शहरों से जुदा है, मेवात में सहरी जगाने और इफ्तार खोलने का तरीका

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: शहरों में सहरी खत्म होने और रोजा खोलने के लिए लाल-पीली बत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है

: मेवात में सहरी और इफ्तार की लोगों को जानकारी देने के लिए साईरन, नगाडा और लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल होता है

यूनुस अलवी

 
मेवात :  रमजान का महिना चल रहा है, इसलाम धर्म में रजमान महिने की बेहद फजीलत हैं। उलेमाओं के अनुसार रमजान माह में ही कुरान शरीफ आसमान से जमीन पर उतारी गई थी। रमजान में एक माह के रोजे रखे जाते हैं। रोजे रखे जाने के लिएं सहरी और इफ्तियार अहम है। क्योंकि रोजा रखने और रोजा खोलने का आम जनता को जानकारी देने के लिए खास तैयारियां की जाती हैं। अल-सुबेह आजकल करीब चार बजे से पहले खाना खाने को सहरी कहते हैं वहीं शाम करीब सात बजकर 10 मिनिट पर रोजा खोलने को इफ्त्यार कहते हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि हर रोज सहरी और इफ्त्यार में समय घटता बढता रहता है। ऐसे में हर आदमी को पता नहीं चल पाता की रोजा कब खुलेगा और कब बंद होगा इसके लिए सहरी जगाने और रोजा खोलने का सभी इलाकों में तरीका अलग-अलग है।
 
   मसलन अल सुबेह करीब चार बजे से पहले रोजेदारों को खाना जरूरी है। खाना बनाने की तैयारियों को करीब दो ढाई बजे खडा होना हर आदमी के बस कि बाद नहीं हैं, क्योंकि आदमी रमजान के महिने में देर से यानि करीब 11-12 बजे सोते हैं। इसलिए रोजा रखने वाले लोागों को जगाने के लिए शहरों में जहां शहरी जगाने के लिये कई लोगों की ड्यूटी लगा देते हैं जो घर-घर जाकर लोगों को जगाने का काम करते हैं। वहीं रोजा खोलने और सहरी बंद करने के लिए शहरों की मस्जिदों की मिनारों पर लाल-पीली लाईटें लगा देते हैं। 
  लेकिन मेवात में शहरी जगाने का तरीका अलग हैं। मेवात में सहरी जगाने की जिम्मेदारी ज्यादातर मस्जिदों के इमामों की होती है जो अल-सुबेह करीब ढाई बजे मस्जिदों में अजान के लिये लगे लाउडस्पीकरों के माध्यम से, नगाडों या साईरन की गुजों से रोजा रखने वालों को जगानें का काम करते हैं। मेवात मे एक और खास बात है जो अन्य शहरों में नहीं मिलती है। मसलन सहरी बंद होने पर मस्जिद की मिनरों पर लाल बत्ती जला देते है लेकिन मेवात की मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकरों के माध्यम से इमाम रोजा रखने वालों को एक-एक मिनिट की जानकरी देते रहते हैं। जब सहरी का समय समाप्त हो जाता है तो साईरन बजाकर आगाह किया जाता है कि समय समाप्त हो गया है जो भी इसके बाद खाऐगा-पीऐगा उसका रोजा नहीं रहेगा।
 
     इसी तरह मेवात जिला में इफ्त्यार (रोजा खोलने का समय)के समय भी साईरन और लाउडस्पीकरों का सहारा लिया जाता है जबकी कई शहरों में लाल-हरी बिजली की लाईटों के सहारे रोजा खाला और बंद किया जाता है।
 
   जमियत उलमा हिंद की नोर्थ जोन के सदर मोलाना याहया करीमी का कहना है कि मेवात इलाके में अनपढता ज्यादा है। मजूदर और किसान तबका के अधिक लोग हैं  जिनको अल सुबेह खडा होने में काफी दिक्कत आती है इसलिए नगाडा, साईरन और लाउडस्पीकरों के माध्यम से राजेदारों को इफ्त्यार खोलने और सहरी बंद करने की जानकारी दी जाती है। जो पढे लिखे होते हैं उनको समय का पता होता है इसलिए उनको बताने की कोई जरूरत नहीं होती है। वे खुद समय पर रोजा खोल लेते और समय पर सहरी बंद कर देते हैं।

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