केन्द्र सरकार ने हरियाणा सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दी
गुुरुग्राम। बधाई हो आप सभी को ! अब आज से आप सभी गुरुग्राम वासी हो गए हैं। भूल जाइए अब कि आप गुडग़ांव निवासी के रूप में जाने जाते थे क्योंकि केन्द्र सरकार ने हरियाणा सरकार के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिसमें गुडग़ांव का नाम बदल कर गुरुग्राम करने को मंजूर करने का आवेदन किया गया था। अब गुडग़ांव भारत के अभिलेखागार की किताबों में यह नाम सदा के लिए अंकित होते हुए यदा कदा अपने आरंभ से लेकर अंत की कहानी कहता रहेगा। इसकी पुष्टि प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने की। यानि अब शहर हो या जिला गुरुग्राम के नाम से ही जाना जाएगा।
शहरों के नाम बदलने की परम्परा सदियों से
अगर इतिहास को पलट कर देखें तो इस देश में नया शहर बसाने या फिर थोड़े बहुत बदलाव के बाद उस जगह का नया नाम रख कर अपनी बादशाहत दिखााने की परम्परा सदियों से रही है। आम तौर पर प्रत्येक युग में ऐसे उदाहरण मिलतेे हैं। द्वापर हो या त्रेता या फिर सतयुग व कलियुग हमेशा हमारे राजा महराजाओं ने अपनी सुविधानुसार इस तरह के कदम उठाए हैं। तब और अब में फर्क इतना है कि राजा महराजा अपने मन से या अपने दरबारियों की सलाह पर ऐसा करते रहे थे लेकिन अब कथित लोकतंत्र में जनता की मांग बता कर प्रस्ताव पारित कर इसे अंजाम दे दिया जाता है। इसी तरह के कदम से कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई और बेगलुरू जैसे प्रमुख शहरों के नाम बदले गए हैं।
प्रस्तुत करने को अभ्यस्त हो जाएंगे
इसलिए गुरुग्राम के नाम पर आपत्ति या आशंका जताने वालों को इस उदाहरण से समझ लेना चाहिए कि थोड़े दिनों की आपाधापी के बाद आप भी उसी तरह इस नाम के साथ स्वयं को प्रस्तुत करने को अभ्यस्त हो जाएंगे जैसे उन शहरों के लोग हो गए। वैसे कालांतर मेंं इस शहर के कई नाम हो गए थे जैसे साईबर सिटी, मिलेनियम सिटी आदि आदि। जिसका जो मन करता था उसी नाम से पुकारता रहा था। हो सकता है गुरुग्राम नाम से उस परम्परा को विराम मिले।
फरवरी 2012 में नगर निगम से इस प्रस्ताव को पारित कराया
हालांकि भारतीय जनता पार्टी की शाखाओं की ओर से इस नाम की मांग यदा कदा उठती रही थी लेकिन फरवरी 2012 में नगर निगम से इस प्रस्ताव को पारित कराने की मुहिम निगम के उप मेयर परमिन्दर कटारिया ने चलाई थी। जब प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन सरकार को भेजा गया था तब भी लोगों को इसकी गम्भीरता पर संदेह था क्योंंकि दंतहीन नगर निगम की ओर से पारित न जानें कितने प्रस्ताव प्रदेश सरकार को भेजे गए और चंडीगढ़ की आलमारियों में अपने हाल पर आज भी रो रहे हैं। इस प्रस्ताव को वर्तमान मनोहर लाल सरकार ने गम्भीरता से लिया और अचानक ही अपनी संस्तुति के नोट लगाकर केन्द्र सरकार को भेज दिया।
भावनात्मक निर्णय पर भारत सरकार की मोहर
केन्द्र सरकार ने भी सक्रियता का परचिय देते हुए इस भावनात्मक निर्णय पर भारत सरकार की मोहर लगा दी। कहा जा रहा है कि इस मुहिम में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेश खुल्लर ने गति प्रदान की है। श्री खुुल्लर गुडग़ांव के निगमायुक्त भी रह चुके हैं और तब भी इनकी हामी इस प्रस्ताव के प्रति थी। इसलिए इस बात में दम तो है। इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं कि राजा महराजा के मंत्री व सलाहकार कुछ अच्छी बातें उनसे मनाव लेते थे। केन्द्र सरकार की ओर से लिए गए इस त्वरित निर्णय के पीछे है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का आगामी 1 नवम्बर को गुडग़ांव आने का प्रस्तावित कार्यक्रम जब हरियाणा सरकार प्रदेश के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बड़े कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है।
स्मार्ट सिटी में नाम दर्ज नहीं करने की भरपाई
अधिकतर विश्लेषकों का यह मानना है कि यह स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री जब किसी ऐसे शहर का दौरा कर रहे हैं तो उनकी झोली में शहरवासियों की थाली में परोसने के लिए कुछ खास खास मुद़दे तो होने चाहिए। सो केन्द्र सरकार ने उनके गुडग़ांव प्रोग्राम को ध्यान में रखते हुए इसे उपलब्धियों की सूचि मेंं दर्ज करा दिया। वैसे प्रदेश सरकार के साथ साथ केन्द्र सरकार के कर्ताधर्ताओं को भी इस बात का एहसास है कि प्रधानमंत्री की स्मार्ट शहर विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना वाली सूचि में गुरुग्राम (गुडग़ांव ) का नाम दर्ज नहीं किया गया है। इसके जो भी कारण रहे हों लेकिन इस सवाल को धूमिल करने की कोशिश में प्रदेश सरकार भी जुटी है और उनका सहयोग केन्द्र सरकार भी करती दिख रही है।
राव इन्द्रजीत ने भी किये थे सवाल
यह कहना सही तब नहीं होता अगर स्थानीय सांसद व केन्द्र में मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह की ओर से इसको लेकर सवाल खड़े नहीं किए गए होते। क्योंंकि उन्होंने अब कुछ अखबारों को दी अपनी प्रतिक्रिया में गुरुग्राम नाम का स्वागत तो किया है लेकिन सावधानी के साथ और यह कहते हुए कि केवल यह कदम पर्याप्त नहीं है यहां की आधारभूत संरचनाओं को विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में काम करना जरूरी है। उनकी इस मांग का जवाब प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राव नरबीर ङ्क्षसह यह कहते हुए देते रहे हैं कि शहर से गुजरने वाले हाईवे का कायाकल्प किया जा रहा है। हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट को हाईवे एवं जाहजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने मंजूरी दी है और शिलान्यास भी कर गए हैं, कुछ पर काम भी शुरू है। लेकिन सवाल है शहर के अंदर के हालात को बदलने पर ध्यान अब भी कम है।
शहर की देखरेख के लिए एकीकृत व्यवस्था नहीं
अगर बात करें मेट्रो प्रोजेक्ट की दूसरे चरण पर पिछले दो वर्षों से माथा पच्ची हो रही है। मैट्रो को इस शहर के किस दिशा में मुख्यमंत्री ले जाना चाहते हैं अब तक अंतिम निर्णय नहीं हो सका है। अभी दो दिन पूर्व ही शहर के एक भाग के आरडब्ल्यूए के प्रतिनिधियों ने जिला उपायुक्त व निगमायुुक्त से मिल कर निगम में स्थानांतरित करने की गति बढ़ाने की मांग की। हकीकत में यह मुद्दा पता नहीं कितने वर्षों से विचाराधीन है लेकिन अब तक क्रियान्वयन को मोहताज है। समझा जा सकता है कि जिस शहर की देखरेख के लिए एकीकृत व्यवस्था पर इतने साल बाद भी निर्णय नहीं हो पाया है उसके विकास की गति किस चाल से चल रही है। अच्छा होता अगर मुख्यमंत्री 1 नवम्बर से पूर्व गुरुग्राम नाम की घोषणा करने के साथ-साथ इस मुद्दे पर निर्णय सुना देते। नगर निगम के ऐसे ढेरों प्रस्ताव हैं जिसकी चर्चा यहां की जा सकती है जिसे नाम बदल से पूर्व मंजूर करने की जरूरत थी लेकिन उन पर गौर फरमाने की कार्यवाही अभी जारी है।
गुडग़ांव में यूनिवर्सिटी स्थापित करने की मांग लंबित
दूसरी तरफ कांग्रेस नीत सरकार के जमाने से ही गुडग़ांव में यूनिवर्सिटी स्थापित करने की मांग होती रही है, यह भी लंबित है। शिक्षा के विकेन्द्रीकरण के प्रति गम्भीरता का परिचय दिया जाना अभी बाकी है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इन सभी समस्याओं का निराकरण मुख्यमंत्री की उस घोषणा पर अमल से होने लगेगा जिसमें उन्होंने गुरुग्राम डेवलपमेंट अथारिटी गठित करने की बात की है। और वह भी धरातल पर 1 नवंबर से पूर्व ही आ जाएगा ऐसा वायदा है यहां की जनता से।
जीडीए का वास्तविक प्रारूप अब तक सामने नहीं
सरकार जनता से बनती है, मगर जनता को दी जाने वाली सुविधाओं या संस्थाओं के गठन में उनसे सुझाव नहीं मांगती। कुछ पूर्व आईएएस या वर्तमान आईएएस या खास लोगों के साथ एक या दो दिन का सेमिनार कर इसकी इतिश्री कर ली गई और बता दिया गया कि जीडीए का जन्म केवल योजना बनाने के लिए हो रहा है अमल के लिए के नहीं। अमल तो निगम के पास ही रहेगा। वास्तविक प्रारूप अब तक सामने नहीं आया है।
यानि हम और आप इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं हम अब तक जितने दरबाजे पर सुविधाओंं के लिए दौड़ते थे उसमें एक दरबाजा और बढ़ गया। दूसरी तरफ हिन्दुओं के पूर्वज ही इस बात की ओर इशारा करते रहे हैं कि घर में सभी धार्मिक ग्रन्थ रखना लेकिन महाभारत जैसे ग्रन्थ को कदापि न रखना और न पढना, अन्यथा घर में कलह और संघर्ष होगा. लेकिन प्रदेश सरकार को उस काल से बहुत प्यार है जिस काल में सभी युगों में से सर्वाधिक मानव युद्ध की भेंट चढ़े थे जैसा कि शास्त्र कहते हैं. अब हमें यही मानकर चलना है कि उम्मीद पर दुनिया टिकी हुुई है इसलिए हम गुरुग्राम नाम के साथ उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाला समय महाभारत काल जैसा नहीं सतयुग जैसा होगा जहां वर्चस्व के लिए संघर्ष नहीं बल्कि सहअस्तित्व का बोलबाला होगा।