नगर निगम का जल संरक्षण – अंधेरे में तीर मारने जैसा

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गुरुग्राम में जल संरक्षण के लिए एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली : वी उमाशंकर

गुरुग्राम के 60 प्रतिशत से अधिक पिट्स बेकार पड़े हैं

वर्षा से पूर्व ही सभी हार्वेस्टिंग सिस्टम्स को मेंटेन करने की कवायद शुरू 

चार प्रमुख तालाबों को पुनर्जीवित करने का काम भी आवंटित

इस सम्बन्ध में निगम से भी प्रस्ताव पारित करवाया जाएगा

 

सुभाष चौधरी/ प्रधान संपादक 

गुरूग्राम, 16 नवम्बर। नगर निगम गुरूग्राम के आयुक्त वी उमाशंकर ने कहा कि गुरुग्राम में जल संरक्षण के लिए एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने की नितांत आवश्यकता है.  शहर में मौजूद सभी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की पहचान कर उसे वर्षा से पूर्व कारगर बनाना हामरे लिए चुनौती है क्योंकि निगम के पास इसका पूरा डाटा अभी उपलब्ध नहीं है. वर्तमान में वाटर हार्वेस्टिंग के 350 पिट्स में से लगभग 60 प्रतिशत पिट्स बेकार पड़े हैं. सभी पिट्स की पहचान कर इसकी मेंटेनैन्स की जिम्मेदारी शहर की आर डब्ल्यूए को दी जा सकती है. अब तक चार प्रमुख तालाबों को पुनर्जीवित करने का काम भी आवंटित कर दिया गया है जबकि अगले चरण में अन्य तालाबों की पहचान करना व नए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के निर्माण की योजना है. अब इस सम्बन्ध में निगम से भी प्रस्ताव पारित करवाया जाएगा.

 

 श्री उमाशंकर ने यह जानकारी आज नगर निगम कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में दी. उन्होंने कहा कि शहर में जल भराव की समस्या से निपटने व जल संरक्षण की दृष्टि से पिछले वर्ष मई जून में ही नगर निगम की ओर से लगभग 200 पिट्स की मेंटेनैन्स करवाई गयी थी. इससे इस बार वर्षा के मौसम में सडकों पर जलभराव की समस्या अपेक्षाकृत कम हुई. इस बार एहतियातन वर्षा से काफी पहले इसका काम शुरू कर दिया गया है जिससे सभी पुराने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के पिट्स को चिन्हित कर ठीक कराया जा सके. साथ ही ख़राब पाए जाने पर उन्हीं स्थानों पर नए पिट्स भी बनवाये जायेंगे. 

 

उल्लेखनीय है कि नगर निगम गुरूग्राम द्वारा पर्यावरण प्रेरणा तथा गुरूग्राम एक्शन प्लान संस्था के सहयोग से नागरिक भागीदारी के तहत गुरूग्राम में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की योजना पर काम शुरू किया गया है। जल सरंक्षण पर वर्षों से काम  करने वाले सिरसा निवासी जल स्टार रमेश गोयल और गुरूग्राम एक्शन प्लान की प्रतिनिधि गौरी सरीन को भी पत्रकार वार्ता में अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया था.

 

तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए तीन-तीन बार टेंडर फेल हुए

एक सवाल के जवाब में निगमायुक्त ने बताया कि नगर निगम ने उन सभी पहलुओं को रेखांकित कर काम करना शुरू कर दिया है जिनसे शहर में जल प्रबंधन को मजबूत किया जा सके. इसके लिए पुराने तालाबों को चिन्हित करना व उनका पुनरुद्धार करना भी प्राथमिकता की सूचि में है. उनके अनुसार इसमें भी बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने खुलासा किया कि तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए तीन-तीन बार टेंडर के विज्ञापन दिए गए लेकिन कोई भी ठेकेदार काम करने को आगे नहीं आ रहा था. हालाँकि काफी मशक्कत के बाद अब सुखराली, बसई, फाजिलपुर झाड़सा तथा वजीराबाद में तालाबों के वर्क आर्डर आवंटित कर दिए गए हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि हालांकि तालाबों की डिजाइनिंग और इंजीनियरिंग का काम बेहद पेचीदा है लेकिन इनके निर्माण का काम अब शीघ्र शुरू हो जाएगा. जब उनसे ठेकेदारों का रुझान इस और नहीं होने का कारण पूछा गया तो निगमायुक्त ने इसकी जानकारी होने से इनकार किया.

 

सिस्टम मेन्टेन करने की जिम्मेदारी आर डब्ल्यू ए को देने पर विचार : नरहरि बांगड़

पत्रकार वार्ता में निगम के अतिरिक्त आयुक्त डा. नरहरि बांगड़ ने पत्रकारों के सवाल पर माना कि पूर्व के बने वाटर हार्वेस्टिंग में से सौ पिट्स जरूरत के हिसाब से कारगर नहीं हैं. इनमें अपडेशन की जरूरत है. उन्होंने स्पष्ट किया कि शहर में कुल कितने पिट्स हैं इसकी पक्की जानकारी नहीं है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हुडा के कई सेक्टर्स और कई निजी डेवेलपर्स की कालोनियों में पिट्स को चिन्हित किया जाना अभी बाकी है.

 

उनके अनुसार अभी नए पिट्स तैयार करवाना व्यवहारिक दृष्टि से आसन नहीं है क्योंकि एक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के निर्माण में लगभग 6 से 8 लाख रु. खर्च आते हैं जबकि पुराने को ठीक करवाने में 15 से 30 हजार रु.. ऐसे में अगर 300 नए पिट्स बनवाने का निर्णय लिया भी जाए तो उसके लिए बड़ी राशी चाहिए. इसका खर्च आर डब्ल्यू ए पर भी थोपना सही नहीं होगा. निगम की रणनीति इस दिशा में स्पष्ट है कि इसमें लोगों को भागीदारी सुनिश्चित की जाए. उन्होंने इशारा किया कि इसकी जिम्मेदारी सी एस आर के तहत कुछ डेवलपर्स पर भी दी जायेगी जबकि कुछ आर डब्ल्यू ए भी सक्रीय भूमिका अदा करने के इच्छुक हैं. कम्युनिटी सेण्टर की तरह हार्वेस्टिंग सिस्टम को भी मेन्टेन करने का शुल्क निगम देने पर विचार कर रहा है.

 

पिट्स निर्माण में खामियां बरती गयीं : रमेश गोयल

    
जल संरक्षण की विशेषज्ञता रखने वाले जल स्टार रमेश गोयल ने भी गुरुग्राम में जल संरक्षण की व्यवस्था को लेकर अब तक का अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि शहर के सेक्टर 21 ए और 10 ए जैसे इलाके में सभी पिट्स की सफाई कराई गयी थी लेकिन ये वर्किंग आर्डर में नहीं हैं क्योंकि इनके निर्माण में खामियां बरती गयीं हैं जबकि अधिकतर ऐसे हैं जिन्हें दोबारा बोर कर वाटर टेबल तक पहुँचाना आवश्यक है. श्री गोयल के अनुसार शहर में वाटर टेबल की स्थिति भी दयनीय स्थिति में है इसलिए भी ये पिट्स बेकार हो चले हैं. कई पिट्स तो मलबे में दबे हुए हैं जबकि इसकी कामयाबी की पहली शर्त है कि इसमें गंदा पानी नहीं जाए. उनका मानना था कि अधिकतर जगहों पर नए पिट्स बनाने की जरूरत है. 

 

जल संरक्षण से होने वाले फायदे गिनाते हुए उन्होंने बताया कि इससे एक ओर जहां भूमिगत जल का स्तर ठीक होगा, वहीं सडक़ों पर जल भराव की समस्या भी दूर होगी। इसके साथ ही सीवर ओवरफ्लो नहीं होंगे तथा पानी साफ रहेगा। उन्होंने अगाह किया कि वाटर हारवैस्टिंग पिट के निर्माण के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए  कि गन्दा पानी जमीन के अंदर नहीं जाए क्योंकि गंदा पानी जाने से भूमिगत जल दूषित होगा।

 

संरक्षण अभियान के लिए एक वाट्सएप ग्रुप

उन्होंने बताया कि जल संरक्षण अभियान के लिए एक वाट्सएप ग्रुप भी बनाया गया है, जिसमें आरडब्ल्यूए प्रतिनिधि, अधिकारीगण सहित नागरिकों को भी जोड़ा गया है। उन्होंने बताया कि नगर निगम के जूनियर इंजीनियर अपने-अपने क्षेत्र में वाटर हारवैस्टिंग सिस्टम को चैक कर उसकी पूरी रिपोर्ट देंगे, जिसके आधार पर आगे की योजना पर अमल किया जाएगा।

 

गुरूग्राम एक्शन प्लान का होम वर्क कमजोर

 

पत्रकार वार्ता के दौरान गुरूग्राम एक्शन प्लान की प्रतिनिधि गौरी सरीन और निगम के अधिकारियों के बीच इस बात को लेकर असहमति दिखी कि वर्तमान में कितने पिट्स नाकामयाब हैं. गौरी सरीन ने अपने सर्वे को आधार मानते हुए दावा किया कि 60 प्रतिशत सिस्टम्स या तो बेकार हो चले हैं या फिर बंद पड़े हैं. जब उनसे शहर में मौजूद कुल हार्वेस्टिंग सिस्टम्स का आकंडा पूछा गया तो उनके पास इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं था. यहाँ तक कि सरकारी एजेंसियों जिनमें हुडा औए नगर निगम शामिल है की ओर से भी उन्होंने इस सम्बन्ध में आधिकारिक संख्या मिलने से इनकार किया. जाहिर है उनकी संस्था ने इस मामले पर काम तो शुरू कर दिया लेकिन उनके कथन से स्पष्ट होता है कि अभी तक उनकी बैठक न तो हुडा के अधिकारियों के साथ हुई है और न ही भूमिगत जल स्तर पर नजर रखने वाले केन्द्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण या फिर हाइड्रोलॉजी डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों से हुई है. जब उनसे यह पूछा गया कि विना होम वर्क के ही आपने काम शुरू कर दिया तो उनका बचाव निगम के अतिरिक्त आयुक्त डा. नरहरि बांगड़ ने यह कहते हुए किया कि योजना अभी प्राथमिक स्टेज में है सभी एजेंसियों से बात की जायेगी.

इस अवसर पर नगर निगम के कार्यकारी अभियंता ललित मोहन जिंदल और जूनियर इंजीनियर प्रेमसिंह भी उपस्थित थे।

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