नर सेवा ही नारायण पूजा है : सविन्दर हरदेव जी

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निरंकारी 4-nov-2-aसंत समागम

गुडगांव : लगातार अभ्यास करने से मनुष्य निपुण बनता है ‘Practice makes a man perfect’ परन्तु यह भी देखना आवश्यक होता है कि हम किस दिशा में अभ्यास कर रहे हैं। कहीं नकारात्मक चीजों का अभ्यास करके उसको अपने जीवन का अंग तो नही बना रहे? हम ये तो नहीं कहते कि हमें इंसानियत से तो बहुत प्यार है परन्तु हमें इंसान अच्छे नहीं लगते। इंसानियत से सच्चा प्यार तब ही होता है जब हम इंसानों से भी प्यार करें, मिलजुल कर रहें।

सच्ची भक्ति मानवता की सेवा

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उक्त उद्गार सदगुरू माता सविन्दर हरदेव जी महाराज ने वीरवार सांय गुडगांव सेक्टर 31 के कम्यूनिटी सेंटर में आयोजित विशाल एक दिवसीय निरंकारी संत समागम में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुये व्यक्त किये।
सदगुरू माता जी ने बाबा हरदेव सिंह जी महाराज को उद्धरत करते हुये कहा कि बाबा जी ने हमें यही सिखाया है कि नर सेवा ही नारायण पूजा है अर्थात निरंकार प्रभू परमात्मा की सच्ची भक्ति मानवता की सेवा ही है।
सदगुरू माता सविन्दर जी ने आगे फरमाया कि कोई क्या कर रहा है? क्या नहीं कर रहा? हम उसकी तरफ ध्यान न दें। हम गुरमत वाली मर्यादा के अनुसार जीवन जी पा रहे हैं कि नहीं, सिर्फ इस पर ध्यान देने की आवश्यक्ता है। ‘Stay in your lane keep your focus on your self ‘

ईश्वर बोध कैसे सम्भव  ? 

इस सत्संग अवसर पर कंवर सिंह जी ने अपने भाव व्यक्त करते हुये कहा कि मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर का बोध करना है ईश्वर बोध द्वारा जात.पात, धर्म.मजहब के अन्तर समाप्त हो जाते हैं। ईश्वर बोध के लिये किसी विशेष भाषा व स्थान की आवश्यक्ता नही होती जैसे कि भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को रण भूमि में ही अपने विराट स्वरूप के दर्शन करा दिये जबकि मानव सोचता है कि ऐसी विकट स्थिति मे ईश्वर बोध कैसे सम्भव हो सकता है?
बहन परी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि मनुष्य मन की शान्ति व भौतिक सुख के लिये जीवन पर्यन्त प्रयास करता रहता है परन्तु क्षणिक रूप से तो शान्ति मिल जाती है परन्तु स्थायित्व नही प्राप्त होता है। जब मनुष्य को सदगुरू की कृपा से ईश्वर बोध हो जाता है तो मन शांत हो जाता है , स्थायित्व प्राप्त हो जाता है, दिव्य गुणो का समावेश हो जाता है, सभी भ्रम समाप्त हो जाते हैं एवं मानव सहज जीवन व्यतीत करने लगता है।
जोगिन्दर मनचंदा ने सदगुरू माता सविन्दर जी को उद्धरत करते हुये कहा कि परमपिता परमात्मा के साक्षात्कार होने के उपरान्त ही मानव, मानव के बीच जो अकारण दूरियां हैं, समाप्त हो जाती हैं। मनुष्य को जहाज में उड़ना तो आ गया, मछली की तरह तैरना भी आ गया परन्तु धरती पर चलना नहीं आया, लेकिन ईश्वर बोध के उपरान्त मनुष्य आध्यात्मिक रूप से जागृत हो जाता है वो भीड़ मे रहते हुये भी भीड़ से अलग रहता है। सन्त महापुरूष भी मनुष्य को सत्य से जोड़कर जीवन की सही राह पर लाने का कार्य करते हैं।

 

एकत्व के लिये तालमेल नितांत आवश्यक

अंग्रेजी भाषा के माध्यम से बहन अनूजा ने सतगुरु माता जी को उद्धरत करते हुये कहा कि एकत्व के लिये तालमेल नितांत आवश्यक है जैसे म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स जब एक साथ तालमेल से स्वर निकालते है तो हमें सुन्दर संगीत सुनाई देता है और हमे आनंद प्रदान करता है।
इस अवसर पर गुडगांव के संयोजक एमसी नागपाल ने सदगुरू माता जी का हार्दिक अभिन्नदन किया। उन्होंने कहा कि सदगुरू माता जी के आने से भक्तों के विश्वास को द्रढ़ता प्राप्त हुई है एवं एक भक्तिमय वातावरण बना है। उन्होनें कहा कि आवश्यक्ता है कि हम सब भक्तो को सदगुरू माता जी के जो भी हुकुम व दिशा. निर्देश प्राप्त हो रहे हैं उसे हम ज्यों का त्यों तत्परता के साथ मान पायें।
इस अवसर पर अनेक वक्ताओं में समता, सुभानी, पी सी स्नेही, प्रीतिका, संजय चुघ, दलाल जी व अन्य वक्ताओं ने अपने उदगार प्रस्तुत किये। समदिशा, स्मिता धींगरा, सौरभ गिरधर, विश्राम जी व साथी, मीनू जी , विनोद साईं, महक, खुशबु आदि अनेक गीतकारो ने अपनी रचना प्रस्तुत कर वातावरण मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर एक लघु कवि दरबार भी आयोजित किया गया जिसमें राजु मुल्तानी, सुदिता व ज्ञानकर्म ने कवितायें प्रस्तुत की।
मंच संचालन संदीप गुलाटी ने किया।

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