चंडीगढ़, 7 जुलाई 2017। चंडीगढ़ प्रशासन की दादागिरी के सामने चुने हुए, नॉमिनेटेड और पदेन सभी 36 के 36 पार्षद लाचार और विवश हैं। शहर के पार्षदों में प्रशासन से पूछने की इतनी भी हिम्मत नहीं कि वार्ड कमेटियों का गठन छह महीने बीतने के बाद भी क्यों नहीं हुआ? इसको लेकर शहर से तीखी प्रतिक्रियाएं मिल रही है। अब तक वार्ड कमेटियों के गठन न होने पर किसी ने प्रशासनिक अधिकारियों की दादागिरी बताया है, तो किसी ने पार्षदों की हिम्मत और कार्य क्षमता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। किसी ने तो यहां तक कह दिया कि धिक्कार है चंडीगढ़ के पार्षदों को, समझ में नहीं आता कि शहर इन पार्षदों पर गर्व करे या शर्म! फ़िलहाल जो भी हो प्रशासन की दादागिरी बरकरार है। यहाँ यह भी बताना जरूरी है पंजाब म्युनिसिपल एक्ट में उक्त कमेटियों के गठन को अनिवार्य बताया गया है, ताकि विकास कार्य में जन-भागीदारी बढ़े।
सूत्रों की मानें तो इस साल गत माह फरवरी माह में सभी 26 वार्डों के पार्षदों ने वार्ड कमेटियों के संभावित सदस्यों के 10-10 नामों की सूची एमसी के माध्यम से डीसी को भेजी थी। ताकि न सिर्फ पुलिस वेरिफिकेशन हो जाए, बल्कि प्रशासन से भी अप्रूवल मिल जाए। तब से लेकर अब तक संभावित सदस्यों की सूची की स्थिति क्या है, किस हालत में है और कहां धूल चाट रही है। किसी भी पार्षदों को सही सही जानकारी नहीं है। इस प्रकार से चंडीगढ़ प्रशासन की दादागिरी के सामने पार्षदों की बोलती बंद है। शहर के किसी पार्षदों में हिम्मत नहीं है कि प्रशासन से पूछ सके कि उनकी फाइलें कहां है। यहाँ बताना जरूरी है कि पंजाब म्युनिसिपल काउन्सिल एक्ट 1976, सेक्सन 41-A के तहत वार्ड कमेटियों का गठन अनिवार्य है। ताकि विकास के काम पर जन-भागीदारी को तय किया जाए।
कमेटियों का गठन ख़ाक होगा!
फॉस्वेक के अध्यक्ष बलजिंदर सिंह बिट्टू ने पार्षदों की कार्यशैली को लेकर ही सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा यदि एमसी को इसी तरह काम करना है तो शहर में नगर निगम की जरूरत ही क्या है। बिट्टू के अनुसार प्रशासन के सामने जब पार्षदों की बोलती ही बंद हो जाती है तो वार्ड कमेटियों का गठन, क्या ख़ाक होगा। फॉस्वेक अध्यक्ष बिट्टू ने तीखी प्रतिक्रिया में कहा कि चंडीगढ़ पार्षदों को धिक्कार है, समझ नहीं आता कि इन पार्षदों पर गर्व करूं या शर्म। उनके अनुसार शहर का रखवाला अब तो उपर वाला ही है। बिट्टू ने कहा कि प्रशासन को अंग्रेज की तरह काम करना है। प्रशासन चाहता है कि साल के अंतिम तीन माह के लिए उक्त कमेटियों का गठन कर खाना पूर्ति कर दी जाय।
नौकर जब मालिक बन जाए!
पार्षद दिलीप शर्मा ने वार्ड कमेटी के गठन न होने पर खेद जताया। उन्होंने कहा जब नौकर मालिक बन जाए, तो हालत ऐसी हो जाती है। शर्मा ने वार्ड कमेटी का गठन न होने पर मेयर आशा जसवाल को जिम्मेदार ठहराया है पर उन्होंने इसके लिए पार्षदों को भी जिम्मेदार ठहराया है। क्योंकि सभी पार्षदों को एक जुट होकर अपनी बात पूरी ताकत से प्रशासक और प्रशासन के सामने रखने की जरूरत है। पार्षद दिलीप शर्मा के अनुसार हमें प्रशासन को जताना पड़ेगा कि चुने हुए प्रतिनिधि भी समाज के लिए जिम्मेदारी निभाते और निभा सकते हैं। इसलिए प्रशासन को जन-प्रतिनिधियों के प्रति आदरमान का भाव रखना पड़ेगा।
पार्षद गुरबख्श के भी तीखे तेवर
अक्सर शांत स्वभाव और नरम दिखने वाली पार्षद गुरबक्श रावत भी वार्ड कमेटियों के गठन न होने से बेहद नाराज हैं। उन्होंने कहा अगर वार्ड कमेटियों का गठन खानापूर्ति के लिए ही करना है, तो इसे बंद करे। बारिश का समय आ चुका है, सफाई, सीवर और नाले की समस्याएं धरी हुई है। छह महीने बीत चुके हैं।इसके बाद भी अब तक वार्ड कमेटियों का गठन नहीं हुआ है, जबकि एमसी से जरूरी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी है। पार्षद रावत ने दावा किया कि एमसी हाउस में कई बार इस मसले को उठाया पर रिजल्ट वही ढाक के तीन पात। एक सवाल पर रावत ने कहा पूर्व मेयर सुभाष चावला और पूनम शर्मा के समय प्रशासन के साथ एमसी का तालमेल ठीक था। पर वर्तमान मेयर आशा जसवाल का प्रशासन के साथ जरा भी तालमेल नहीं है।
उन्होंने कहा इसका अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि एमसी और प्रशासन के बीच को-ऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक आज तक नहीं हुई है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि जब विजय देव एडवाइजर होते थे, तब एक भी फाइल प्रशासन में नहीं अटकती थी। जन-प्रतिनिधि जब भी काम को लेकर फोन पर सम्पर्क करते थे, तब विजय देव जैसे अधिकारी भी न सिर्फ फोन उठाकर बात करते थे, बल्कि फाइल किस स्थिति में होती थी यह भी जानकारी देते थे पर आज की हालत बिलकुल उल्ट है।
गुरबक्श के अनुसार मेयर आशा जसवाल, संसद किरण और केंद्र की सरकार जन-भागीदारी का पूरा बखान करते हैं। वार्ड कमेटियों के गठन का उद्देश्य भी जन भागीदारी ही है। पर प्रशासन, मेयर और सांसद का इस ओर जरा भी ध्यान ही नहीं है। उनके अनुसार वार्ड कमेटियों का गठन छह माह बीत जाने के बाद भी होगा या नहीं मुश्किल ही लगता है।
एक्ट की भी उड़ रही धज्जियां!
पूर्व पार्षद और वरिष्ठ अधिवक्ता सतिंदर सिंह ने कहा कि पंजाब म्युनिसिपल कौंसिल एक्ट 1976, सेक्सन 41-A या कह सकते हैं कि पंजाब कौंसिल लॉ एक्सटेंशन टू चंडीगढ़ एक्ट-1994 की प्रशासन धज्जियां उड़ा रहा है। सिंह के अनुसार एक्ट में विकास कार्य में जन-भागीदारी बढ़ाने के लिए इस एक्ट को बनाया गया है। हालत यह है कि जन भागीदारी बढ़ाने की परवाह प्रशासन को तो बिलकुल भी नहीं है। एमसी पार्षदों को जन भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाकर वार्ड-कमेटियों का गठन करवाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सफाई में चंडीगढ़ खिसक कर दूसरे पायदान से गिरकर 11वें स्थान पर आ गया है। इसके लिए चंडीगढ़ प्रशासन ही जिम्मेदार है। सतिंदर सिंह ने कहा सफाई में दो से 11 स्थान पर खिसकने के लिए कमिश्नर ने एक बयान में शहर की जनता को जिम्मेदार ठहराया था। पर सच्चाई तो यह है कि प्रशासन के आला अधिकारी जन-भागीदारी चाहते ही नहीं। अगर प्रशासन जनता की भागीदारी चाहते तो ऐसे में वार्ड कमेटियों का गठन साल की शुरुआत जनवरी में ही कर देते। पर हर साल प्रशासन का रवैया यही रहता है। खानापूर्ति के लिए दो तीन माह के लिए वार्ड कमेटियों का गठन कर दिया जाता है, जबकि कार्यकाल एक साल का है।
श्रोत : चंडीगढ़ न्यूज एक्सप्रेस डाट काम