सरस्वती नदी नहीं ,भारतीय संस्कृति की लाईफ लाइन : विजय कायत

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चण्डीगढ़ :  चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय के कुलपति  विजय कायत ने कहा कि सरस्वती एक नदी ही नहीं है, अपितु यह भारतीय संस्कृति की लाईफ लाइन है। सरस्वती नदी के किनारे, संस्कृति-सभ्यता के साथ-साथ मानवीय मूल्यों की स्थापना हुई जिससे विश्व को आपसी भाईचारे का संदेश मिलता है। इसी सभ्यता से समतामूलक समाज की स्थापना करने में मदद मिल रही है। विदेशी आक्रांताओं ने समय-समय पर इस मिशन में जटिलताएं पैदा करने की कोशिश की लेकिन भारतीय संस्कृति ने हमेशा आपसी भाईचारे की संस्कृति को गले लगाया। 
श्री विजय कायत आज हरियाणा के साहित्यकारों, लेखकों के हरियाणा साहित्य संगम के दूसरे दिन हरियाणा ग्रंथ अकादमी द्वारा आयोजित सरस्वती कल-आज और कल विषय पर आयोजित सैमीनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से विश्व की दूसरी नदियों के किनारे सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ, उसी प्रकार सरस्वती नदी के किनारे भी सभ्यता का विकास हुआ। वैदिक साहित्य में भी इस नदी के इर्द-गिर्द विकसित हुई सभ्यता का वर्णन मिलता है। वेदों, महाभारत, उपनिषदों में इसे भारत माता के नाम से पुकारा गया। वैदिक काल में विकसित सभ्यता का विकास कुरूक्षेत्र के आस-पास हुआ। महिलाओं की जननी जिस प्रकार जगदंबा का नाम आता है, उसी प्रकार आपसी प्रेम और भाईचारे के लिए सरस्वती संस्कृति को याद किया जाता है। 

केन्द्रीय विश्व विद्यालय, धर्मशाला के कुलपति डॉ0 कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने कहा कि सरस्वती नदी के कारण मानवीय मूल्यों का विकास हुआ लेकिन धीरे-धीरे यह नदी लुप्त होती चली गई। सिंधु नदी व सरस्वती नदी के किनारे सभ्यता व संस्कृति का हमेशा विकास हुआ है। इसलिए इस नदी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाठ्यक्रम में शामिल करके युवा पीढी को ज्ञान दिया जाए। यमुनानगर एमएलएन कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ0 लक्षमी ने कहा कि सरस्वती मां के स्मरण मात्र से मन व आत्मा को शांति मिलती है। वैदिक स्वरूप अति विशाल है। तटों पर वैदिक सभ्यता व भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। सरस्वती कहीं प्रकट हुई तो कहीं लुप्त हुई लेकिन धरती के गर्भ में प्रवाहित होती रही है। यह नदी वास्तव में विलुप्त नहीं हुई बल्कि मात्र हमारी विचारधारा में लुप्त थी। उन्होंने कहा कि सैटेलाईट के माध्यम से खोज करने के साथ-साथ भारतीय प्राकृतिक गैस आयोग, भाषा, इसरो तथा हर्षक के वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि सरस्वती विलुप्त नहीं थी। केन्द्र सरकार व राज्य सरकार ने सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड का गठन करके अपनी सभ्यता और संस्कृति को सहेजने का काम किया है। 
हिमाचल प्रदेश से डॉ0 प्रेम चंद शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पूजा का शुभारंभ सरस्वती का बौद्ध करवाता है। समस्त विश्व की संस्कृति में यह लुप्त हो चुकी है, लेकिन भारत की संस्कृति में परंपराओं के कारण अस्मिता को सुरक्षित रखने में कामयाब रहे हैं। तपस्या, सूचिता, भाव कर्म में परोप्कार का भाव रखते हैं। कुरूक्षेत्र विश्व विद्यालय की हिन्दी विभाग की अध्यक्षा डॉ0 पुश्पा ने कहा कि सरस्वती गंगा मां विशाल है, जिस प्रकार से नारी की पूजा की जाती है तथा बजुर्गों का सम्मान किया जाता है, उसी प्रकार सरस्वती की पूजा की जानी चाहिए। नदियां सभ्यता संस्कृति सिखाती हैं। 
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष  भारत भूषण भारती ने कहा कि सरस्वती के लिए सकारात्मक प्रयास शुरू किए गए हैं। सरस्वती का जल पीने व कृषि के लिए उपयोगी है। इस नदी का जिक्र वेदों में मिलता है। प्रदेश में 350 किलोमीटर लंबाई की आदिबद्री से सिरसा तक सरस्वती का वर्णन राजस्व रिकार्ड में भी मौजूद है। 
हरियाणा ग्रंथ अकादमी की ओर से कुलपति विजय कायत, कुल्दीप चंद्र, डॉ0 लक्षमी, पुश्पा चौधरी को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

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