डिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया

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 गांव गैरतपुर बास और रायसीना की 65 एकड़ जमीन को बिल्डरों द्वारा बेचने का मामला   

डिवीज़नल कमिश्नर डॉ डी सुरेश के दरबार में पहुंचे शिकायतकर्ता 75 वर्षीय आर एल नरूला 

डॉ डी सुरेश ने 2015 में किया था दोनों गांवों की उक्त जमीन का मौका मुआयना 

डिवीज़नल कमिश्नर के तीन साल पूर्व के आदेश को भी डीआरओ व डीडीपीओ दबाये बैठे रहे 

100 करोड़ की जमीन घोटाले पर सरकारी अधिकारी पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं

पंचायती जमीन की सेल डीड कराने और फार्म हाउस बनाने का मामला एक दशक बाद भी अनसुलझा

40 एकड़ गांव गैरतपुर बास की पंचायती जमीन जबकि 25 एकड़ दो गांव के बीच का गैप एरिया है 

 

सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक 

 डिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया 2  गुरुग्राम । जिला गुरुग्राम के गांव गैरतपुर बास और रायसीना की 65 एकड़ जमीन पर अवैध कब्ज़ा मामले में गुरुग्राम डिवीज़नल कमिश्नर गुरुग्राम, डॉ डी सुरेश ने डीआरओ, डीडीपीओ गुरुग्राम और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को सारे रिकॉर्ड के साथ तलब किया है. समझा जाता है कि तीनों अधिकारियों से कमिश्नर ने अपने तीन साल पुराने आदेश पर अब तक अमल नहीं होने का स्पष्टीकरण माँगा है. संभावना है कि तीनों अधिकारी अगले सप्ताह पेश होंगे और अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे. उक्त बैठक में शिकायतकर्ता 75 वर्षीय आर एल नरूला के भी मौजूद रहने की प्रबल संभावना है. श्री नरूला ने कमिश्नर को दिए लिखित पत्र में पिछले तीन वर्षों से डिमार्केशन के बावजूद पंचायती जमीन और गैप एरिया की जमीन को बिल्डरों के कब्जे से अब तक मुक्त कराने में की जा रही देरी की शिकायत की है. इस पूरे मामले में डीआरओ और डीडीपीओ गुरुग्राम की भूमिका सवालों के घेरे में आ गयी है क्योंकि इन्होने न तो जमीन खाली कराई और न ही अवैध कब्जाधारकों के खिलाफ मामला दर्ज करवाई. .

उल्लेखनीय है कि बुजुर्ग आर एल नरूला ने इस मामले को लगभग तीन साल पूर्व डिवीज़नल कमीश्नर के समक्ष उठाया था. कमीश्नर ने गाँव गैरतपुर बास और रायसीना की सीमा में आने वाली उक्त जमीन का मौके पर जाकर मुआयाना भी किया था. उस दौरान दोनों गांवों के सरपंचों ने भी अपनी बात कमिश्नर के समक्ष रखी थी. दोनों पक्षों को सुनने के बाद उन्होंने अगस्त 2015 में ही तत्कालीन डीआरओ को इस मामले में कार्रवाई करने का आदेश जारी किया था. लेकिन अब तक कमीश्नर का आदेश भी गुरुग्राम के रेवेन्यू विभाग की फाइलों में दबा रहा यानी.

उल्लेखनीय है कि कंसोलिडेशन एंड प्रिवेंशन ऑफ़ फ्रेगमेंटेशन एक्ट 1948 (CONSOLIDATION AND PREVENTION OF FRAGMENTATION ACT, 1948) की धारा 41 के तहत हरियाणा सरकार ने ऐसे मामलों में निर्णय करने की जिम्मेदारी व पॉवर डिवीज़नल कमिश्नर को डेलिगेट की है जबकि इस एक्ट की धारा 42 उन्हें इस सम्बन्ध में रिकॉर्ड तलब करने और उससे सम्बंधित रिविजन करने एवं निर्णय लेने का अधिकार देती है. क्योंकि यह मामला दो गांवों के बीच के गैप एरिया का है इसलिए इसकी डिमार्केशन और खसरा न. का निर्धारण भी इनके निर्देशन में ही होगा. इसमें यह भी तय किया जाना है कि किस गाँव की जमीन कहाँ तक होगी और किस गाँव को यह जमीन दी जाये. इन्हीं अधिकारों का प्रयोग करते हुए कमिश्नर ने तब डीआरओ को इसे ठीक करने का आदेश दिया था लेकिन इतने महत्वपूर्ण मसले को किस कदर दबाया जाता है इसका नायब उदहारण है यह. यहाँ यह समझना आसान है कि इसे दरकिनार करने के पीछे बड़ा राज छिपा है और वह राज है बिल्डरों द्वारा इस जमीन पर अवैध कब्ज़ा करना व बेचा जाना जिनके खिलाफ कार्रवाई करने से अधिकारी हिचकते रहे.  

गौरतलब है कि कमिश्नर के आदेश के लगभग एक माह बाद ही पंजाब एंड हरीयाणा हाई कोर्ट ने भी उक्त जमीन के डिमार्केशन के लिए समिति गठित करने का आदेश दिया था. समिति द्वारा डिमार्केशन करने के बाद भी  यह मामला डीआरओ और डीडीपीओ के बीच झूलता रहा.      

उनसे पूर्व तत्कालीन डिवीज़नल कमिश्नर प्रदीप कासनी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उक्त दोनों गांवों का दौरा किया था लेकिन उसी दिन उनके तब्दले के आदेश आ जाने के कारन वे इसे सिरे नहीं चढ़ा सके थे. उनके बाद फिर डॉ. डी सुरेश ने इस शिकायत पर गौर किया और मौके का मुआयना किया था. अब तक तीन डीआरओ बदल गए और सभी अधिकारी बिल्डरों को वेशकीमती 65 एकड़ पंचायती जमीन से बेदखल करने से बचते रहे.

खबर है कि शुक्रवार 8 जून को आर एल नरूला ने डॉ डी सुरेश डिवीज़नल कमिश्नर से मुलाक़ात कर उनके आदेश पर अमल नहीं होने की लिखित शिकायत की. इसकी जानकारी मिलते ही कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ गुरुग्राम एवं बादशाहपुर के नायब तहसीलदार को सारे रिकॉर्ड के साथ तलब किया है. इस महत्वपूर्ण बैठक में शिकायतकर्ता आर एल नरूला को भी बुलाया गया है. संकेत है कि इस मामले में अब कई अधिकारियों पर अनुशासनात्म्क कार्रवाई की गाज गिर सकती है. क्योंकि इसमें हुई देरी के पीछे अधिकारियों के अनैतिक खेल की बू आती है. सवाल यह उठ रहे हैं कि ये अधिकारी एक तरफ किसी आम आदमी को सरकारी जमीन से उठा कर फेंकने में तनिक भी देरी नहीं करते और सौ करोड़ की इस जमीन से अवैध कब्जे हटवाने में इन्होने रूचि क्यों नहीं ली ? क्या इसका कारन बड़े बिल्डरों की इन पर चलने वाली धाक है या फिर कुछ और मामला है ? इसके पीछे के राज के खुलासे के लिए स्वतंत्र जांच की मांग भी अब होने लगी है .   

सूत्रों का कहना है कि कमिश्नर ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि सीएम के दो बार के आदेश और अतिरिक्त मुख्य सचिव के हाल के आदेश के एक माह बाद भी एक अधिकारी दूसरे पर मामले की जिम्मेदारी फेंकने में व्यस्त है. जबकि उनके तीन साल पुराने आदेश को भी इन अधिकारियों ने दबाये रखा. पूरे खेल से अधिकारियों की मंशा साफ है कि वे अवैध कब्जेधारकों को बचाते रहे .

अब मामला गरमाता देख डीसी ने डीडीपीओ को सीएम विंडो का हवाला देते हुए इसमें त्वरित कार्रवाई के आदेश जारी कर अपना पल्ला झाड लिया है. लेकिन लोग सवाल तो इस मामले में हुई देरी और इसमें सम्बंधित अधिकारियों की संदेहास्पद भूमिका को लेकर भी पूछ रहे हैं .    

क्या है मामला ?डिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया 3

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व जिला गुरुग्राम के गांव गैरतपुर बास और रायसीना की 65 एकड़ जमीन घोटाले की खबर thepublicworld.com न्यूज पोर्टल में प्रकाशित होते ही गुरुग्राम जिला प्रशासन हरकत में आया और जिला उपयुक्त ने गत गुरुवार को डीडीपीओ को लिखित आदेश जारी कर गाँव गैरतपुर बॉस और रायसीना की 65 एकड़ वेशकीमती पंचायती जमीन से अवैध कब्जा हटाने के लिए त्वरित कार्रवाई करने को कहा. उपयुक्त की ओर से भेजे गए पत्र में माना कि यह मामला बेहद पुराना है और उनके कार्यालय में भी नवम्बर 2017 से लंबित है.   हालाँकि जिला उपायुक्त कार्यालय और डी आर ओ गुरुग्राम भी इस बात से संदेह के दायरे में आ गए हैं कि लगभग सौ करोड़ की इस पंचायती जमीन को बिल्डरों के अवैध कब्जे से खाली कराने के मामले में क्यों निष्क्रियता बरती गयी ? आखिर वह कौन सा दबाव था जिसके कारन कार्रवाई में इतनी देरी की गयी जबकि बादशाहपुर के नायब तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में गत 24 नवम्बर 2017 को ही डीसी कार्यालय /डी आर ओ को भेजी अपनी रिपोर्ट में यह साफ़ कर दिया था कि उक्त पंचायती जमीन पर दिल्ली टावर एन्ड आदर्श नामक कंपनी जो प्रसिद्ध व्यावसायी और बिल्डर अंसल बंधुओं की है का अवैध कब्जा है. नायब तहसीलदार की बेहद स्पष्ट रिपोर्ट पर निर्णय लेने में जिला के जमीन/रेवेन्यू की देखरेख का जिम्मा संभाल रहे अधिकारी के हाथ क्यों बंधे रहे ? आज जारी आदेश पत्र में इस मामले में अवैध कब्जे हटवाने के लिए त्वरित कारवाई करने की हिदायत में कहा गया है कि यह मामला सी एम् विंडो पर काफी लम्बे समय से लंबित है. यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि जो शिकायत 2016 से ही वर्तमान सीएम विंडो पर है उस मामले को भी गुरुग्राम जिला के अधिकारी दबाये बैठे रहते हैं. दो बार सीएम के आदेश और एक बार 12 मई 2018 को अतिरिक्त मुख्य सचिव के आदेश पर भी अमल कराना यहाँ कितना कठिन है इसका सटीक उदहारण यह लगभग 10 साल पुराना पंचायती जमीन को बेचने और कब्जाने का मामला है. इस पूरे प्रकरण में तारीफ़ तो इस बात की है कि शिकायत कर्ता 75 वर्षीय बुजुर्ग आर एल नरूला इन हालात में भी हार मानने को तैयार नहीं हैं.  

 

डिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया 4अधिकारियों की संदेहास्पद भूमिका ? 

उल्लेखनीय है कि करोड़ों की जमीन हड़प कर बेचने और अवैध तरीके से फार्म हाउस बनाने के इस एक दशक पुराने मामले को लगातार दबाये जाने की सरकारी कोशिश होती रही इसलिए यह अब तक अनसुलझा रहा। लेकिन शिकायतकर्ता आर एल नरूला ने हार नहीं मानी और वे रोज फाइलों को लेकर लघु सचिवालय गुरुग्राम और चंडीगढ़ की गलियों के ख़ाक छानते रहे. उनकी इस कोशिश पर पहले सीएम मनोहर लाल और अब अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा सख्त कार्रवाई करने के आदेश जारी करने के बाद भी ढाक के तीन पात वाली स्थिति बनी हुई रही. जिला प्रशासन न तो कार्रवाई करने का संकेत दे रहा था और न ही इस मामले पर कुछ बोलने को तैयार है . सीएम विंडो पर शिकायत करने वाले आर एल नरूला 75 वर्ष की उम्र में भी सरकारी दफ्तर और अदालत के बीच चक्कर काटते रहे हैं। लगातार यही संकेत मिलता रहा  कि सरकारी अधिकारी मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कभी डिमार्केशन के नाम पर तो कभी जांच के नाम पर करोड़ों रुपए की जमीन के घोटाले की तह तक जाने के बाद भी जिला के रेवेन्यू के मालिक सीएम और ए सी एस के आदेश को भी धता बताते रहे. एक शिकायत कर्ता के लिए यह स्थिति बेहद सदमा देने वाली रही कि राज्य के मुखिया के आदेश को भी आखिर एक अधिकारी आखिर कैसे धता बता सकता है ? नियमतः एक अधिकारी प्रदेश के सीएम के आदेश पर अमल करने से मन नहीं कर सकता लेकिन यह सच है कि करोड़ों के जमीन घोटाले के इस मामले पर कार्रवाई को विलंबित करना किसी न किसी रणनीति का हिस्सा रहा जिससे आज तक दो गांवों की पंचायती जमीन पर बिल्डर का कब्जा ही नहीं सारे नियमों को ताख पर रख कर फार्म हाउस बनते रहे और डीडीपीओ/बीडीपीओ सहित रेवेन्यू विभाग मूक दर्शक बने रहे. शिकायत कर्ता नरूला कहते हैं कि अवैध कब्जे हटवाने से जिस तरह सरकारी अधिकारी परहेज करते रहे उससे तो यही लगता है कि अधिकारी या तो इसे अंजाम तक पहुंचाने के इच्छुक नहीं है या फिर किसी न किसी अनैतिक दबाव में उनके कदम ठिठके रहे । तर्क यह दिया जाता रहा कि इस मामले में वीसीएल का केस विचाराधीन है इसलिए अधिकारी इस इन्तजार में थे कि फैसला आने के बाद कोई कार्रवाई करेंगे. साफ़ है कि यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है क्योंकि सिविल के मामले में इस देश में एक के बाद दूसरी पीढ़ी भी न्याय पाने के लिए तरसती रहती.

 

नायब तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट कर दियाडिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया 5

 

लेकिन गौरतलब तथ्य यह है कि जब बादशाहपुर के नायब तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट कर दिया कि उक्त पंचायती जमीन पर बिल्डर का अवैध कब्जा है फिर यह आपराधिक मामला बनता है और इसमें कार्रवाई करने में अधिकारी के हाथ किस भी रूप में बंधे नहीं हैं. फिर भी इसे टाला जाता रहा. जमीन की स्थिति व परिस्थिति के बारे में सरकार अंततः सम्बंधित तहसील या उप तहसील में तैनात अपने तहसीलदार या नायब तहसीलदार की रिपोर्ट पर आँख मूंद कर विश्वास करती है. यहाँ तक कि कोर्ट में भी अधिकतर मामले में उनकी ग्राउंड रिपोर्ट को ही अंतिम माना जाता है. लेकिन गुरुग्राम के लघु सचिवालय में हवा उलटी बहती है .    

गांव गैरतपुर बास और रायसीना का है मामला : 

यह मामला जिला गुड़गांव के गांव गैरतपुर बास और रायसीना का है। यहां की लगभग 65 एकड़ जमीन जो लगभग 100 करोड़ से ऊपर की कीमत की है पर दिल्ली टावर एन्ड आदर्श नामक कंपनी जो प्रसिद्ध व्यावसायी और बिल्डर अंसल बंधुओं की है का अवैध कब्जा बना हुआ है। शिकायतकर्ता रामलाल नरूला के अनुसार इसमें 40 एकड़ जमीन गांव गैरतपुर बास की पंचायती जमीन है जबकि 25 एकड़ जमीन उन दो गांव के बीच का गैप है जिस पर अवैध तरीके से कब्जा किया गया। आश्चर्यजनक रूप उसे बेच दिया गया। सारे नियमों को धता बताते हुए उसकी सेल डीड करा दी गई और उस पर फार्म हाउस का निर्माण भी कर दिया गया।

गौरतलब है कि इस मामले का खुलासा पहली बार तब हुआ जब नगर निगम के कूड़ा डंपिंग के लिए गांव गैरतपुर बास की जमीन का मामला सामने आया।  इन बिल्डरों ने नगर निगम की कूड़ा डंपिंग की जमीन पर कब्जा कर लिया और बदले में आर एल नरूला की जमीन पर कूड़ा डंपिंग कराया जाने लगा. श्री नरूला ने अपनी जमीन पर कूड़ा डंपिंग का विरोध करते हुए इसके लिए प्रस्तावित जमीन की हकीकत प्रशासन के समक्ष उजागर कर दिया. जन इसकी जांच की गयी तो प्रशासनिक अधिकारी हक्के बक्के रह गए क्योंकि हकीकत में कूड़ा डंपिंग के लिए प्रस्तावित जमीन पर बिल्डर का अवैध कब्जा था.   

 

डिवीज़नल कमिश्नर ने डीआरओ, डीडीपीओ और नायब तहसीलदार बादशाह पुर को तलब किया 6पहली शिकायत 26 मई  2005 को

बकौल श्री नरूला इस सम्बन्ध में उन्होंने पहली शिकायत 26 मई  2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से की थी। उन्होंने शिकायत में ग़ैरतपुर बॉस की 45. 58 एकड़ और ग़ैरतपुर बास एवं रायसीना गांव के बीच के गैप की 25 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा होने की जानकारी देते इस अवैध कब्जे से मुक्त करवाने की गुहार लगाई थी। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि लंबे अर्से तक इस मामले में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के जमाने में कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन बुजुर्ग नरूला की लड़ाई जारी रही.

 

तत्कालीन डी सी शेखर विद्यार्थी ने इस कंप्लेंन पर संज्ञान लिया 

 

वर्ष 2014 में जिला गुरुग्राम के तत्कालीन डी सी शेखर विद्यार्थी ने इस कंप्लेंन पर संज्ञान लेने की हिम्मत दिखाई और उक्त जमीन की डिमार्केशन के आदेश जारी कर दिए। डिमार्केशन के दौरान इस बात का खुलासा हो गया कि वास्तव में लगभग 65 एकड़ जमीन पर अवैध तरीके से फार्म हाउस का निर्माण किया गया है और उक्त बिल्डर कंपनी से खरीदी हुई जमीन दिखाई गई है. डिमार्केशन से स्पष्ट सिद्ध हो गया कि उक्त वेशकीमती जमीन पर अंसल का अवैध कब्जा है।

बताया जाता है कि तब के डी सी के इस साहसिक कदम के खिलाफ अंसल ने चंडीगढ़ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधीश सूर्यकांत की अदालत ने इस मामले में 26 सितंबर 2015 को निर्णय दिया. अदालत ने अपने आदेश में साफ़ कर दिया कि 7 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर इस जमीन की डिमार्केशन कराई जाए। अदालत के निर्णय के आलोक में तत्कालीन जिला उपायुक्त ने 7 सदस्यों की कमेटी गठित की और वर्ष 2016 में उक्त जमीन का डिमार्केशन किया गया जिससे यह स्पष्ट हो गया कि लगभग 65 एकड़ जमीन जो 100 करोड़ की कीमत की है पर अवैध कब्जा है।

 

टी एल सत्यप्रकाश के समय मामला अधर में लटका रहा 

जब जिले के उपायुक्त टी एल सत्यप्रकाश बने फिर एक बार यह मामला अधर में लटक गया। शिकायतकर्ता श्री नरुला जिला उपायुक्त के दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक गए लेकिन मामला जस का तस वहीँ अटका रहा। जिला उपायुक्त के रूप में हरदीप सिंह की तैनाती के बाद फिर इसको लेकर सक्रियता बढ़ी. उन्होंने इस मामले पर संज्ञान लिया और डिमार्केशन की प्रक्रिया को हरी झंडी दी और इस संबंध में कोर्ट में केस डालने और दो गांव के बीच में गैप एरिया को ठीक कराने का आदेश जारी कर दिया।

आश्चर्यजनक रूप से तब से ही सोहना SDM की कोर्ट में बीसीएल केस की इस संबंध में सुनवाई चल रही है। अब तक इस पर निर्णय नहीं हो पाया है। हालांकि इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साफ तौर पर निर्देश जारी किया था कि वीसीएल केस अगले 4 माह के अंदर निस्तारित किया जाए ।

शिकायत कर्ता का आरोप : 

श्री नरूला के अनुसार ग़ैरतपुर बास एवं रायसीना गांव के बीच की 25 एकड़ खेत वाली जमीन का मामला अभी डीआरओ गुड़गांव के पास लंबित है। उनका आरोप है कि  इस गेप एरिया वाली जमीन को भी संबंधित बिल्डर ने बेच दिया है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि पंचायती जमीन को अवैध तरीके से कब्जाने और बेचने के धंधे को लेकर डीडीपीओ गुरुग्राम का रवैया सुस्त है। इस मामले में बीडीपीओ की ओर से भी कार्रवाई के कदम बहुत धीरे चल रहे हैं।

उन्होंने यहां तक आरोप लगाया है कि जिला प्रशासन के अधिकारियों ने इससे संबंधित केस को जानबूझकर डिले किया गया। SDM गुड़गांव ने पत्र लिखकर इस पर की गई कार्रवाई की जानकारी डीडीपीओ गुरुग्राम से मांगी लेकिन डीडीपीओ ने किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने की जानकारी एसडीएम कार्यालय को नहीं दी. अंततः SDM गुड़गांव ने डीडीपीओ की ओर से एक्शन टेकन संबंधी रिपोर्ट नहीं देने का हवाला देते हुए शिकायतकर्ता को अपना जवाब नकारात्मक रूप में दे दिया। यानी इतना सब कुछ करने के बाद भी शिकायतकर्ता के हाथ खाली रहे.  

यह स्थिति तो तब है जब मार्च 2006 में तत्कालीन सीटीएम आसिमा गर्ग ने स्वयं इस मामले की इंक्वायरी की थी और उन्होंने भी एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. उक्त रिपोर्ट डीडीपीओ गुरुग्राम के पास थी जो अब उक्त कार्यालय से गायब बताई जाती है।बताया जाता है कि आसिमा गर्ग ने भी अपनी रिपोर्ट में अवैध कब्जे की बात स्वीकारी थी और उसे पंचायती जमीन बताया था.

शिकायतकर्ता का कहना है कि SDM गुड़गांव ने इस संबंध में वीसीएल केस की हियरिंग के दौरान संबंधित कंपनी से जब लैंड रिकॉर्ड की जानकारी मांगी तब भी अंसल कंपनी के प्रतिनिधि उक्त जमीन की रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में असफल रहे।

एक बार फिर वर्तमान सीएम से उन्होंने इसमें हस्तक्षेप  की मांग करते हुए तत्काल कार्रवाई की गुहार लगाईं. उनकी शिकायत पर सीएम ने इस सम्बन्ध में ऍफ़ आई आर दर्ज कर कार्रवाई शुरू करने का आदेश जारी किया है लेकिन प्रशासन निष्क्रीय रहा . अभी हाल ही में गत 12 मई को भी अतिरिक्त मुख्य सचिव ने जिला प्रशासन से कार्रवाई करने को कहा लेकिन 24 नवम्बर 2017 से यह फाइलों में बंद रहा.

जानकारी के अनुसार बुधवार 6 जून 2018 को  thepublicworld.com न्यूज पोर्टल में प्रकाशित समाचार  पर गुरुग्राम जिला प्रशासन हरकत में आया और गुरुवार सुबह आनन फानन में डीसी कार्यालय से डीडीपीओ गुरुग्राम के नाम सख्त लहजे में आदेश पत्र जारी कर दिल्ली टावर्स एंड एस्टेट बनाम हरियाणा के मामले में कार्रवाई सुनिश्चित कर एक्शन टेकन रिपोर्ट देने को कहा गया. नरूला कहते हैं कि अधिकारियों की अब तक की कार्यशैली से अब भी इस मामले में उम्मीद कम है लेकिन जमीन घोटाले को उजागर करने का उनका संघर्ष जारी रहेगा.

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