सुभाष चौधरी
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देश में एक और धड़ा खड़ा होने को सुगबुगा रहा है। एक तरफ कांग्रेस नीत विपक्ष तो दूसरी तरफ गैर कांग्रेस व गैर भाजपा विपक्ष का दूसरा धड़ा होगा। खास बात यह है कि भाजपा के खिलाफ बनने वाला दोनों गठबंधन को धरातल पर लाने का काम दो दक्षिण भारतीय राज्य के दो मुख्यमंत्री करेंगे। एक धड़े को जमा करने की कोशिश चंद्र बाबू नायडू कर रहे है जबकि दूसरे गठबंधन को खड़ा करने का प्रयास अब तेलांगना के सीएम के सी आर करेंगे।
चंद्र बाबू नायडू, कांग्रेस के नेतृत्व में काम करने को आतुर हैं जबकि उनके विरोधी केसीआर को कांग्रेस व भाजपा दोनों से परहेज है। इसलिए के सी आर ने इन दोनों अलग दूसरा गठबंधन तैयार करने का बीड़ा उठाया है। उनकी कोशिश होगी कि इसमें उन राज्यों के ऐसे क्षेत्रीय दलों को जोड़ा जाए जिसे भाजपा और कांग्रेस दोनो से दुराव है। संभावना इस बात की प्रबल है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस व भाजपा दोनों के एक सशक्त विकल्प के रूप में देश की जनता के सामने रखा जाए। हालांकि इस विकल्प के सामने आने से भाजपा को बड़ा फायदा होने का अनुमान अभी से लगाया जा रहा है।
खबर है कि तेलंगाना में सत्ता में वापसी होते ही मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव एक बार फिर फेडरल फ्रंट के गठन के लिए सक्रिय हो गए हैं। फेडरल फ्रंट की भूमिका और प्रारूप पर केसीआर ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव और नवीन पटनायक के साथ मुलाकात करने वाले हैं। संकेत है कि दिल्ली यात्रा के दौरान केसीआर अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं के साथ भी मुलाकात करेंगे। इन बैठकों के बीच में प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी केसीआर की बैठक प्रस्तावित है।
विधानसभा चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति की जबर्दस्त जीत के बाद राव ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से 23 दिसंबर को भुवनेश्वर में मुलाकात करेंगे। वहीं तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से 24 दिसंबर को मिलेंगे।
केसीआर 25 दिसंबर से दिल्ली की अपनी दो-तीन दिन की यात्रा के दौरान बसपा की सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मुलाकात करेंगे।
उल्लेखनीय है कि राव ने 13 दिसंबर को दूसरी बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तेलांगना में शानदार वापसी से उनकी छवि बेहद मजबूत हुई है और अपनी पार्टी की राष्ट्रीय भूमिका को लेकर उत्साहित हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि उनके धुर विरोधी व पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू कहीं राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अगर मजबूत हों गए और केंद्र की सत्ता में भागीदार बन गए तो उन्हें आने वाले समय में दिक्कत हो सकती है। राजनीतिक रूप से चंद्रबाबू नायडू को के सीआर मजबूत होते नहीं देखना चाहते हैं।दूसरी तरफ कांग्रेस को भी वे केंद्र में वापस होते नहीं देखना चाहते हैं। उनके लिए भाजपा उनकी हानिकारक नहीं है जितनी कांग्रेस व चंद्रबाबू नायडू हो सकते हैं। इसलिए उनकी कोशिश इन दोनों को साधने की है और यह तभी सम्भव होगा जब कांग्रेस वाली गठबंधन को कमजोर कर सकेंगे। चंद्र बाबू नायडू ने अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती कांग्रेस के साथ जाकर कर दी है। इसका फायदा के सी आर पूरी तरह उठाना चाहते हैं।
माना जा रहा है कि के सी आर अब उन नेताओं को अपने साथ लाने की कोशिश में हैं जो कांग्रेस के साथ कतई जाना पसंद नहीं करते और जिनकी राजनीतिक जमीन ही कांग्रेस विरोधी है। ऐसे नेताओं में नबीन पटनायक, अरबिंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, एआईडी एम के नेता , हरियाणा में इनेलो या फिर नवगठित जननायक जनता पार्टी के नेता पूर्वोत्तर राज्यों के कई दलों के नेता और बिहार सहित कुछ और राज्यों के छोटे क्षेत्रीय दलों के नेता शामिल हैं।
गौरतलब है कि इसी आशय के साथ कुछ महीने पहले राव ने ममता बनर्जी, द्रमुक प्रमुख एम के स्टालिन, पूर्व प्रधानमंत्री और जद (एस) के नेता एच डी देवगौड़ा समेत कई नेताओं से गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई क्षेत्रीय दलों का गठबंधन बनाने के अपने प्रयास के तहत मुलाकात की थी। हालांकि तब यह माना जा रहा था कि के सी आर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के लिए उतनी अहमियत नहीं रखते हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी अब शानदार विजय ने उनके प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया है। सम्भावना इस बात की प्रबल है कि देश में एक और राष्ट्रीय राजनीतिक गठबंधन जल्द ही देखने को मिलेगा।