चंडीगढ़, 8 मई। भारतीय जीवन बीमा यानी एलआईसी का आईपीओ शेयर बाजार में लाने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से देश के सबसे मजबूत संस्थान को खत्म करने जैसा है। एलआईसी का आईपीओ लाने का इरादा देश के लिए विनाशकारी साबित होगा। सरकार इसके जरिए एलआईसी को निजीकरण की ओर धकेलने की कोशिश कर रही है।
ये बात हरियाणा प्रदेश कांगे्रस के पूर्व प्रवक्ता अशोक बुवानीवाला ने केन्द्र सरकार द्वारा लाए जा रहे एलआईसी के आईपीओ के विरोध में प्रैस को जारी विज्ञप्ति में कही। बुवानीवाला ने कहा कि एलआईसी का योगदान देश के आधारभूत ढांचे के विकास में रहा है। आईपीओ से आधारभूत ढांचे का विकास बुरी तरह प्रभावित होगा। इससे अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
बुवानीवाला ने कहा कि एलआईसी राष्ट्र के लिए दुधारू गाय की तरह है क्योंकि देश में संचालित तमाम विकास योजनाओं में एलआईसी से रकम ली जाती है। अपनी स्थापना के बाद से ही ये संस्थान हमेंशा मुनाफे में चलने वाला सरकारी उपक्रम रहा है। बुवानीवाला ने कहा कि सरकार का फैसला उस मूल भावना के खिलाफ भी है जिसके तहत बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वित्त मंत्री सी वी देशमुख ने राष्ट्रीयकरण करते हुए ये कहा था कि इससे बीमा कंपनियों द्वारा किये जाने वाले घपले पर अंकुश तो लगेगा ही साथ ही लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए देश के विकास में भी इसका बड़ा योगदान रहेगा। लेकिन मोदी सरकार इसके ठीक उल्ट आम जनता को सामाजिक सुरक्षा की बजाए निजी कम्पनियों को लाभ देने का काम कर रही है।
बुवानीवाला ने कहा कि अभी तक एलआईसी बीमाधारकों के 99 प्रतिशत मामलों का ‘समझौता’ करता रहा है जबकि इस दिशा में निजी बीमा कंपनियों का रिकॉर्ड बहुत खराब है। बुवानीवाला ने कहा कि पहले बीमाधारकों को फायदा पहुँचाने का काम करने वाली एलआईसी, अब निवेशकों को फायदा पहुंचाने का काम करेंगी।
बुवानीवाला ने कहा कि इससे पूर्व भी मोदी सरकार देश के आधे से ज्यादा सरकारी उपक्रम नीजि हाथों में सौंप चुकी है जिसकी वजह से आज देश में महंगाई और बेरोजगारी अपने चर्म पर पहुंच चुकी है। देश में आम आदमी सरकार को उम्मीद की नजरों से देखता है लेकिन ये पहली सरकार है जिसने इन उम्मीदों को आंख बंद करके नीजि हाथों में सौंप दिया है। सरकार निजीकरण के लिए इतना उत्सुक है कि छुट्टी वाले दिन भी कर्मचारियों पर दबाव बना कर जबरदस्ती अपनी दमनकारी नीति थोप रही है वहीं दूसरी ओर पढ़े-लिखे बच्चों का भविष्य बेरोजगारी के अंधेरे में धकेल रही है। बुवानीवाला ने कहा कि सरकारी उपक्रम समाजसेवा के लिए है जबकि सरकार इन्हें निजी हाथों में सौंप कर लोगों पर आर्थिक बोझ लादना चाहती है।