आर्थिक समीक्षा में सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने का सुझाव
सुभाष चौधरी/संपादक
नई दिल्ली : केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से आज संसद में पेश की गई 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में भारत की जनसंख्या पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि आने वाले दो दशकों में देश की जनसंख्या वृद्धि दर में काफी गिरावट देखी जाएगी। हालांकि बड़ी संख्या में युवा आबादी की वजह से देश को जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा मिलता रहेगा, लेकिन 2030 की शुरूआत से कुछ राज्यों में जनसंख्या स्वरूप में बदलाव से अधिक आयु वाले लोगों की तदाद बढ़ेगी। इन राज्यों की आबादी में बदलाव की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है।
वर्ष 2041 के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जनसंख्या अनुमान यह दर्शाता है कि भारत जनसंख्या स्वरूप में बदलाव के अगले चरण में पहुंच चुका है। आने वाले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर में भारी गिरावट, कुल गर्भधारण दर में हाल के वर्षों में आई कमी तथा 2021 तक इसका और कम हो जाना इसकी प्रमुख वजह होगी। ऐसे समय जबकि सभी प्रमुख राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही है बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में यह अभी भी काफी ऊंचे स्तर पर है।
अगले दो दशकों में देश में जनसंख्या और लोगों की आयु संरचना के पूर्वानुमान नीति-निर्धारकों के लिए स्वास्थ्य सेवा, वृद्धों की देखभाल, स्कूल सुविधाओं, सेवानिवृत्ति से संबंध वित्तीय सेवाएं, पेंशन कोष, आयकर राजस्व, श्रम बल, श्रमिकों की हिस्सेदारी की दर तथा सेवानिवृत्ति की आयु जैसे मुद्दों से जुड़ी नीतियां बनाना एक बड़ा काम होगी।
आर्थिक समीक्षा में जनसंख्या के स्वरूप और जनसंख्या वृद्धि के रुझानों पर कहा गया है कि देश में राज्य स्तर पर इनमें विभिन्नता दिखेगी। जिन राज्यों में जनसंख्या का स्वरूप तेजी से बदल रहा है वहां जनसंख्या वृद्धि दर 2031-41 तक लगभग शून्य हो जाएगी। जिन राज्यों में जनसंख्या संरचना बदलाव धीमा है वहां भी 2021-41 तक जनसंख्या वृद्धि दर में काफी गिरावट दिखेगी।
समीक्षा के अनुसार देश में गर्भधारण क्षमता दर में आई गिरावट के कारण 0-19 वर्ष की आयु वर्ग वाले लोगों की जनसंख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है। देश में टीएफआर दर 2021 तक भरपाई नहीं किए जाने के स्तर तक गिर जाएगी। जनसंख्या में 0-19 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की संख्या 2011 के उच्चतम स्तर 41 प्रतिशत से घटकर 2041 में 25 प्रतिशत रह जाएगी। दूसरी ओर आबादी में 60 वर्ष आयु वर्ग वाले लोगों की संख्या 2011 के 8.6 प्रतिशत से बढ़कर 2041 तक 16 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। कामगार आबादी की संख्या 2021-31 के बीच 9.7 मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगी और 2031-41 के बीच यह घटकर 4.2 मिलियन प्रति वर्ष रह जाएगी।
आर्थिक समीक्षा में कामगार आबादी के प्रभावों पर कहा गया है कि इनकी संख्या श्रम बल और एक राज्य से दूसरे राज्य में विस्थापन में बड़ी भूमिका निभाएगी। 2021-41 की अवधि में श्रम बल की हिस्सेदारी के रूझानों के हिसाब से सरकार को अतिरिक्त रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे, ताकि श्रम बल में सलाना हो रही वृद्धि के हिसाब से रोजगार भी उपलब्ध कराए जा सके।
जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव कई तरह के नीतिगत कठनाईयां पैदा होंगी, इनमें स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं और सेवानिवृत्ति की आयु तय करने जैसी बाते होगी। 2021-41 के बीच देश में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 18.4 प्रतिशत घट जाएगी। इसके बड़े आर्थिक-सामाजिक परिणाम देखने को मिलेगे। प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने से छात्रों के अनुपात में स्कूलों की संख्या बढ़ जाएगी इससे कई प्राथमिक स्कूलों को एक साथ मिलाना पड़ जाएगा।
स्वास्थ्य सेवाएं आज भी देश में एक बड़ी चुनौती है। यदि देश में अस्पताल की सुविधाएं मौजूदा स्तर तक बनी रही तो अगले दो दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट के बावजूद बढ़ती आबादी के कारण प्रति व्यक्ति अस्पताल के बिस्तरों की उपलब्धता बहुत कम हो जाएगी। ऐसे में राज्यों के लिए चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार बहुत जरूरी हो जाएगा।
भारत में जीवन प्रत्याशा औसतन 60 वर्ष होने लगी है यानी 60 वर्ष आयु के लोग भी अब पूरी तरह स्वस्थ रहते है। महिला और पुरुषों के जीवन प्रत्याशा में लगातार हो रही बढ़ोतरी अन्य देशों के अनुरूप है। ऐसे में यह पेंशन प्रणाली की व्यवहार्यता और महिला श्रम बल में वृद्धि में बड़ी भूमिका निभा सकती है।