अरे, ओ सुन मराठा, हम वो मेंव कॉम हे, जो झबड़ा में, तेरे दादा शिवाजी को औरंगजेब से बचाकर आगरा की जेल सु लाये : हिम्मता मेवाती
सरदार पटेल की बोलती बंद कर दी थी हिम्मता मेवाती ने
यूनुस अलवी
मेवात: यह वाक्या सन् 1947 का है। मेवात में चारों ओर अशान्ति का माहौल था। मेव आज भी इसे बदअमनी या भगा-भग्गी कहते हैं। अलवर और भरतपुर रियासतों में मारकाट मची हुई थी। मगर अन्दरूनी(तत्कालीन पंजाब के गुड़गाँव जिले का मेवात) में अपेक्षाकृत शान्ति थी।मगर यहाँ भी साम्प्रदायिक लोग सक्रिय थे,जो किसी भी तरह मेवों को ‘कब्र या पाकिस्तान’देने पर आमादा थे।
मेवात को बचाने के लिए केन्द्रीय सरकार ने सिख वटालियन की कई कम्पनियाँ भेज दी।मगर हालात नहीं बदले।रक्षक ही भक्षक बन गये और सिख बटालियन के जवानों ने अपने ही तरीके से मेवों को तंग करना शुरू कर दिया।
ऐसे विकट हालात में 50-60 आदमियों का एक प्रतिनिधि मण्डल चौधरी मुहम्मद यासीन खाँ व चौधरी अब्दुल हई के नेतृत्व में त्तकालीन सी पी आई ऑफ इण्डिया के जनरल सैक्रेटरी पं0पी0 सी0 जोशी से मिला।विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि इस मसले पर सरदार पटेल से बात की जाय। मौलाना अबुर कलाम आजाद के जरिये सरदार पटेल से टाइम लिया गया। वक्त तय हुआ सुबह 7:00 बजे। सिर्फ तीन आदमियों को मिलने की इजाजत मिली।
चौ0 अब्दुल हई इस तीन सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल के नेता बनाये गये। उनके साथ एक आदम बीसरू से था और एक शेखपुर (तिजारा) से,हिम्मत खाँ उर्फ हिम्मता। दो सदस्य पढ़े-लिखे और एक हिम्मता अनपढ़।
चौ0अबुदुल हई लिखते हैं कि,”फज्र की नमाज कर्जन रोड वाली मस्जिद में पढ़ कर हम पैदल ही सरदार पटेल की कोठी की ओर चल दिये।वहाँ पहुँचे तो सरदार साहिब लॅन में टहल रहे थे।हमें देखते ही बोले,”मेवात से आये हो ?”
“जी।”
“बोलो।”
“जनाब मेवात के हालात—————–।
“तो पाकिस्तान चले जाओ। तुम्हें दे तो दिया अलग मुल्क। जाईये।”
यह रूखा सा जवाब सुन हम चुप हो गये।हमसे कोई जवाब नहीं बन पाया और वापिस जाने को मड़े। तभी हिम्मता बोला,”अरे सुण मराठा,हम वे मेव हाँ जो तेरा दादा शिवाजी है बचाके लाया हा औरंगजेब की आगरा वाळी है जेल सू।—हम मुसलमान बादशान सू लड़ा या लेश की खातर। हमने अंग्रेजन की नींद उड़ा दी।—ठीके आज हमारो बखत बिगड़ रोय।पर एक बात सुणले, हम हिश्दस्तान कतई शा छोड़ंगा—मरां चाव जीवां।”
चौ0 अब्दुल हई लिखते हैं,”कि सरदार पटेल ने बड़ी तीखी नजरों से हमारी तरफ देखा और अन्दर चले गये। हमें खिड़की में से नजर आ रहा था।उन्होंने अन्दर जाते ही फोन उठाया।हमने सोचा पुलिस को फोन कर रहा है ।पक्का गिरफ्तार कर वायेगा।
फोन कर सरदार साहिब बाहर आये और हमसे कहा जाईये। तब हमारी जान में जान आई।हम तुरन्त जामा मस्जिद सी पी आई के ऑफिस पहुँचे और पं0 जोशी को सारी कार्रवाई बता कर अपनी-अपनी साइकिलें उठाई और फौरन मेवात को रवाना हो गये। हम भौंसी पहुँचे थे कि मिलिट्री गाड़ियाँ पीछे से आती लिखाई दी,जिन्हें देख मुझे शक हुआ। हिम्मत करके एक गाड़ी को रुकवा कर पूछा,”कहाँ जा रहे हैं?”
हमें सरदार पटेल ने भेजा है मेवात। वहाँ के हालात ठीक नहीं हैं। पहले भेजी गई सिख बटालियन भी वहाँ जुल्म कर रही है।हमें उनसे चार्ज लेना है। ”
यह जवाब सुन हमारे दिल को सुकून मिला। यह मद्रास बटालियन थी।जिसने सिख बटालियन से मेवात का चार्ज लिया और बीवाँ के मोर्चे पर बच्चू सिंह को मार भगाया और उसकी तोपें छीन ली। तब कहीं जाकर मेवात के हालात सुधरे।—-हिम्मता की हिम्मत को सलाम!!
जानकारी- सिद्दीक अहमद’मेव’ (इतिहासकार)