हरियाणा के 11 वैज्ञानिकों को ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’

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प्रो. के.सी.बंसल व डॉ. सतीश कुमार गुप्ता को ” हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड”

अब हर वर्ष 28 फरवरी को वैज्ञानिकों को मिलेगा सम्मान 

अवार्ड की राशि बढ़ा कर चार लाख रु. करने का ऐलान 

चंडीगढ़, 10 मई :  हरियाणा सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग ने आज यहां हरियाणा राजभवन में आयोजित एक सम्मान समारोह में हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा प्रदेश के 11 वैज्ञानिकों को ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’ तथा ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री  अनिल विज भी उपस्थित थे। 
इस दौरान ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’ की राशि दो लाख से बढ़ाकर चार लाख रूपए करने तथा भविष्य में ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के अवसर पर प्रति वर्ष 28 फरवरी को वैज्ञानिकों को अवार्ड देने का कार्यक्रम आयोजित करने की भी घोषणा की गई।समारोह में राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो नई दिल्ली के पूर्व निदेशक प्रो. के.सी बंसल को वर्ष 2012-13 के लिए तथा जैव कोशिका प्रजनन प्रयोगशाला राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के पूर्व उपनिदेशक डॉ. सतीश कुमार गुप्ता को वर्ष 2013-14 के लिए ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। उनको अवार्ड के रूप में दो लाख रूपए,एक प्रशस्ती पत्र व शॉल भेंट किया।
इनके अलावा ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न अवार्ड’ कैटेगरी में वर्ष 2012-13 के लिए श्री अभिनीत कौशिक व श्री प्रदीप कुमार को,वर्ष 2013-14 के लिए डॉ. दीपक शर्मा व श्री प्रवीण कुमार को,वर्ष 2014-15 के लिए डॉ. सविता चौधरी व डॉ. अभिनव ग्रोवर को,वर्ष 2015-16 के लिए डॉ. संदीप कुमार व डॉ. विनोद कुमार को,वर्ष 2016-17 के लिए डॉ. अनुराग कुहाड़ को सम्मानित किया गया। इन सभी युवा वैज्ञानिकों को अवार्ड के रूप में एक लाख रूपए,एक प्रशस्ती पत्र व शॉल भेंट किया।
 

अवार्ड प्राप्त करहरियाणा के 11 वैज्ञानिकों को ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’ 2ने वाले वैज्ञानिक : 

1. प्रो. के.सी.बंसल-पूर्व निदेशक,राष्ट्रीय पौध अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर),पूसा, नई दिल्ली। 
    प्रो. के.सी.बंसल हरियाणा के जिला हिसार के रहने वाले है। उन्होंने डी.एन.कॉलेज, हिसार से बीएससी तथा चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से एमएससी की शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली से स्वर्ण पदक के साथ पीएचडी डिग्री की भी उपाधि हासिल की। इसके उपरांत उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज यूएसए से पोस्ट डॉॅक्टोरेट की उपाधि हासिल की।
वैज्ञानिक सहयोग: पौध जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रो. बंसल का राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं द्वारा सूखा/तनाव सहिष्णु ट्रांसजेनिक चावल, गेहूं, काबुली चना, सरसों, मुंगफली, टमाटर और चाय को विकसित करने के लिए उन द्वारा खोजे गए जीन का उपयोग किया गया। प्रतिष्ठित पत्रिका में उनके 100 से अधिक शोध प्रकाशित हुए हैं। 
समस्त गेहूं जर्मप्लाजम के मूल्यांकन पर अंतर्राष्ट्रीय गेहूं उत्पादन समुदाय से आईसीएआर के प्रमुख संस्थान राष्ट्रीय पौध अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीपीजीआर) पूसा  के निदेशक के रूप में प्रो. बंसल के महत्वपूर्ण कार्य की प्रशंसा हुई है और इसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में प्रविष्टि भी मिली है। बंसल ने अनेक पुरस्कार जीते हैं। उनमें से महत्वपूर्ण उपलब्धि उनका राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) और भारत की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (एनएएसआई) का फेलो और एशिया से संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि अनुवांशिक संसाधन आयोग का वाइस-चेयरमैन के रूप में चुना जाना है। प्रो. के.सी.बंसल को उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड प्रदान किया गया।

 

2. डॉ. सतीश कुमार गुप्ता-पूर्व उप-निदेशक,प्रजनन प्रकोष्ठ जैविकी प्रयोगशाला नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनॉलोजी नई दिल्ली।
 डॉ. सतीश कुमार गुप्ता का जन्म छछरौली, जिला यमुनानगर, हरियाणा में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी की उपाधि हासिल की और द्वितीय स्थान हासिल किया। इसके उपरांत उन्होंने एमएससी की और अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान नई दिल्ली से जैव-रसायन में पीएचडी की उपाधि हासिल की।हरियाणा के 11 वैज्ञानिकों को ‘हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड’ 3
वैज्ञानिक योगदान: डॉ. सतीश कुमार गुप्ता ने देश में पहली बार मोनोक्लोनल प्रतिरक्षी उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी की स्थापना की और पहली स्वदेशी प्रेगन्नेसी डिटेक्शन किट  का निर्माण करने में इसका उपयोग किया गया व सार्वजनिक उपायोग के लिए उद्योग द्वारा इसकी बिक्री की गई। मानव व गर्भनालीय जीव विज्ञान में गर्भधारण करने व गर्भाधान की जटिलताओं को समझने में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके समूह ने स्ट्रीट डोग्स पर विशेष रूप से केंद्रीत वन्य प्राणी आबादी प्रबंधन के लिए गर्भनिरोधक टीके भी विकसित किए हैं, जो मानव-पशु संघर्ष और ज़ोनोटिक रोगों को कम करने में सहायता करेगा। उद्योग की सहभागिता से उनके समूह ने यौन सम्प्रेषण एचआईवी-1 की रोकथाम के लिए माइक्रोबाइसाइड्स के रूप में हर्बल फॉमूला विकसित किया। डॉ. गुप्ता के योगदान का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ा। उन्होंने शिक्षा विज्ञान में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, चिकित्सा विज्ञान-चिकित्सा अनुसंधान, रैनबैक्सिी साइंस फाउडेंशन में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् और रैनबैक्सिी अनुसंधान अवार्ड सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त किए। डॉ. सतीश कुमार गुप्ता को उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए हरियाणा विज्ञान रत्न अवार्ड प्रदान किया गया है।

3. श्री अभिनीत कौशिक-उप महाप्रबंधक, ब्रह्मोस एरोस्पेस (रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत इंडो-रूस का संयुक्त उद्यम)।
श्री अभिनीत कौशिक गांव भापड़ोदा, जिला झज्जर हरियाणा के रहने वाले हैं। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक हरियाणा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में इंजीनियरिंग की उपाधि हासिल की। इस समय श्री कौशिक ब्रह्मोस एरोस्पेस (रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत इंडो-रूस का संयुक्त उद्यम) में उप-महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत है।
वैज्ञानिक योगदान: डॉ. कौशिक ने समुद्री जहाज आधारित नेवल प्लेटफॉर्म के लिए ब्रह्मोस मिसाइल लॉचंर के संरेखण के लिए महत्वपूर्ण कार्यप्रणाली विकसित करने में भूमिका निभाई। उन द्वारा विकसित यह संरेखण कार्यप्रणाली व विशेष जुड़ाव (स्पेशल फिक्सचरस) परम्परागत पद्धति की तुलना में हथियार के संरेखण माप में सही सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण है। इस पद्धति को रूस के विशेषज्ञों के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया है। सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल जहां पर यथार्थ संरेखण माप अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह पद्धति अत्यधिक सफल पद्धति है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए आयाम प्रशस्त करती है, जो हथियार प्रणाली की एक्यूरेशी में और अधिक सुधार ला सकती है। रक्षा मंत्री भारत सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 2012 में युवा वैज्ञानिक अवार्ड से भी सम्मानित  किया गया । श्री अभिनीत कौशिक को उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए हरियाणा युवा विज्ञान रत्न अवार्ड प्रदान किया गया ।

4. प्रदीप कुमार- वैज्ञानिक-ई,रिसर्च सेंटर इमरात (आरसीआई) रक्षा अनुंसधान एवं विकास संगठन, हैदराबाद।
 श्री प्रदीप कुमार का जन्म जिला महेन्द्रगढ़ के गांव गुजरवास में हुआ। उन्होंने महर्षि मारकंडेश्वर इंजीनियरिंग कॉलेज, मुलाना, अंबाला से इलेक्ट्रानिक एवं संचार इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि हासिल की। इसके उपरांत उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर से एमएस की उपाधि हासिल की। इस समय श्री प्रदीप कुमार रिसर्च सेंटर इमरात (आरसीआई), डीआरडीओ, हैदराबाद में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत है।
वैज्ञानिक योगदान: श्री प्रदीप कुमार फाइबर ऑपटिक्स सेंसर और कम्पोनेंटस में विशेषज्ञ हैं। उन्होंने देश के पहले फाइबर ऑपटिक गीरोस्कॉप (एफओजी) की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने नियंत्रण, सामरिक और मिसाइलस, एयरक्राफ्ट, टैंक इत्यादि के नेवीगेशन अनुप्रयोगों के विभिन्न एफओजी के लिए स्वदेशी सेंसर ऑपटिक्स विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आगे उन्होंने बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए फाइबर ऑपटिक्स गीरोस्कॉप की विभिन्न श्रेणियों के लिए उत्पादन किया। उन्होंने एफओजी के क्रिटिकल फाइबर ऑपटिक्स कम्पोनेंट्स के डिजाइन, विकास और उत्पादन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। श्री कुमार के अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय पत्रिकाओं/सम्मेलनों में 15 शोध पेपर प्रकाशित हुए है। वे इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्पयूनिकेशन इंजीनियर (एफआईईटीई) संस्थान और ऑपटिक्ल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एफओएसआई) के फेलो हैं। श्री प्रदीप कुमार को उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए हरियाणा युवा विज्ञान रत्न अवार्ड प्रदान किया गया है ।

5. डॉ. दीपक शर्मा– सहायक प्रोफेसर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग,आईआईटी रुडक़ी, उत्तराखंड।
डॉ. दीपक शर्मा गुरुग्राम के निवासी हैं। उन्होंने अपनी बी.एससी, एम.एससी और पीएचडी, एआईआईएमएस, नई दिल्ली से की है। वे इस समय जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी रुडक़ी, उत्तराखंड में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे हैं। 
वैज्ञानिक योगदान: दीपक शर्मा ने जैविक रूप से प्रासंगिक मुद्दों के समाधान के लिए कई कम्प्यूटेशनल एल्गोरिदम विकसित किए हैं। वह कई रोगों के निदान और उपचार के लिए डॉक्टरों के साथ मिलकर कार्य भी कर रहे हैं। उनके उत्कृष्ट शोध कार्य ने उन्हें प्रतिष्ठित आईएनएसए मेडल फॉर यंग साइंटिस्ट 2008 दिलाया है। उन्हें अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय में एक विजि़टिंग फैकल्टी के रूप में आमंत्रित किया गया था और इंडियन नेशनल यंग अकादमी ऑफ साइंस (आईएनवाईएएस) के संस्थापक सदस्य के रूप में भी चुना गया था। जैव सूचना विज्ञान और प्रयोगात्मक / आणविक जीव विज्ञान के दो विभिन्न क्षेत्रों में उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई है। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

6. प्रवीण कुमार- वैज्ञानिक -ई,रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), दिल्ली
श्री प्रवीण कुमार का जन्म हरियाणा के जिला पानीपत के गांव नन्हेड़ा में हुआ था। उन्होंने क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज (आरईसी) कुरुक्षेत्र (अब एनआईटी) से स्वर्ण पदक के साथ इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और आईआईटी, दिल्ली से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी। वर्तमान में, वे वैज्ञानिक-ई के रूप में कार्य कर रहे हैं। 
वैज्ञानिक योगदान: उन्होंने टेलीमेट्री स्टेशनज़ का डिज़ाइन, स्थापित और विनियमित किया है और मानवीय ट्रैकर को स्वचालित मिसाइल ट्रैकिंग प्रणाली के साथ बदला है। उन्होंने भारत के प्रतिष्ठित एकीकृत गाइडिड मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी-पृथ्वी, अग्नि, आकाश, र्तिशूल, नाग) और डीआरडीओ के अन्य कार्यक्रम जैसे ब्राह्मोस, पायलट विहीन ट्रैकिंग एयरक्राफ्ट, धनुष, बॉम्ब ड्रॉप्स, एस्ट्रा और वायु रक्षा के तहत मिसाइलों के परीक्षण और मूल्यांकन में टेलीमेट्री विशेषज्ञ के रूप में योगदान दिया। उन्होंने मिसाइल निदेशालय में मिसाइल क्लस्टर की प्रयोगशालाओं की टेक्नो मैनेजमेंट की परियोजनाओं के टेक्नो मैनेजमेंट में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सक्रिय योगदान ने गुणात्मक आवश्यकता के अनुसार मिसाइलों के सफल विकास और सशस्त्र बलों में उन्हें शामिल करने में मदद की। उनके रक्षा प्रौद्योगिकी से संबंधित आठ शोध पत्र और नौ रिपोर्टे प्रकाशित हुई हैं और वे सशत्र बल के लिए लेजर आधारित प्रणाली के विकास में योगदान दे रहे हैं। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

7. डॉ. सविता चौधरी- सहायक प्रोफेसर,रसायन विज्ञान विभाग,पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़।
डॉ. सविता चौधरी का जन्म 6 जून, 1981 को जिला सोनीपत के गांव फरमाना में एक निम्न मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। कठिन परिस्थितियों में उन्होंने गांव में अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा प्राप्त की और फिर अपने नाना-नानी के पास चंडीगढ़ आ गई।  उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से वर्ष 2004 में एमएससी और 2010 में पीएचडी पूरी की। वर्तमान में, वह रसायन विज्ञान विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। 
वैज्ञानिक योगदान: डा.ॅ सविता चौधरी ने नैनोकेमिस्ट्री के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कार्यात्मककृत नैनो-सामग्री के उपयोग से प्रदूषित जल के उपचार के लिए कारगर साधन विकसित किए हैं। डॉ. चौधरी को 11 के.एच-इंडैक्स के साथ 50 से अधिक प्रकाशनों का श्रेय जाता है। प्रोग्रेस-इन-मेटिरियल साइंस पत्रिका में 31.08 के प्रभाव कारक के साथ सेलेनियम नैनोकणों पर उनके काम की बहुत सराहना की गई। उन्हें वर्ष 2008 में प्रसिद्ध डीएसटी-डीएएडी पीपीपी फैलोशिप, वर्ष 2012 में डॉ. डी.एस. कोठारी पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप और इंस्पायर संकाय पुरस्कार और और 2016  में जैन मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अनुसंधान के अपने 12 वर्षों और शिक्षण के पांच वर्षों में उन्होंने 5 पीएचडी, 7 एमएससी, 7 एम. टैक और 12 समर प्रशिक्षुओं का मार्गदर्शन किया है। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

8. डॉ. अभिनव ग्रोवर- सहायक प्रोफेसर, जैव प्रौद्योगिकी विद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
डॉ. अभिनव ग्रोवर कुरुक्षेत्र, हरियाणा के मूल निवासी हैं। यहां से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के उपरांत, उनका प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) दिल्ली में बैचलर ऑफ टैक्नोलॉजी और बायोकैमिकल इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी की डिग्री के लिए चयन हुआ। तत्पश्चात, उन्होंने इसी संस्थान से कई पुरस्कारों के साथ पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। 
वर्तमान में, डॉ. ग्रोवर आणविक मॉडलिंग और बायोथेरेप्यूटिक्स प्रोडक्शन प्रयोगशाला, स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू), नई दिल्ली, भारत में सहायक प्रोफेसर और समूह लीडर के रूप में कार्य कर रहे हैं।
वैज्ञानिक योगदान: डॉ. अभिनव ग्रोवर द्वारा ‘पारंपरिक चिकित्सा आधारित जैवपूर्वेक्षण’ विषय पर किया गया शोध कार्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान देता है। उन्होंने संभावित प्राकृतिक दवाओं और उनके बायोसिंथेटिक मार्ग की इंजीनियरिंग के कार्य तंत्र को स्पष्ट करने पर कार्य किया। विशेष रूप से, अश्वगंधा पर उनके कार्य को वैज्ञानिक समुदाय से अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त हुई और महत्वपूर्ण उपलब्धियों का श्रेय दिया गया। उनके अनुसंधान के मुख्य क्षेत्र में ड्रग डिजाइन और विकास, बायोप्रोसैस टेक्नोलॉजी, चेमिनएफॉर्मिक्स और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी शामिल हैं। डॉ. ग्रोवर एक सफल प्रकाशक हैं, जिन्होंने विशेषज्ञ समीक्षित प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 80 से अधिक शोधपत्र लिखे हैं। वह 2014 में प्रतिष्ठित एनएएसआई युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, 2013 में युवा वैज्ञानिकों के लिए आईएनएसए पदक, इंडियन-स्विस संयुक्त अनुसंधान फैलोशिप तथा कईं और पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

9. डॉ. संदीप कुमार- सहायक प्रोफेसर,जैव और नैनो प्रौद्योगिकी विभाग,गुरु जम्भेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,हिसार, हरियाणा।
डॉ. संदीप कुमार का जन्म चंडीगढ़ में हुआ था। उन्होंने अपनी बीएससी, एमएससी, एम.टेक और पीएचडी से पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से की। वर्तमान में डॉ. कुमार गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, हिसार, हरियाणा में सहायक प्रोफेसर (एसजी)के रूप में कार्य कर रहे हैं।
वैज्ञानिक योगदान:- डॉ संदीप कुमार को हेल्थकेयर एप्लीकेशन के लिए नैनो टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल है। डॉ. कुमार ने अपने शोध कार्य के दौरान सामने आईं अवधारणाओं पर गहन समझ और एक मर्मज्ञ अंतर्दृष्टि का प्रदर्शन किया। वह जल शुद्धिकरण, पर्यावरण और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं और एससीआई पत्रिकाओं में इनका शोध कार्य प्रकाशित हुआ है। उनके अनुसंधान क्षेत्र नैनोमैट्रिअल्स के संश्लेषण और लक्षण तथा सेंसर, जल शोधन और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उनके अनुप्रयोगों पर केंद्रित हैं। उनके पास एक पेटेंट का श्रेय भी है। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

10. डॉ. विनोद कुमार- सहायक प्रोफेसर,रसायन शास्त्र विभाग,महर्षि मारकण्डेश्वर विश्वविद्यालय,मुलाना, अंबाला, हरियाणा। 
डॉ. विनोद कुमार का जन्म गांव बुटान खेड़ी, इंद्री, जिला करनाल, हरियाणा में हुआ। उन्होंने बी.एससी., एम.एससी. और पीएच.डी. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से की। वर्तमान में, डॉ. कुमार महर्षि मारकण्डेश्वर विश्वविद्यालय, मुलाना, अंबाला, हरियाणा में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
वैज्ञानिक योगदान: डॉ. विनोद कुमार ने जैविक संश्लेषण विशेष रूप से आज़ोल्स रसायन शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिसमें पैराज़ोल, आइसॉक्सज़ोल, थियाज़ोल, इमिडाजोल और ट्रियाजोल नाभिकीय क्षेत्र आते हैं। उनकी जैविक क्षमता और एनएमआर वर्णक्रम सम्बन्धी  विशेषताओं की खोज के अलावा, उन्होंने कुछ मामलों में नए सिंथेटिक मार्ग भी विकसित किए हैं। उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त विभिन्न पत्रिकाओं में 15 समीक्षा लेखों सहित कुल 65 प्रकाशनों में योगदान दिया है और 3 पेटेंट दायर किए हैं। वे अकादमी प्रेस, लंदन द्वारा  पेरीसाइक्लिक रिएक्शन पर प्रकाशित एक पुस्तक के सह-लेखक हैं और डे -ग्रुइटर, बर्लिन, जर्मनी द्वारा  कैमिकल ड्रग डिजाइन पर प्रकाशित एक पुस्तक का सह-संपादन भी किया है। इसके अलावा, वे रॉयल सोसायटी, एल्सेवियर, हिंदावी, स्प्रिंगर, बैंथम, टेलर एण्ड फ्रांसिस पब्लिशर्स की 40 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी संपादकीय सदस्य/समीक्षक/ अतिथि संपादक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

11. डॉ. अनुराग कुहाड़- विश्वविद्यालय औषध विज्ञान संस्थान, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में फार्माकोलॉजी में सहायक प्रोफेसर।
डॉ. अनुराग कुहाड़ ने गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा से स्वर्ण पदक के साथ फार्मेसी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से फार्माकोलॉजी में मास्टरस ऑफ फार्मेसी और फार्मास्युटिकल में अपनी पीएचडी पूरी की। वर्तमान में, डॉ. अनुराग कुहाड़ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के विश्वविद्यालय औषध विज्ञान संस्थान में फार्माकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।
वैज्ञानिक योगदान: डॉ. अनुराग कुहाड़ की शोध रुचि न्यूरोपैथी, नेफ्रोपैथी और संबंधित संज्ञानात्मक गिरावट जैसी मधुमेह सम्बन्धी जटिलताओं के प्रबंधन के लिए पादप रसायन के विकास पर केंद्रित है। प्रयोगशाला में ‘मेटाबोलिक मेमोरी’ की अवधारणा, जिसका अर्थ है कि ग्लूकोज सामान्यीकरण के बाद भी नाड़ी का दबाव जारी रहता है, का समर्थन किया गया है। 
इस अध्ययन की प्रमुख खोज यह है कि पादप रसायन (करक्यूमिन, सेसेमोल और एपिगलोकेटेशिन गलेट) के साथ संयोजन में इंसुलिन डाइबिटिक चूहों में मेटाबॉलिक मेमोरी का परिवर्तन करके द्वितीयक मधुमेह की जटिलताओं की घटनाओं को रोकता है। उनके उत्कृष्ट वैज्ञानिक योगदान के लिए उन्हें ‘हरियाणा युवा विज्ञान युवा रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

Suvash Chandra Choudhary

Editor-in-Chief

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