बस्तर । बस्तर और सरगुजा की आदिवासी नर्सिंग छात्राएं 24 जून को रेंगते हुए मुख्यमंत्री निवास तक पहुंचेंगी और अपनी लंबित छात्रवृत्ति देने तथा यूरोपीयन कमीशन की योजना के अनुसार, सरकारी वादे के तहत स्टाफ नर्स की नौकरी देने की मांग करेंगी.
उल्लेखनीय है कि यूरोपीयन कमीशन की ईसीएसपीपी कार्यक्रम के तहत इन आदिवासी छात्रों को वर्ष 2016 में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश दिलाया गया था. लेकिन इस फंड में घोटाले के कारण कमीशन ने इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया है. इसकी आड़ में भाजपा सरकार ने भी छात्रों को छात्रवृत्ति देना बंद कर दिया था, जबकि यह राशि कमीशन द्वारा पहले ही राज्य सरकार को दी जा चुकी थी.
पिछले दो सालों से ये छात्राएं तत्कालीन मुख्यमंत्री रमनसिंह सहित कई मंत्रियों और अधिकारियों से मिलकर अपना दुखड़ा सुना चुकी है. छात्रवृत्ति नहीं मिलने के कारण प्रभावित परिवार क़र्ज़ के फंदे में फंस चुके हैं और उन्हें अपनी जमीन-जायदाद-गहने गिरवी रखने-बेचने पड़े हैं. कॉलेज प्रबंधन अनुबंध से ज्यादा फीस मांग रहे हैं और वे छात्रों की अंकसूची रोकने की धमकी दे रहे हैं. सरकार बदलने के बाद वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी 1 मार्च को मिली थी. उन्हें आश्वासन तो मिला, लेकिन छात्रवृत्ति नहीं. इस संबंध में तत्कालीन माकपा सांसद जीतेन्द्र चौधुरी ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था.
सरकार और अधिकारियों की संवेदनहीनता से परेशान छात्रों ने अब एक बार फिर मुख्यमंत्री से गुहार लगाने का फैसला किया है, लेकिन इस बार वे अपनी बदहाली-बर्बादी की कहानी बताने जयस्तंभ चौक से रेंगकर मुख्यमंत्री निवास तक जायेंगी और छात्रवृत्ति-नौकरी की मांग करेगी. वे यह भी मांग करेगी कि फीस के नाम पर कॉलेजों के प्रबंधन पूरी छात्रवृत्ति ही हड़प जायेंगे, अतः निर्धारित शुल्क से ज्यादा न लेने के कॉलेजों को निर्देश दिए जाए औए पूरी राशि छात्रों के खाते में डाली जाए.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की जनवादी नौजवान सभा ने आदिवासी छात्रों के संघर्ष में उनका साथ देने का फैसला किया है. माकपा राज्य सचिव संजय पराते और जनौस राज्य संयोजक प्रशांत झा ने सरकार से आग्रह किया है कि छात्रों को उनकी लंबित छात्रवृत्ति तुरंत दी जाये और प्रोजेक्ट के अनुसार उन्हें नौकरियां दी जाएं. अपने बयान में उन्होंने कहा है कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में नर्सिंग के हजारों पद खाली हैं और आदिवासी क्षेत्रों में तो भारी किल्लत है. ऐसे में इन प्रशिक्षित नर्सों की मदद से इस क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार संभव है.