राव इंद्रजीत समर्थकों ने दक्षिण हरियाणा में लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखनी शुरू कर दी
सीधे सीएम को निशाना बना कर दबाव की राजनीति का आगाज
नगर निगम गुरुग्राम की बैठक में दिखेगा स्पष्ट नजारा
इंद्रजीत समर्थक पार्षद व नेता होने लगे गोलबंद
दो मंत्रियों की लड़ाई की भभक सीएम के चौखट तक पहुंची
सुभाष चौधरी
गुरुग्राम : सोमवार शाम को आयोजित प्रेस वार्ता में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह समर्थक एक मंत्री, मेयर, विधायको और पार्षदों द्वारा अपनाए गए बगावती तेवर की काली छाया अब गुरुग्राम नगर निगम पर पड़ने के प्रबल आसार हैं। ऐसी आशंका है कि आगामी 27 दिसम्बर को अचानक निर्धारित की गई नगर निगम की बैठक में भाजपा के पार्षद दो फाड़ हो सकते हैं। मेयर मधु आजाद और पटौदी से भाजपा विधायक विमला चौधरी द्वारा सीधे मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर तगड़ा हमला बोलने की हनक इस बैठक के लिए विस्फोटक साबित होने वाली है। अब तक केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत और प्रदेश के काबीना मंत्री राव नरबीर के बीच चल रहा शीत युद्ध अब सीधे सी एम मनोहर लाल की चौखट को भी अपने आगोश में ले चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दो दामदार राजनीतिक झोटे की लड़ाई में एक बार फिर पिछली पंचवर्षीय योजना की तरह निगम के कामकाज बुरी तरह प्रभावित होंगे।
खबर है कि इसी माह की 27 तारीख को निगम की सामान्य बैठक सेक्टर 34 के हॉल में आहूत की गई है। इसका एजेंडा सोमवार शाम को सभी पार्षदों को पहुंचा दिया गया है। चर्चा यह है कि राव इंद्रजीत समर्थक भाजपा पार्षद इस बात से नाराज हैं कि इस बैठक की जानकारी अपेक्षित तौर पर कम समय में दी गयी है साथ ही इसका आमंत्रण अधिकारियों द्वारा दिया गया है न कि मेयर की ओर से। हालाकिं निगम के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बैठक आहूत करने के संबंध में गत 22 तारीख को ई-मेल द्वारा सूचित किया गया था। लेकिन पार्षदों को इस बात पर आपत्ति है कि यह सूचना अधिकारियों की ओर से है न कि मेयर की ओर से। राव इंद्रजीत एवं मेयर मधु आजद समर्थक पार्षदों की नजरों में अब निगम के अधिकारी के हर फैसले में मेयर और उनके गुट की उपेक्षा दिखने लगी है।इस गुट के पार्षदों में यह नाराजगी अपने नेता को खुश करने के लिए सिर चढ़ कर बोलने लगी है.
तकनीकि तौर पर किसी भी सदन की बैठक चाहे वह स्थानीय हो या फिर विधानसभा, लोक सभा या राज्य सभा सदन के सचिव, या महा सचिव या कार्यकारी अधिकारी ही अपने अध्यक्ष या सभापति या किसी सरकार की ओर से संबंधित सदस्यों को सूचित करते हैं। यह अलग बात है कि बैठक आहूत करने की सूचना देने के लिए कम से कम निर्धारित समय की अवधि का पालन अवश्य किया जाना चाहिए। इस मामले में पार्षदों के यह तर्क तथ्यात्मक है कि बैठक की जानकारी कम से कम 1 सप्ताह पूर्व अवश्य देनी चाहिए लेकिन इस बार अचानक बैठक बुलाने से आशंका बढ़ गयी है. केंद्रीय मन्त्री समर्थक इसे सरकार के दबाव में सोची समझी रणनीति के तहत उठाया गया कदम मानते हैं जबकि आम लोग सोमवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस से भी जोड़ कर इसे देखने लगे हैं।
आम तौर पर निगम के सदन की आम बैठक स्वतंत्रता सेनानी हाल में आयोजित की जाती रही है लेकिन पार्षदों को भेजी गयी सूचना के अनुसार इस बार यह बैठक सेक्टर 34 स्थित निगम मुख्यालय के तृतीय मंजिल पर बने कॉन्फ्रेंस हाल में होनी निर्धारित है। उस हाल में 35 पार्षद और इसके दोगुने अधिकारी व कर्मचारी के बैठने की व्यवस्था नहीं हो पाएगी। पार्षद व अधिकारी दोनों किसी भी प्रस्ताव को लेकर भिड़ जाते हैं। पार्षदों द्वारा उठाये गए प्रश्नों का जवाब अधिकारी को देना होता है । कई बार दोनों के बीच नोक झोंक भी इतनी बढ़ जाती है कि बैठक में अफरातफरी का माहौल बन जाता है। इस बार तो पार्षदों के दो गुट और तीसरा गुट अधिकारी का है। मेयर मधु आजाद द्वारा सीधे सरकार के मुखिया को निशाना बनाया जाना इस बात के संकेत दे रहे हैं कि तनातनी काफी बढ़ गयी है। मीडिया में जाकर पार्टी की आंतरिक लड़ाई को सड़क पर आम करने से अधिकारी भी सकते में हैं। उन्हें इस बात की आशंका है कि मेयर खेमा इस बार अधिकारियों को जमकर निशाना बनाएंगे। निगम की कार्यशैली को लेकर भी मेयर व डिप्टी मेयर दोनों ने प्रेस वार्ता में सरकार के इशारे पर उनका अपमान करने और मनमाने तरीके से काम करने का सीधा आरोप लगाया है और उनकी उपेक्षा कर अधिकतर निर्णय लेने की बात कही है। ऐसे में पार्षदों का यह धड़ा क्या गुल खिलाएगा इसकी आशंका तीव्र हो चली है। इसलिए उन्हें अलग अलग बैठाने की कोशिश भी होती है।
दूसरी तरफ बैठक की कवरेज के लिए मीडिया बंधु भी बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं। इसलिये भी उक्त हाल को अनुपयुक्त माना जा रहा है। बैठक के लिए इस हाल के निर्धारण के पीछे भी कुछ विशेष कारण बताया जा रहा है। आशंका इस बात की है कि बैठक से मीडिया को दूर रखने की कोशिश होगी और बहाना होगा जगह की कमी। क्योंकि किसी भी तकरार वाली स्थिति को मीडिया की आंखों से ओझल रखना भी अधिकारी अवश्य चाहेंगे। हालांकि इसकी पुष्टि किसी भी श्रोत ने नहीं की है।
पार्षदों का यह भी कहना है की इस बैठक के लिए जो एजेंडे तय किए गए हैं उनमें से अधिकतर विषय ऐसे हैं जिन पर निगम पहले ही काम करवा चुका है और अब उन पर निगम के सदन की मोहर लगवाने की कोशिश होगी। सम्भवना है कि इस बार मेयर खेमा अधिकारियों की इस कोशिश का खुल कर विरोध करेंगे। उनका आरोप है कि अधिकतर काम ऐसे हैं जो प्रदेश के कैबिनेट मंत्री राव नरबीर के इशारे पर उनके मनमाफिक वार्डों में करवाये गए हैं या फिर करवाये जा रहे हैं। जाहिर है इसी प्रकार के आरोप सोमवार को मेयर मधु आजाद और डिप्टी मेयर की ओर से लगाए गए थे। उनका कहना था कि उनकी अनुमति के विना और उनके सुझाव को दरकिनार करते हुए निगम में काम हो रहे हैं जबकि उनके सुझाये कार्यों के प्रति अधिकारियों का टालू रवैया रहता है।
कहा जा रहा है कि निगम प्रशासन ने पिछले दिनों स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर जबकि वार्डों में विकास कार्यों की योजना बनाने व निगरानी करने के लिए कमेटी व सब कमेटी के गठन को लेकर अधिकरी स्तर पर ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। इसमें पार्षदों के सुझाव नहीं लिए गए। पार्षदों की यह सूची काफी लंबी है। पिछली बैठकों में भी निगम क्षेत्र की जमीनों को लेकर विरोध का सामना करना पड़ा था। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अधिकारी ऐसे प्रस्ताव भी पारित कराने की कोशिश करते हैं जो एजेंडा में शामिल नहीं होते हैं। इस स्थिति में विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
चर्चा यह है कि 27 दिसम्बर की बैठक को लेकर कुछ पार्षदों की बैठक भी हुई है। दोनों गुटों के पार्षदों को अपने अपने आका के निर्देश का इंतजार है। इसी पर निर्भर करेगी उनकी रणनीति। बहरहाल यह तो तय है कि बैठक में राव इंद्रजीत गुट इस बार अलग तेवर में दिखेगा और उन्हें मेयर का संरक्षण भी मिलेगा। उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि उनके मनमाफिक मेयर चुने जाने के बाद भी उनकी निगम में नहीं चल रही है। उन्हें अधिकारियों की ओर से वह तबज्जो नहीं मिल रही है जिसकी उन्हें अपेक्षा थी। कुछ का तो यह भी कहना है कि किसी बड़े नेता के इशारे पर उनके वार्डों की उपेक्षा हो रही है। विकास के काम व मेन्टेन्स जिस गति से होने चाहिए नहीं हो रहे हैं जबकि सरकार दावे करने में व्यस्त है।
असल में इस बार का गुरुग्राम नगर निगम , पार्षदों के चुनाव बाद मेयर, डिप्टी मेयर और सीनियर डिप्टी मेयर के निर्वाचन के तत्काल बाद से ही एक विशेष प्रकार के तनाव से गुजर रहा है। कारण है तीनों पदों पर चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत और सीएम मनोहर लाल समर्थक प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री राव नरबीर के बीच हुई राजनीतिक कुश्ती। इस कुश्ती में केंद्रीय मंत्री ने तीनों पदों पर अपने मनोनुकूल पार्षदों को बैठा कर प्रदेश सरकार के मंत्री राव नरबीर, भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों एवं संघ को तगड़ी पटखनी दे दी थी। राव नरबीर अपनी हार पर हाथ मलते रह गए क्योंकि अपने समर्थक पार्षद को मेयर बनवाने का उनका सपना धरा रह गया था।
दूसरी तरफ राव नरबीर को गुरुग्राम का मुख्यमंत्री कहा जाता है। जगजाहिर है कि सीएम मनोहर लाल का विश्वास पात्र होने के कारण उनके सुझाव पर ही यहाँ अधिकतर अधिकारियों की तैनाती और तबादले होते हैं। ऐसे में अधिकारियों का राव नरबीर के प्रति बफादारी भी यहां चर्चा का विषय रहा है। राव इंद्रजीत खेमा का यह कहना है कि मंत्री राव नरबीर के इशारे पर ही अधिकारी मेयर व उनकी टीम को वह तबज्जो नहीं देते हैं जिसकी उन्हें दरकार है। शहर में इस बात की चर्चा पहले से ही रही है कि नगर निगम में सर्वाधिक दखलंदाजी अगर किसी की है तो वह राव नरबीर हैं। प्रदेश सरकार की योजनाओं में उनका हस्तक्षेप सबसे अधिक रहता है और सीएम भी राजनीतिक रूप से इस क्षेत्र में उन पर निर्भर बातये जाते हैं। स्पष्टतः मेयर इस समीकरण की शिकार हो रही हैं।
हालांकि यहां उम्मीद की जा रही थी कि गुरुग्राम विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक उमेश अग्रवाल का नगर निगम पर प्रभाव रहेगा लेकिन उनकी भूमिका नगण्य सी रही है। उनका दर्द यह है कि प्रदेश सरकार के मुखिया मनोहर लाल के खिलाफ पिछले वर्षों में बिगुल फूंकने के कारण आज भी वे उनकी गुड़ बुक में नहीं आ पाए हैं। इसका भी फायदा रॉव नरबीर को मिल रहा है। अधिकारी विधायक उमेश अग्रवाल से भी कटते हैं। अधिकारियों को लगता है कि अगर प्रदेश सरकार को इसकी जानकारी मिल गयी कि वे अग्रवाल के सुझाये काम को आगे बढ़ा रहे हैं तो उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। राव नरबीर का भी कोपभाजन बनना पड़ सकता है। इसलिए प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीतने वाले भाजपा विधायक का निगम के कामकाज में हस्तक्षेप न्यूनतम है। उनकी कमजोरी यह भी रही कि उनके समर्थक प्रत्याशी निगम चुनाव में सीट नहीं निकाल पाए थे। इसलिए राजनीतिक गुणाभाग में भी वे फिट नहीं बैठते हैं। अग्रवाल का झुकाव कई बार राव इंद्रजीत की ओर देखा गया है। उनके बयान भी आते रहे हैं कि वे राव इंद्रजीत के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं। इस कारण सीएम उन्हें कभी नहीं चिताते हैं।पार्टी में पकड़ मजबूत होने के बावजूद सरकार में उनकी पैठ ढीली है।
मेयर मधु आजाद की यह विवशता है कि उनके पास नगर निगम एक्ट के अनुसार अधिकार भी काफी कम हैं। कुल मिलाकर मेयर , सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर को दंतविहीन पद बना कर रखा गया है। फिर पार्षदों की तो बात और भी माशाअल्ला है। नगर निगम एक्ट में ये तीनो ही पद केवल दिखने वाले जेवर गहने की तरह हैं।हाल ही में सीएम मनोहर लाल ने स्थानीय निकायों के प्रमुखों की बैठक की थी जिसमें कई विभाग की निगरानी का अधिकार उन्हें देने की दंत कथा लिखी गयी लेकिन निगम के मेयर टीम के हाथ आज भी खाली हैं।
अब राव इंद्रजीत समर्थकों ने जिस प्रकार अपनी लड़ाई को सार्वजनिक कर दिया और अपनी तलवारें म्यान से निकाल ली उससे तो यही लगता है कि इस प्रकार के तेवर अपने आका के निर्देश के बिना उनके सिपाही नहीं अपना सकते। क्योंकि सोमवार को सीएम पर हमला बोलने के लिए बुलाई गई प्रेस वार्ता में प्रदेश के एक मंत्री और विधायक भी थे। यह किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है और वह भी नगर निगम की बैठक से ठीक पहले होना कई सवालों को जन्म दे गया है। मंत्री अगर अपने ही सीएम की कार्यशैली को लेकर सवाल खडे कर रहे है तो वे ऐसा कुछ सोच कर ही कर रहे हैं । उन्हें इस बात का खयाल अवश्य होगा कि मंत्रिपरिषद में मतभेद का मतलब है इस्तीफा या बर्खास्तगी क्योंकि केबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी की प्रथा है।
अब नगर निगम की बैठक सहित अन्य आयोजनों में विरोध का यह नजारा अक्सर देखने को मिलने की संभावना है। लोकसभा चुनाव नजदीक है सम्भव है उसकी पटकथा लिखने की यह प्रारंभिक तैयारी हो। देखना होगा म्यान से निकली तलवार क्या गुल खिलाती है।