नई दिल्ली। लोकसभा ने मंगलवार को भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी दे दी जिसमें भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) के कार्यो को दो वर्षो के लिये एक शासी बोर्ड को सौंप जाने और इस दौरान परिषद का पुनर्गठन करने का प्रस्ताव किया गया है।
निचले सदन में ‘भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (संशोधन) विधेयक-2019 पर चर्चा हुई। यह विधेयक इस संबंध में भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद संशोधन दूसरा अध्यादेश 2019 को प्रतिस्थापित करने के लिये लाया गया है। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कहा कि एमसीआई में एक भी सदस्य नहीं होने और रिक्तता की स्थिति बनने के बाद 2010 की व्यवस्था का अनुसरण करते हुए शासी बोर्ड बनाया गया जिसने पिछले आठ महीने में देश में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव और काम किये हैं।
उन्होंने कहा कि प्रतिष्ठित डॉक्टरों वाले इस बोर्ड ने पिछले करीब आठ महीने में एमबीबीएस की 15 हजार सीटें बढ़ा दीं जो अपने आप में रिकार्ड है। बोर्ड ने ज्यादा मेडिकल कॉलेजों की अनुमति दी और नियामक समयसीमाओं को पूरा किया। हर्षवर्धन ने कहा कि यह एक अस्थाई व्यवस्था है और सरकार जल्द स्थाई समाधान के तौर पर राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक लेकर आएगी।
उन्होंने कहा, ”एनएमसी विधेयक जल्द संसद में आएगा और स्थाई व्यवस्था बनेगी। उन्होंने सदस्यों की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि सरकार का एमसीआई की स्वायत्तता को खत्म करने का कोई इरादा नहीं है। वह बोर्ड के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती और केवल कामकाज पर निगरानी रखती है।
हर्षवर्धन ने शासी बोर्ड के कामकाज का उल्लेख करते हुए कहा कि अध्यापकों की गुणवत्ता और सीटें बढ़ाने में सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने अधिकतर राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए सीटों को लागू कर दिया।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, एन के प्रेमचंद्रन और सौगत राय के इस संबंध में लाये गये एक सांविधिक संकल्प को निरस्त करते हुए विधेयक को मंजूरी दे दी। इससे पहले विधयेक को चर्चा एवं पारित होने के लिये रखते हुए डा. हर्षवर्धन ने कहा कि 2010 में संप्रग सरकार के समय ही यह धारणा बन गई थी कि भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) में भ्रष्टाचार का बोलबाला है और यह अपनी उस जिम्मेदारी को निभाने में असफल रहा है जो उसे दी गई थी।
उन्होंने कहा कि उसी श्रृंखला में बोर्ड आफ गवर्नर्स (शासी बोर्ड) बनाया गया। पिछले कुछ महीने में इस संचालक मंडल ने बहुत अच्छा काम किया है। मंत्री ने कहा कि इस संबंध में पिछली सरकार के समय विधेयक संसद में पारित नहीं हो सका था। इसलिये अध्यादेश लागू किया गया।
कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन और तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने इस संबंध में लाये गये अध्यादेश को नामंजूर करने के लिए एक सांविधिक संकल्प पेश किया था। इस संबंध में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हम विधेयक का नहीं लेकिन इस संबंध में लाये गए अध्यादेश के रास्ते का विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य मंत्री अध्यादेश लाने के कारण स्पष्ट नहीं कर सके। चौधरी ने कहा कि सरकार इस संबंध में अध्यादेश पर अध्यादेश लाने के बजाय चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में स्थाई समाधान क्यों नहीं निकालती और एक व्यापक विधेयक लेकर क्यों नहीं आती।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1956 को भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के पुनर्गठन और भारत के लिये एक चिकित्सक रजिस्टर रखे जाने तथा संबंधित विषयों का उपबंध करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
इस परिषद के कामकाज की काफी लंबे समय से समीक्षा हो रही थी और उसकी अनेक विशेषज्ञ निकायों द्वारा समीक्षा की गई थी जिसमें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की विभाग संबंधी संसदीय समिति भी शामिल थी । इस समिति ने मार्च 2016 में अपनी रिपोर्ट में परिषद पर गंभीर आरोप लगाये थे ।
समिति ने यह सिफारिश की थी कि सरकार को यथाशीघ्र एक नया व्यापक विधेयक लाना चाहिए जिससे आयुर्विज्ञान शिक्षा और आयुर्विज्ञान व्यवसाय कर विनियामक प्रणाली की पुन: संरचना और पुनरूद्धार किया जा सके। इसके तहत दिसंबर 2017 में लोकसभा में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पुन:स्थापित किया गया था जो सोलहवीं लोकसभा के विघटन के कारण खत्म हो गया ।
बहरहाल, उक्त परिषद द्वारा की गई ”मनमानी को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा उस परिषद के स्थान पर एक वैकल्पिक तंत्र स्थापित करने के लिये तुरंत उपाय करना जरूरी था जिससे देश में आयुर्विज्ञान शिक्षा के प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्ता लायी जा सके ।
इस उद्देश्य से यह तय किया गया है कि भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के कार्यों को दो वर्षों की अवधि या उस समय तक जब तक उक्त परिषद का पुनर्गठन नहीं हो जाता, तब तक एक शासी बोर्ड को कार्यों को सौंपा जाए । इस प्रस्तावित बोर्ड में विख्यात डाक्टर भी शामिल हों