नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद से जुड़े इस्माइल फारूकी केस में गुरुवार को बहुमत का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने बहुमत के फैसले में साफ कर दिया कि इस्माइल फारूकी केस में उसके फैसले को वृहद पीठ के समक्ष स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि यह केस राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मामले से अलग है। कोर्ट ने कहा कि मुख्य मामले पर इसका कोई असर नहीं होगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मुख्य मामले की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि वह 29 अक्टूबर से अयोध्या मामले की सुनवाई विषय के गुण एवं दोष के आधार पर करेगा।
माना जा रहा है कि कोर्ट का आज का फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए एक झटका है क्योंकि कोर्ट ने 1994 के अपने फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा था कि ‘नमाज मस्जिद का हिस्सा नहीं है।’
सर्वोच्च अदालत ने इस संबंध में 1994 के फैसले को बरकरार रखा है। समीक्षा के लिए दायर की गई याचिका खारिज कर दी गई है। 1994 का आदेश इस मामले पर लागू नहीं है।
अब अयोध्या मामले के मुख्य केस पर 29 अक्टूबर से सुनवाई शुरू होगी।
– पीठ के एक सदस्य जस्टिस नजीर ने कहा कि मैं अपने साथी जजों की राय से सहमत नहीं हूं। उन्होंने मामले को बड़ी बेंच को नहीं सौंपने के दो जजों के फैसले के प्रति असहमति जताई। जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी पीठ को यह तय करने की जरूरत है कि आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस क्या है।
– मस्जिद में नमाज पढ़ने का मसला बड़ी बेंच को नहीं भेजने के पक्ष में दो जज ने फैसला दिया । दो जजों ने अपने फैसले में कहा कि केस को बड़ी बेंच को सौंपने की जरूरत नहीं।
-न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा है कि ‘सभी धर्मों और धार्मिक स्थानों को समान सम्मान देने की आवश्यकता है। अशोक के शिलालेख दूसरों के विश्वास के लिए सहिष्णुता का प्रचार करते हैं।