-आईवीएफ तकनीक से भारत में पहली बार भैंस का गर्भाधान किया गया
नई दिल्ली : कृत्रिम गर्भाधान की आईवीएफ तकनीक से भारत में पहली बार भैंस का गर्भाधान किया गया और बछड़े ने जन्म लिया। यह भैंस बन्नी नस्ल की है। इसके साथ ही भारत में ओपीयू-आईवीएफ तकनीक अगले स्तर पर पहुंच गई। पहला आईवीएफ बछड़ा बन्नी नस्ल की भैंस के छह बार आईवीएफ गर्भाधान के बाद पैदा हुआ। यह प्रक्रिया सुशीला एग्रो फार्म्स के किसान विनय एल. वाला के घर जाकर पूरी की गई। यह फार्म गुजरात के सोमनाथ जिले के धनेज गांव में स्थित है।
बन्नी नस्ल का क्या है लाभ ?
इस तकनीक के जरिए भैंस के बच्चे का जन्म कराए जाने का मकसद आनुवांशिक तौर पर अच्छी मानी जाने वाली इन भैंसों की संख्या बढ़ाना है, ताकि दुग्ध उत्पादन भी बढ़ सके. बन्नी भैंस शुष्क वातावरण में भी अधिक दुग्ध उत्पादन की क्षमता के लिए जानी जाती हैं. केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय ने इसे इस प्रजाति की किसी भैंस द्वारा ‘इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ)’ के जरिए जन्म देने का पहला मामला बताया. यह बन्नी भैंस गिर सोमनाथ के धानेज गांव के एक डेयरी किसान की है.
साल 2010 में बन्नी भैंस को राष्ट्रीय मान्यता भी मिली :
कच्छ की बन्नी भैंस दुनिया में अपना नाम कमा रही है. कच्छ में तापमान 45 डिग्री हो या शून्य से नीचे हो, बन्नी भैंस आराम से सब सह लेती है. इसे पानी भी कम चाहिए. बन्नी भैंस को चारे के लिए दूर-दूर तक ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होती. एक दिन में ये भैंस करीब-करीब 15 लीटर दूध देती है. इससे सालाना कमाई दो से तीन लाख रुपए तक होती है. बताया जाता है कि हाल में एक बन्नी भैंस पांच लाख रुपए से भी ज्यादा में बिकी है. यानी जितने में दो छोटी कार खरीदी जाएं, इतने में बन्नी की एक भैंस मिलती है. साल 2010 में बन्नी भैंस को राष्ट्रीय मान्यता भी मिली. आज़ादी के बाद भैंस की ये पहली ब्रीड थी, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की मान्यता मिली.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी चर्चा :
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब 15 दिसंबर, 2020 को गुजरात के कच्छ इलाके का दौरा किया था, तब उस समय उन्होंने बन्नी भैंस की नस्ल के बारे में चर्चा की थी। उसके अगले ही दिन, यानी 16 दिसंबर, 2020 को बन्नी भैंसों के अंडाणु निकालने (ओपीयू) और उन्हें विकसित करके भैंस के गर्भशय में स्थापित करने (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन-आईवीएफ) की प्रक्रिया शुरू करने की योजना बनाई गई।
तीन भैंसों को गर्भाधान के लिये तैयार किया :
वैज्ञानिकों ने विनय एल. वाला के गुजरात के सोमनाथ जिले के धनेज स्थित सुशीला एग्रो फार्म्स की बन्नी नस्ल की तीन भैंसों को गर्भाधान के लिये तैयार किया। वैज्ञानिकों ने भैंस के अंडाशय से डिम्ब निकालने के उपकरण (इंट्रावैजिनल कल्चर डिवाइस-आईवीसी) द्वारा 20 अंडाणु निकाले। तीनों में से एक भैंस के कुल 20 अंडाणुओं को आईवीसी प्रक्रिया से निकाला गया।
वास्तव में एक डोनर से निकाले जाने वाले 20 अंडाणुओं में से 11 भ्रूण बन गये। नौ भ्रूणों को स्थापित किया गया, जिनसे तीन आईवीएफ गर्भाधान वजूद में आये। दूसरे डोनर से पांच अंडाणु निकाले गये, जिनसे पांच भ्रूण (शत प्रतिशत) तैयार हुये। पांच में से चार भ्रूणों को स्थापित करने के लिये चुना गया और इस प्रक्रिया से दो गर्भाधान हुये। तीसरे डोनर से चार अंडाणु निकाले गये, दो भ्रूणों को विकसित किया गया और उन्हें स्थापित करके एक गर्भाधान हुआ।
छह गर्भाधान कराये गए :
कुल मिलाकर 29 अंडाणुओं से 18 भ्रूण विकसित हुये। इसकी बीएल दर 62 प्रतिशत रही। पंद्रह भ्रूणों को स्थापित किया गया और उनसे छह गर्भाधान हुये। गर्भाधन दर 40 प्रतिशत रही। इन छह गर्भाधानों में से आज पहला आईवीएफ बछड़ा पैदा हुआ। यह देश का पहला बन्नी बछड़ा है, जो कृत्रिम गर्भाधान की आईवीएफ तकनीक से पैदा हुआ है।
सरकार और वैज्ञानिक समुदाय को भैंसों की आईवीएफ प्रक्रिया में अपार संभावना नजर आ रही है और वे देश के पशुधन में सुधार लाने के लिये प्रयासरत हैं।