संभल कर खाएं केले
मूलचंद शर्मा , योग विशेषज्ञ (Blog Writer)
गुडगाँव। सावधान ! आज कल देश के हर शहर में केवल २५/- से ३०/- रु दर्जन की दर से बेधड़क मृत्यु बेची जा रही है । अतएव हमें सावधान रहने की जरूरत है।
यह सत्य है कि हम सभी केले पसंद करते हैं। इनका भरपूर आनंद उठाते हैं परंतु अभी बाज़ार में आने वाले केले कार्बाइडयुक्त पानी में भिगाकर पकाए जा रहे हैं । इस प्रकार के केले खाने से कैंसर या पेट का विकार हो शतप्रतिशत सकता है । इसलिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें और ऐसे केले ना खाएँ।
कार्बाइड से पके केले कैसे पहचानेगें :
यदि केले को प्राकृतिक तरीके से पकाया है तो उसका डंठल काला पड़ जाता है । केले का रंग गर्द पीला हो जाता है। केले पर थोड़े बहुत काले दाग रहते हैं। परंतु यदि केले को कारबाइड का इस्तेमाल करके पकाया गया है तो उसका डंठल हरा होगा और केले का रंग लेमन यलो अर्थात नींबुई पीला होगा इतना ही नही ऐसे केले का रंग एकदम साफ पीला होता है उसमे कोई दाग धब्बे नहीं होते। इसे गौर से देखने से पता चल जाता है।
क्या है कारबाइड ?
यदि कारबाइड को पानी में मिलाएँगे तो उसमें से उष्मा (हीट) निकलती है और अस्यतेलएने गॅस का निर्माण होता है जिससे गाँव देहातों में गॅस कटिंग इत्यादि का काम लिया जाता है। अर्थात इसमें इतनी कॅलॉरिफिक वॅल्यू होती है की उससे एल पी जी गैस को भी प्रतिस्थापित किया जा सकता है। जब किसी केले के गुच्छे को ऐसे केमिकल युक्त पानी में डुबाया जाता है तब उष्णता केलों में उतरती है और केले पक जाते हैं। इस प्रक्रिया को उपयोग करने वाले व्यापारी इतने होशियार नहीं होते हैं कि उन्हें पता हो की किस मात्रा के केलों के लिए कितनी मात्रा में इस केमिकल का उपयोग करना है बल्कि वे इसका अनिर्बाध प्रयोग करते हैं। इससे केलों में अतिरिक्त उष्णता का समावेश हो जाता है जो हमारे पेट में जाता है जिससे
1. पाचन्तन्त्र में खराबी आना शुरू हो जाती है , 2. आखों में जलन , 3. छाती में तकलीफ़ , 4. जी मिचलाना , 5. पेट दुखना , 6. गले मैं जलन , 7. अल्सर , 8. तदुपरांत ट्यूमर का निर्माण भी हो सकता है .
इसीलिए विशेषग्यो की सलाह है कि इस प्रकार के केलों से बचना चाहिए। इसी तरीके से आम को भी पकाया जा रहा है परंतु जागरूकता से महाराष्ट्र में इस वर्ष लोगों ने कम आम खाए तब जाकर आम के व्यापारियों की आखें खुली। अतः यदि कारबाइड से पके केलों और फलों का भी हम संपूर्ण रूप से बहिष्कार करेंगे तो ही हमें नैसर्गिक तरीके से पके स्वास्थ्यवर्धक केले और फल बेचने हेतु व्यापारी बाध्य होंगे अन्यथा हमारा स्वास्थ्य ख़तरे मैं है। अतः हम अपने स्वास्थ्य के लिए स्वयं ही जिम्मेदार बने।