गुरुग्राम : शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं. उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए छठ पर्व मनाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। यह कहना है मिथिलांचल निवासी पवन ठाकुर का जो वर्तमान में सेक्टर 9 गुरुग्राम में रहते हैं और भारत सरकार की एक प्रतिष्ठित संस्था में कार्यरत हैं.
पवन ठाकुर ने बताया कि प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।
छठ व्रत के विधि विधान के बारे में पवन ठाकुर बताते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार छठी मैया की उपासना के महापर्व छठ में संतान प्राप्ति और संतान की मंगलकामना, कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए निर्जला व्रत किया जाता है। चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है।
पर्व की महिमा का बखान करते हुए वे कहते हैं कि पृथ्वी पर जीवन का वरदान देने और विशेष इच्छाओं को पूरा करने के लिए सूर्य को धन्यवाद देना इस महापर्व के व्रत को नियम निष्ठा से किया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है। इस बार 8 नवंबर को नहाय-खाय से छठ व्रत का आरंभ हुआ और अगले दिन 9 नवंबर को शाम को खरना पूजन किया जाएगा. 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन है जिसमें संध्या अर्घ्य किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को उषा अर्घ्य अर्पण के बाद छठ पर्व का पारणा किया जाएगा।
उनका कहना है कि छठ एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है, विशेष रूप से, भारतीय राज्यों बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड और नेपाल के मिथिला क्षेत्र के लोग धूम-धाम से मनाते हैं. इसे- छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुआ , इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे। महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया। पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया। उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं।
उन्होंने बताया कि जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा। माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है। मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं। इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया। देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की। मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा
उनका मानना है कि छठ पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार से हुई जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है। अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के उपासक थे, इसलिए परंपरा के रूप में सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव इस इलाके पर दिखता है। ऐसे हुई छठ पूजन की शुरुआत। छठ पूजा में पूजा सामग्री का विशेष महत्व होता है और महिलाएं बहुत पहले से ही इन सामग्रियों की लिस्ट बना लेती हैं.
इस महापर्व में किन चीजों की जरूरत होती है :
छठ पूजा सामग्री:-