मेव मुसलमान सूर्य वंशी और चंदवंशी नहीं है : इतिहासकार सद्दीक मेव

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: पैगंबर हजरत नूंह के पौत्र याफस के बेटे मेदइ(madai) अथवा मेद के वंशज हैं

 

यूनुस अलवी

मेवात :     अपने आप को सूर्य और चंद्र बंशी कहने वाले मेवात के मुस्लिम लोगों के तर्क को मेवात के इतिहासकार सद्दीक मेव ने गलत ठहराया है। सद्दीक का कहना है कि जो जाति कृष्ण से भी पहले पैदा हुई हो वह उनकी औलाद कैसे हो सकती है। उनका कहना है कि मेवात में बसने वाले मेवात समाज के लोग सूर्य और चंद्र बंशी नहीं है बल्कि मेवों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सम्बन्ध प्राचीन मेदों के वंशज से है। 
  मेवात के इतिहास पर करीब दस किताब लिख चुके सद्दीक मेव का कहना है कि जब हम इतिहास में मेदों की जड़ों को तराशते हैं तो पाते हैं कि मेदों पैगंबर हजरत नंूह के पौत्र याफस के बेटे मेदइ(madai) अथवा मेद के वंशज हैं। इस तरह मेवों का कोई दादा या या जिनके बंशज है तो वह मेदइ/याफस/हजरत नंूह हैं।
   उनका कहना है कि याफस के वंशज ही आर्य कहलाते हैं, जिनका रंग सफेद होता है। आर्य सबसे पहले कुरू और पुरू नामक दो कबीलों या खानदानों में बंटे। फिर मेद नाम का तीसरा कबीला वजूद में आया। मेद कबीला इतना बड़ था कि वह ईरान, इराक और अजरबैजान से लेकर सिंध तक फैला हुआ था। इससे स्पष्ट है कि सिन्धु सभ्यता पर आर्यों के आक्रमण से पहले ही मेद/मेव आर्य सिन्ध में आबाद हो चुके थे और आर्यों के भारत में प्रवेश के बाद ही वे राजपूताने और पंजाब के रास्ते जमाना तक फैल गये।
     उन्होने कहा कि चरवाहे आर्यों का लड़ाके गिरोह क्षत्रिय कहलाये और विद्वान तथा पुरोहित गिरोह ब्राह्मण कहलाया। समय के साथ आर्य अपनी उपासना पद्धतियों के अनुसार सूर्य वंशी और चन्द्रवंशी में बंट गये। इसके साथ ही ॠषियों के वंशज ऋषि वंशी कहलाये। बाद जब 750 ई0 पू0 राजपूतों का उदय होना शुरू हुआ तो एक चौथा वंश अग्निवंश वजूद में आये।
     सुर्यवंश में राम चन्द्र जी महापुरुष हुए तो चन्द्रवंश में श्रीकृष्ण जी महापुरुष हुए। इसी तरह निकल में परशुराम जी महापुरुष हुए। इसलिए यह कहना तो उचित हो सकता है कि चन्द्रवंशी और सूर्यवंशी मेव जिन वंशों में पैदा हुए उन्हीं वंशों में  रामचन्द्र जी और श्रीकृष्ण जी जैसे महापुरुष भी पैदा हुए,मगर यह कहना गलत है कि सारे मेव राम और कृष्ण की औलाद हैं।
     सद्दीक का कहना है कि यह ग़लतफहमी राजपूतों के उदय के बाद पैदा हुई। यह सही हो सकता है कि रामचन्द्र जी और पाण्डवों के वंशजों ने काफी समय तक राज किया हो। उसके बाद क्षत्रियों के 36 कुल वजूद में आये जिनमें मेर नाम से मेव भी शामिल हैं। दस कुल चन्द्रवंशी,दस सूर्यवंशी,बारह ऋषि कुल और चार अग्निवंशी। इन सभी कुलों के मुखियाओं ने किसी न किसी तरह अपने आपको बड़ा साबित करने के लिए प्राचीन महापुरुषों से जोड़ लिया।
      उसके बाद एक परम्परा बन गई कि जो भी सत्ता पर काबिज होता वही अपनी वंशावली किसी महापुरुष से मुख्य रूप से रामचन्द्र जी या कृष्ण जी से जोड़ लेता ताकि ब्राह्मणों का विरोध न झेलने पड़े। शिवाजी का उदाहरण हमारे सामने है।
   तेरहवीं शदी के मध्य में में जब काकू राणा बाल्य ने मेवों को बारह+एक पल्लाकड़ा,तेरह पालों में बांटा और उनके भूपति/चौधरी नियुक्त किये तो इन चौधरियों ने परम्परानुसार अपने आपको चन्द्रवंशी और सूर्यवंशी कह कर रामचन्द्र जी और कृष्ण जी के वंश से जोड़ लिया,जिससे आम जन का कोई लेना देना नहीं था।
     इस तरह मेव भारतीय परम्परानुसार सूर्यवंशी या चन्द्रवंशी अथवा रघुवंशी तो हो सकते हैं, सीधे लव, कुश, अर्जुन या युधिष्ठिर की औलाद नहीं हो सकते। मेव उनसे प्राचीन आदिम जाति है। महाभारत में मेवों/मद्रों की उपस्थिति के स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं फिर वे पाण्डवों के वंशज कैसे हुए।
     उनका कहना है कि इतिहासकार पिलानी ने लिखा है कि हेरोडोट्स एक मिलेनियम पहले यूनान में मेवाती (रूड्डद्ग2शह्लद्ग) लोग आबाद थे। भैरोसिंह के अनुसार तो ईसा से लगभग 2000 पहले मेव कौम यूनान में आबाद थी। इतनी प्राचीन कौम रामचन्द्र जी औलाद कैसे हो सकती है। बस यही कहा जा सकता है कि रामचन्द्र जी,कृष्ण जी और मेवों का वंश एक था। दादा तो हमारा मेदइ/याफस अथवा पैगंबर हजरत नूंह ही था।
      उनका कहना है कि आम तौर 1500 या 2000 ई0 पू0 आर्यों का भारत में आना माना जाता है। उसके पश्चात् 1000 ईसवी पूर्व रामायण काल माना जाता है और उसके 200 से 300 साल बाद महाभारत का युद्ध हुआ। जिसका अर्थ है कि श्रीकृष्ण जी 700 या 500 ई0 पूर्व पैदा हुए हैं। जबकि हुजूर पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म 579 ई0 में हुआ है। मतलब श्रीकृष्ण जी मुहम्मद साहेब से लगभग 1100 साल पहले पैदा हुए थे। 

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