरे में आते हैं, इसके बावजूद निर्माण हुआ और सरकारी तंत्र से सांठगांठ करके आज भी कानून का मजाक बनाया जा रहा है। इस बात के प्रमाणित दस्तावेज मौजूद है। ढींगरा ने आरोप लगाया कि लीला होटल और एंबियंस का जो पूरा साम्राज्य और टाउनशिप बनी है, उसमें करीब 65 एकड़ जमीन पंचायत की है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जगपाल सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के मामले में सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा गया है कि पंचायती जमीन का व्व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि यदि किसी राज्य सरकार ने उसे अलॉट कर दिया है, तो उसे वापस लिया जाए, लेकिन एंबियंस मॉल के मामले में इस आदेश का सही से पालना नहीं किया गया।
प्रेस वार्ता में हरिंदर ढींगरा ने बताया कि 20 फरवरी 1992 एच एल एफ इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड ने 18.98 जमीन पर ग्रुप हाउसिंग और 4 एकड़ जमीन पर होटल के निर्माण के लाइसेंस देने के लिए आवेदन किया। प्रतिबंधित क्षेत्र में आने के बाद भी न सिर्फ लाइसेंस दिया गया, बल्कि वायुसेना की तरफ से 100 फीट से अधिक ऊंची इमारत नहीं करने की शर्त के साथ दी गई एनओसी के इस शर्त का भी अब उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि मॉल व होटल दोनों की ऊंचाई 100 फीट से ज्यादा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जहां एक आयुध डिपो के लोग नर्क का जीवन जीने को मजबूर हैं तो वहीं दूसरी और बिल्डर पर सरकारों ने इतनी मेहरबानी क्यों की?
उनका कहना था कि मेहरबानी का यह सिलसिला 1992 में पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल के समय शुरू हुआ और ओमप्रकाश चौटाला के अंतिम कार्यकाल तक जारी रहा। मौजूदा सरकार के समक्ष यह तथ्य लाना चाहता हूं कि नियमों का उल्लंघन करके बने इस होटल और माल के खिलाफ कार्रवाई हो। इतना ही नहीं ग्रुप हाउसिंग के नाम पर जिस तरह से नाथूपुर गांव पंचायत की जमीन कब्जाई गई है उसे हरियाणा सरकार वापस लें।
उन्होंने जानकारी दी कि लाइसेंस नंबर 19 ऑफ 1993 दिनांक को दिया गया। जो कि 18.98 एकड़ भूमि ग्रुप हाउसिंग के लिए और 4 एकड़ होटल के लिए दी गई। इस 22.98 एकड़ में से 16 एकड़ ग्राम पंचायत नाथूपुर की जमीन थी। उच्च न्यायालय ने सीडब्ल्यूपी 2413 ऑफ 1994 की सुनवाई करते हुए फरवरी 1996 में इसे रद्द कर दी। उच्च न्यायालय ने बिक्री को गलत बताते हुए निरस्त किया और प्राप्त फ़ाइल नोटिंग के अनुसार सरकार ने इस फैसले का संज्ञान नहीं लिया।
उनके अनुसार सरकार कोई भी रही, इस बिल्डर को लाइसेंस का एक्सटेंशन 1993 से 2001 तक मिलती रही
चौधरी भजन लाल ने अपनी सरकार के अंतिम कार्यकाल जनवरी 1996 में लगभग 212 एकड़ क्षेत्र को स्पेशल जोन घोषित किया, जिसमें 129 एकड़ एचएलएफ की और 83 एकड़ हरियाणा टूरिज्म की थी ।
उन्होंने बताया कि 2001 में एंबियंस मॉल और लीला होटल के कर्ताधर्ता राज गहलोत ने सरकार से आग्रह किया कि मेरे 18.98 एकड़ वाले ग्रुप हाउसिंग लाइसेंस को संशोधित कर 8 एकड़ कमर्शियल कर दिया जाए, जिसे सरकार ने उसी दिन कर दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि 2001 में पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने एचएलएफ की उस अर्जी, जिसमे 106 एकड़ जमीन और लाइसेंस लेने की बात थी, जो कैबिनेट के एजेंडा में भी नहीं थी, उसको ना सिर्फ कंसीडर किया बल्कि पास भी कर दिया। इस तरह अब एचएलएफ के पास 129 एकड़ का लाइसेंस हो गया जिसमें 40% कमर्शियल था ।
ढींगरा ने हरियाणा सरकार और मुख्यमंत्री मनोहर लाल से पंचायती जमीन को मुक्त कराने की मांग की है और चौधरी भजनलाल से लेकर ओम प्रकाश चौटाला के आखिरी कार्यकाल तक हुई गड़बड़ियों पर जांच कर ठोस कार्रवाई करने की गुजारिश भी की है।
उन्होंने सवाल किया कि आयुध डिपो के प्रतिबंधित क्षेत्र में डेढ़ लाख लोगों पर जब नियम लागू है तो फिर लीला होटल के मालिकों को ग्रुप हाउसिंग बनाने की मनमानी करने की छूट कैसे मिली?
इन नियमों की हुई अनदेखी:
1. राजोकरी वायु सेना के प्रतिबंधित दायरे में निर्माण;
2. 100 फीट से अधिक ऊंचाई में निर्माण किया गया जो वायु सेना द्वारा 18.98 एकड़ जमीन पर दी NoC के शर्तो के विपरीत है;
3. ग्राम पंचायत की जमीन खरीद कर फिर उस पर टाउनशिप बसाई गई जो कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय आदेशों के जो के खिलाफ है;
4. राष्ट्रीय राजमार्ग से कनेक्टिविटी नहीं होने के बाद भी लाइसेंस दिया गया । लाइसेंस के आवेदन के वक्त तथ्य छुपाए गए । लाइसेंस के लिए 25 मीटर की सड़क जरूरी थी मगर 18 मीटर के साथ ही लाइसेंस दे दिया गया
5. मई 1992 के केंद्र सरकार (MoEF) के नोटिफिकेशन के अनुसार नाले वाली जमीन पर बिना वन मंत्रालय के अनुमति के निर्माण नहीं किया जा सकता, मगर यहां किया गया ।
6. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वायु सेना से शुरुआत में ही है एनओसी ली गई और बाद के सारे लाइसेंस बिना एनओसी के प्राप्त किए और उन पर निर्माण किया ।
पत्रकारों को जानकारी दी कि उनकी ओर से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इस पूरे प्रकरण की हाईकोर्ट जज से जांच कराने की मांग की गई है, क्योंकि इसमें दो राजनीतिक घराने की मिलीभगत है।