नई दिल्ली : केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को किसी धार्मिक संस्था के द्वारा निर्देशित नहीं किया जा सकता है. धार्मिक स्वतंत्रता और पूजा की पद्धति व परम्पराओं के निर्वहन की स्वतंत्रता अलग विषय है लेकिन व्यक्तिगत मौलिक अधिकार संविधान द्वारा निर्देशित होते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि मौलिक अधिकारों को लेकर अगर लॉ कमीशन देश में लोगों के मंतव्य जानने की कोशिश कर रहा है तो यह संविधान सम्मत है, इसमें कोई गलती नहीं है.
श्री जेटली ने एक निजी न्यूज चैनल से कहा कि युनीफोर्म सिविल कोड से तीन तलाक का कोई सम्बन्ध नहीं है. उनके अनुसार किसी धार्मिक बॉडी को तलाक जैसे मामले में किसी पर्सनल ला का हवाला देकर किसी के व्यक्तिगत अधिकार का हनन करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है. इसमें पैत्रिक संपत्ति , शादी, तलक जैसे मामले आते हैं. जहाँ तक तीन तलाक का मामला है तो इस तरह के संशोधन इस देश में लगातार होते रहे है. उन्होंने बताया कि देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के ज़माने में १९५६- ५७ के दौरान हिन्दू मैरेज ला को संशोधित किया गया जबकि उससे पहले हिन्दू हभी कई शादियाँ कर सकते थे विना तलाक दिए. लेकिन किसी हिन्दू ने इस अपने धर्मं के खिलाफ नहीं बताया.
उन्होंने कहा कि इसी तरह २००१ में अटल बिहारी वाजपेयी के ज़माने में ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए पुरुष एवं महिला के बीच समानता का अधिकार देने के लिए सम्बंधित क़ानून में संशोधन किया गया और उसमें ईसाई धर्म के सभी संस्थाओं का समर्थन मिला. इसी तरह डॉक्टर मनमोहन सिंह के ज़माने में भी हिन्दू परिवारों में पुरुष व महिलाओं को संपत्ति का सामान अधिकार देने सम्बन्धी कानून बनाया गया जबकि धार्मिक या परंपरा के अनुसार पिता कि संपत्ति में बेटी को संपत्ति का अधिकार नहीं दिया जाता था. लेकिन किसी ने इसक विरोध नहीं किया.
एक सवाल के जवाब में श्री जेटली ने कहा कि संविधान सभा में जहा डॉ राजेंद्र प्रसाद , सरदार पटेल, डॉ आंबेडकर जैसे लोग थे, तब डॉ आंबेडकर ने ही युनिफोर्म सिविल कोड का प्रस्ताव रखा था और सभी सहमत थे. इस लिए ऐसा प्रावधान जो संविधान में मौजूद है उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में ला कमिशन की ओर से लोगों का सुझाव मंगना गलत कैसे हो सकता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि पर्सनल ला संविधान के अनुसार होना चाहिए.