तमिल नव वर्ष समारोह में बोले प्रधानमंत्री : तमिल संस्कृति और तमिल लोग दोनों शाश्वत व वैश्विक प्रकृति के हैं

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नई दिल्ली :  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी डॉ. एल मुरुगन के निवास पर आयोजित तमिल नव वर्ष समारोह में भाग लिया। उन्होंने पुत्तांडु मनाने के लिए तमिल भाई-बहनों के बीच उपस्थित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। समारोह में प्रधानमंत्री ने कहा कि “पुत्तांडु प्राचीन परंपरा में नवीनता का पर्व है। इतनी प्राचीन तमिल संस्कृति और हर साल पुत्तांडु से नई ऊर्जा लेकर आगे बढ़ते रहने की यह परंपरा अद्भूत है। तमिल लोगों और संस्कृति की विशिष्टता पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने तमिल संस्कृति के प्रति अपने आकर्षण और भावनात्मक लगाव को व्यक्त किया। गुजरात में अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र में तमिल लोगों के प्रेम को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने तमिल लोगों को उनके प्रति प्यार के लिए धन्यवाद दिया।

प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से उनके द्वारा बताए गए पंच प्राणों में से एक को याद करते हुए कहा- “मैंने आजादी के 75 साल पूरे होने पर लाल किले से अपनी विरासत पर गर्व करने की बात कही थी। जो चीज जितनी प्राचीन होती है, वह उतनी ही अधिक समय की कसौटी पर खरी उतरती है। इसीलिए, तमिल संस्कृति और तमिल लोग दोनों शाश्वत और साथ ही वैश्विक प्रकृति के हैं।” चेन्नई से कैलिफोर्निया तक, मदुरै से मेलबर्न तक, कोयम्बटूर से केपटाउन तक, सलेम से सिंगापुर तक, आप पाएंगे कि तमिल लोग अपने साथ अपनी संस्कृति और परंपरा लेकर आए हैं। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि “चाहे पोंगल हो या पुत्तांडु, पूरी दुनिया में इनकी छाप है। तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। इस पर हर भारतीय को गर्व है। तमिल साहित्य का भी व्यापक रूप से सम्मान किया जाता है। तमिल फिल्म उद्योग ने हमें कुछ सबसे प्रतिष्ठित क्षण दिए हैं।”

प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम में तमिल लोगों के महान योगदान को याद किया और आजादी के बाद देश के विकास में तमिल लोगों के योगदान को भी रेखांकित किया। सी. राजगोपालाचारी, के. कामराज, डॉ. कलाम जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि चिकित्सा, कानून और शिक्षा के क्षेत्र में तमिल लोगों का योगदान अतुलनीय है।

प्रधानमंत्री ने दोहराया कि भारत दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। उन्होंने कहा, इस संबंध में कई ऐतिहासिक संदर्भ हैं। एक महत्वपूर्ण संदर्भ तमिलनाडु है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के उतिरमेरुर में 1100 से 1200 साल पुराना एक शिलालेख है जिसमें देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की झलक दिखती है। प्रधानमंत्री ने कहा, “तमिल संस्कृति में बहुत कुछ है जिसने भारत को एक राष्ट्र के रूप में आकार दिया है।” उन्होंने आश्चर्यजनक आधुनिक प्रासंगिकता और उनकी समृद्ध प्राचीन परंपरा के लिए कांचीपुरम के पास वेंकटेश पेरुमाल मंदिर और चतुरंगा वल्लभनाथर मंदिर का भी उल्लेख किया।

प्रधानमंत्री ने समृद्ध तमिल संस्कृति की सेवा करने के अवसर को गर्व के साथ याद किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में तमिल में कोट देने और जाफना में गृह प्रवेश समारोह में भाग लेने का स्मरण किया। श्री मोदी जाफना जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं और उनकी यात्रा के दौरान और बाद में वहां तमिलों के लिए कई कल्याणकारी परियोजनाएं शुरू की गईं। प्रधानमंत्री ने कहा, “तमिल लोगों की लगातार सेवा करने की यह भावना मुझे नई ऊर्जा से भर देती है।”

प्रधानमंत्री ने हाल ही में हुए काशी तमिल संगमम् की सफलता पर गहरा संतोष व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “इस कार्यक्रम में हमने प्राचीनता, नवीनता और विविधता को एक साथ सेलिब्रेट किया।” संगमम् में तमिल अध्ययन पुस्तकों के प्रति उत्साह का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “हिंदी भाषी क्षेत्र में और वो भी इस डिजिटल युग में, तमिल पुस्तकों को इस तरह पसंद किया जाता है, जो हमारे सांस्कृतिक बंधन को दर्शाता है। तमिलों के बिना काशीवासियों का जीवन अधूरा है, मैं काशीवासी हो गया हूं और मैं मानता हूं कि तमिलों का जीवन भी काशी के बिना अधूरा है।“ श्री मोदी ने सुब्रहमणियम भारती जी के नाम पर एक चेयर की स्थापना और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट में तमिलनाडु के एक महाश्य को जगह देने का उल्लेख किया।

प्रधानमंत्री ने अतीत के ज्ञान के साथ-साथ भविष्य के ज्ञान के स्रोत के रूप में तमिल साहित्य की शक्ति को रेखांकित किया। प्राचीन संगम साहित्य में श्री अन्न का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज भारत की पहल पर पूरा विश्व हमारे हजार साल पुराने मोटे अनाज की परंपरा से जुड़ रहा है।’ उन्होंने उपस्थित लोगों से एक बार फिर मोटे अनाज को भोजन की थाली में जगह देने का संकल्प लेने और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करने को कहा।

प्रधानमंत्री ने युवाओं के बीच तमिल कला रूपों को बढ़ावा देने और उन्हें विश्व स्तर पर प्रदर्शित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होने कहा, “आज की युवा पीढ़ी में ये जितना ज्यादा लोकप्रिय होंगे, उतना ही वो इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाएंगे। इसलिए, युवाओं को इस कला के बारे में बताना, उन्हें सिखाना ये हमारा सामूहिक दायित्व है।“ प्रधानमंत्री ने कहा कि, आज़ादी के अमृतकाल में हमारी ये ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी तमिल विरासत के बारे में जानें और देश और दुनिया को गर्व के साथ बताएं। ये विरासत हमारी एकता और, ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना का प्रतीक है। अपनी बात समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, हमें तमिल संस्कृति, साहित्य, भाषा और तमिल परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाना है।

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