6 करोड़ किसान रोज़ी-रोटी को मोहताज : आलोक

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स्वर्ण भारत पार्टी के उपाध्यक्ष ने सरकार पर लगाया गन्ना किसानों को लूटने का आरोप

नई दिल्ली: भारत की एकमात्र लिबरल पार्टी, स्वर्ण भारत पार्टी के उपाध्यक्ष आलोक कुमार ने आज कहा कि भ्रष्ट नेताओं और क्रोनी पूंजीपतियों के माध्यम से सरकार द्वारा गन्ने के किसानों को संरक्षण देनें के बहाने खुली लुटाई की जा रही है। सरकार नें बाज़ार का गला घोंट रखा है और गलत नीतियों से देश में 6 करोड़ गन्ना किसानों की रोज़ी रोटी को प्रभावित कर रखा है ।

शीरे के ganna-1अंतिम उपयोग पर कोटा नियुक्त

समाजवादी कानून गन्ने और गन्ने के उत्पादों, दोनों के संचलन और मूल्य को पूर्ण रूप से नियंत्रित करते हैं केंद्र सरकार गन्ने के “उचित और लाभकारी मूल्य“(ऍफ़आर पीको तय करती है जबकि राज्य सरकारराज्य सलाह मूल्य“(एस पी) को तय करती है। परंतु सच्चाई तो यह है कि ये तय की गई कीमतें उचित होने से कोसो दूर हैं राज्य सरकार  शीरे के अंतिम उपयोग पर कोटा नियुक्त करती है और शीरे और खोई पर अंतर्राज्‍यीय व्यापार पर प्रतिबंध लागू करके रखती है। इसप्रकार किसानों को अपनी फसलों का सक्षम मूल्य कभी नहीं मिल पाता है ।

 

बाज़ार भाव और सरकार द्वारा नियंत्रित भाव में अंतर

श्री आलोक कुमार ने गन्ने के मुख्य उत्पाद शीरे का उदाहरण दिया शराब के उत्पाद में शीरे की अहम भूमिका उत्पादक सामग्री के रूप में होती है जबकि शीरे काखुले बाज़ार में भाव 7000 रुपये प्रति टन का है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार मीलों को 2000 रुपये प्रति टन से ज्यादा नही बेचनें देती। बाज़ार भाव और सरकार द्वारा नियंत्रित भाव में जो अंतर है(जोकि असल में हज़ारों करोड़ों में बैठता है), उसकी भ्रष्ट नेताओं और शराब के लाइसेंस धारक के बीच में बन्दर बॉट कर ली जाती है ।

गन्ना नियंत्रण अधिनियम 1966 का प्रावधान

जबकि गन्ने के इस नियंत्रित भुगतान को भी किसानों को करनें में सरकार और मील मालिकों को करनें में सालों लगतें हैं, जिससे विलंभ के कारण किसानों को औरअधिक नुक्सान होता है। गन्ना नियंत्रण अधिनियम 1966 के मुताबिक यदि मील किसानों को गन्ना भुगतान में 14 दिनों से ज्यादा विलंभ करतें हैं तो 15 प्रतिशतब्याज के साथ मूल गन्ने के भुगतान का प्रावधान है लेकिन दुर्भाग्यवश गन्ना किसानों का भुगतान हमेंशा लंबित होता आया है और पिछले 20 वर्षों से आज तक उन्हेंलंबित होनें के कारण तय ब्याज नहीं दिया गया है ।  कानून में यह भी प्रावधान दिया गया है कि जो मिलें किसानों के गन्ना भुगतान में विलंभ करतीं हैं वे संग्रह केंद्र से गन्ने को मीलों तक ढ़ोने में परिवहन शुल्क को नहीं काट सकती। लेकिन इस कानून का सदैव उलंघन होता आया है।

 अधिकतम मूल्य पर बेचनें की स्वतंत्रता क्यों नहीं ?

श्री आलोक कुमार ने पुछा: खुले बाज़ार में सरकार की दखल अंदाजी का क्या औचित्य है?मीलों को शीरे की अधिकतम मूल्य पर बेचनें की स्वतंत्रता क्यों नहीं है जोउन्हें खुले बाज़ार में मिल सकती है ? आलोक कुमार ने कहा कि ये निन्दात्मक जनविरोधी कानूनों को हटाना होगा। कृषि का भारत में खुला बाज़ार होना आवश्यक है ।स्वर्ण भारत पार्टी गन्ने और इसके उत्पादों का समस्त भारतवर्ष में खुला संचलन चाहती है और सभी क़िस्म के अंतिम उपयोग कोटे का परित्याग चाहती है ।

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